आभामंडल को अंग्रेजी में ओरा कहते हैं। वर्तमान दौर में ओरा विशेषज्ञों का महत्व भी बढ़ने लगा है। देवी या देवताओं के पीछे जो गोलाकार प्रकाश दिखाई देता है उसे ही ओरा कहा जाता है। दरअसल 'ओरा' किसी व्यक्ति और वस्तु के भीतर बसी ऊर्जा का वह प्रवाह है जो प्रत्यक्ष तौर व खुली आँखों से कभी दिखाई नहीं देता। उसको सिर्फ महसूस किया जा सकता है या सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखे जाने का दावा किया जाता है।
हम खुद अनुभव करते हैं कि कुछ लोगों से मिलकर हमें आत्मिक शांति का अनुभव होता है तो कुछ से मिलकर उनसे जल्दी से छुटकारा पाने का दिल करता है, क्योंकि उनमें बहुत ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा होती है। दरअसल ओरा से ही किसी व्यक्ति की सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को पहचाना जाता है। यह तो बात हुई किसी व्यक्ति विशेष की।
लेकिन जब हम किसी वस्तु के नजदीक जाते हैं या मान लो कि कुछ दिनों के लिए घुमने जाते हैं तो होटल में जो भी कमरा बुक करवाते हैं, हो सकता है कि वहाँ घुसते ही आपको सुकून महसूस नहीं हो। हालाँकि घर जैसा सुकून तो कहीं नहीं मिलता। फिर भी कुछ कमरे ऐसे होते हैं जो डरावने से महसूस होते हैं तो समझ लें की वहाँ नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह घना हो चला है।
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ओरा विशेषज्ञों का मानना है कि ध्यान के माध्यम से ओरा के सही प्रवाह को जाना जा सकता है। ओरा विद्या भी एक ऐसी विद्या है जिसमें कोई भी व्यक्ति अपने आध्यात्मिक चक्रों को कुछ इस प्रकार जागृत कर देता है कि उससे निकलने वाली शक्तियों का प्रवाह सामने वाले व्यक्ति के शरीर तक पहुँच सकता है।
इंटरनेट पर सर्च करने से बहुत से ओरा व ओरा विशेषज्ञों की हमें जानकारी प्राप्त होती है। उनमें से ही एक है ओरा मेडिटेशन पर महारथ प्राप्त करने वाले डॉ. हीरा तापड़िया। तापड़िया इस विद्या के बारे में विशेष जानकारी रखते हैं।
डॉ. तापड़िया देश के जाने-माने ओरा विशेषज्ञ हैं जिन्हें आईएसओ 9001-(2001) प्राप्त है और उन्होंने ओरा मेडिटेशन पर मॉस्को की मेडिकल यूनिवर्सिटी में छ: लेक्चर दिए हैं। तापड़िया को वहाँ की स्पेशल बायो टेक्नोलॉजी पर विशेष प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है।
डॉ. तापड़िया ने वर्ष 1962 में तिब्बत के मास्टर लॉबान से इस विद्या की शिक्षा ली और लगातार छ: वर्षों तक वह उनके निर्देशन में काम करते रहे। इस विद्या के गहन अध्ययन के बाद तब से लेकर अब तक डॉ. तापड़िया ने तकरीबन छ: लाख से ज्यादा लोगों का ओरा टेस्ट लिया है, जिनमें साधु, संत, फिल्म अभिनेता, अभिनेत्री और राजनेता भी शामिल है।
ओरा क्या है : डॉ. तापड़िया के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के चारों और इलेक्ट्रॉनिक मैग्नेटिक फिल्ड का अस्तित्व छाया हुआ है जिसे 'ओरा' कहते हैं। ओरा का क्षेत्र व्यक्ति के शरीर पर तीन इंच के लेकर 20 से 40 मीटर तक की लंबाई तक हो सकता है। इतना ही नहीं 'ओरा' सजीव व्यक्तियों से लेकर निर्जीव व्यक्ति, वस्तुओं का भी हो सकता है।
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आसाराम का ओरा : डॉ. तापड़िया का मानना है कि संत आसाराम बापू का 'ओरा' तीन मीटर तक लंबा है अर्थात अगर तीन मीटर तक की परिधि में कोई भी व्यक्ति उनके आसपास है तो वह आसाराम बापू के 'ओरा' से प्रभावित हो जाएगा। बापू के 'ओरा' में लाल रंग के साथ गहरे नीले और जामुनी रंग की छाया है।
तापड़िया अनुसार जामुनी रंग आध्यात्मिकता से परिपूर्ण व्यक्तित्व की सूचना देता है। यह रंग विशेषकर साधु-संतों में ही देखने को मिलता है। वायलट रंग इस बात की सूचना देता है कि आपका आज्ञा चक्र खुलकर जागृत हो चुका है। इसी प्रकार के व्यक्ति दूसरों की नकारात्मक शक्ति को ग्रहण कर उसमें सकारात्मक ऊर्जा को प्रवाहित करने की क्षमता रखते हैं। इसी को शक्तिपात करना कहा जाता है।
डॉ. तापड़िया कहते हैं कि आसाराम बापू की 'ओरा' का लाल रंग यह सूचित करता है, बापू शक्ति देते हैं। शक्तिपात करते हैं। बापू के 'ओरा' के ऊपर जो नीला रंग है वह अनंत ऊँचाई पर बने रहने का प्रभाव दर्शाता है। डॉ. तापड़िया तो यहाँ तक कहते हैं कि बापू की ओरा लास्टिक जैसी है। वह कहते हैं कि उन्होंने कोलकाता में एक बार बापू का प्रवचन सुना था और उन्होंने देखा कि उनकी ओरा 50 फिट दूर बैठे व्यक्ति के ऊपर भी सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बिखेर रही है।
ओरा से पिछले जन्म की जानकारी : तापड़िया के अनुसार आसाराम बापू इस जन्म से नहीं, लेकिन पिछले दस जन्मों से लोगों को प्रवचन देते आए हैं। डॉ. तापड़िया का दावा है कि बापू पिछले दस जन्मों से लोगों को सत्य, धर्म और सदाचार का प्रवचन देते आए हैं। वह कहते हैं कि ओरा विद्या से व्यक्ति के पुनर्जन्म के बारे में जाना जा सकता है और मैं अपनी विद्या के अभ्यास के बल पर कह सकता हूँ कि आसाराम का यह दसवाँ जन्म है।