त्रिनेत्रधारी देवाधिदेव शिव की पूजा आदिकाल से होती आ रही है। वे सृष्टि का कल्याण करने वाले हैं तो विध्वंस करने वाले भी। धार्मिक ग्रंथों से लेकर पुराणों तक में उनके विभिन्न स्वरूपों का वर्णन है। इन पुराणों में 'काशी' बनारस को शिव की नगरी कहा जाता है, लेकिन किसी जमाने में ग्वालियर और उसके आसपास का इलाका भी शिव की भक्ति में लीन रहा है।
ग्वालियर-चंबल से लेकर बुंदेलखंड तक में शिव की आराधना और पूजा-पाठ करने वालों का बाहुल्य रहा है। इतिहास और पुरातत्व के जानकार बताते हैं कि यहाँ पाँचवीं-छठवीं शताब्दी से शिवपूजा के प्रमाण खूब मिलते हैं। हालाँकि शैवमत के मानने वाले और पहले से रहे होंगे।
कल्याणकारी शिव की पूजा ग्वालियर अंचल में सदियों से होती चली आ रही है। यदि हम इतिहास की बात करें तो प्रतिहारकाल से लेकर सिंधिया रियासत तक के शासक शिवभक्त थे। इन राजाओं ने शिवजी के एक से बढ़कर एक मंदिरों को निर्मित कराया। ग्वालियर में ही कोटेश्वर, भूतेश्वर से लेकर शिवमंदिरों की एक लंबी सूची है, जो सिंधिया राजवंश सहित दूसरे राजाओं ने बनवाए। ग्वालियर किले पर सूरज कुंड के बीचो-बीच बना शिवलिंग महाराजा सूरजसेन ने बनवाया। तो किले पर कर्णमहल परिसर में तोमर राजवंश के शासकों ने एक और शिव मंदिर बनवाया, जो आज भी विद्यमान है।
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मप्र पुरातत्व विभाग के गूजरी महल स्थित संग्रहालय में 8वीं सदी से लेकर 14-15वीं सदी तक की शिव प्रतिमाएँ हैं। ये प्रतिमाएँ एक से बढ़कर एक हैं। शास्त्रों व धार्मिक पुराणों में शिव का जिस तरह वर्णन मिलता है, ये प्रतिमाएँ शिव के उन तमाम स्वरूपों का वर्णन करती हैं। संग्रहालय में 8-9वीं सदी की शिव-पार्वती के विवाह का वर्णन करतीं प्रतिमा लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं। इस प्रतिमा को 'कल्याण सुंदर' नाम दिया गया है।
बताते हैं कि शास्त्रों में शिव-पार्वती के विवाह की प्रतिमाओं को कल्याण सुंदर कहा गया है। इस मूर्ति में चार भुजाधारी शिव पार्वती का हाथ पकड़कर ले जा रहे हैं। प्रतिमा में विवाह संपन्न कराने वाले ब्रह्माजी भी विद्यमान हैं। इसके अलावा 10वीं सदी की उदयपुर से प्राप्त नटराज की मूर्ति भी गूजरी महल की शोभा बढ़ा रही है। ये सभी मूर्तियाँ पुरातत्व की दृष्टि से बेशकीमती व करोड़ों रुपए की हैं।
ग्वालियर में जब मुगल शासकों ने आक्रमण किए तो उन्होंने यहाँ के लोगों को धर्म संस्कृति से विमुख करने के लिए उनके आराध्यों की मूर्तियों व मंदिरों का विध्वंस किया। प्रतिहारकाल से तोमरकाल तक किले की घाटियों पर गोपाचल पर्वत में उत्कीर्ण की गई शिव-पार्वती व श्रृंखलाबद्ध शिवलिंगों को मुगल शासक औरंगजेब ने तुड़वाया। ये शिवलिंग खंडित अवस्था में आज भी विद्यमान हैं।
शहर के श्रद्धालु आज भी उनकी आते-जाते में पूजा करते हैं। कुल मिलाकर ग्वालियर का क्षेत्र शैवमत के मानने वालों का रहा है। आज भी ऐसा ही है। शिवरात्रि के अवसर पर आज भी अंचल के प्राचीनतम शिवमंदिरों पर शिवभक्तों के मेले लगते हैं। यदि यह कहा जाए कि यहाँ के कण-कण में शिव हैं तो गलत नहीं होगा। उत्खनन के दौरान मिलीं ये मूर्तियाँ शिव के होने का प्रमाण दे रही हैं।