sawan somwar

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

गीता जयंती : श्रीकृष्ण के उपदेश का दिन

Advertiesment
हमें फॉलो करें गीता जयंती
- ज्योत्स्ना भोंडवे
ND

महाभारत के धर्म और अधर्म, सत्य और असत्य के इस युद्ध में कौरव और पाडंवों की सेना जब आमने-सामने थी। अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण ने रथ को दोनों सेनाओं के मध्य आगे ला खड़ा कर दिया, जहां अर्जुन ने भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और अपने भाइयों, रिश्तेदारों को विरोधी खेमे खड़ा पाया।

अर्जुन की हिम्मत जवाब दे गई, तब उन्होंने कृष्ण से कहा कि अपने स्वजनों और बेगुनाह सैनिकों के अंत से हासिल मुकुट धारण कर मुझे कोई सुख हासिल नहीं होगा। अर्जुन पूरी तरह अवसादग्रस्त हो चुके थे। अपने अस्त्र-शस्त्र कृष्ण के सम्मुख भूमि पर रख उन्होंने सही मार्गदर्शन चाहा। और तब 'गीता' का जन्म हुआ। लगभग 40 मिनट तक श्रीकृष्ण और अर्जुन में जो संवाद हुआ, उसे महर्षि व्यास ने सलीके से लिपीबद्ध किया वही 'भगवद्गीता' है।

webdunia
ND
अपने कहे को और स्पष्ट कर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाइश दी की उसके शत्रु तो महज मानव शरीर हैं। अर्जुन तो सिर्फ उन शरीरों का अंत करेगा, आत्माओं का नहीं। हताहत होने के बाद सभी आत्माएं उस अनंत आत्मा में लीन हो जाएंगी। शरीर नाशवान हैं लेकिन आत्मा अमर है।

आत्मा को किसी भी तरह से काटा या नष्ट नहीं किया जा सकता। तब श्रीकृष्ण ने परमतत्व की उस प्रकृति का दर्शन जिसमें अनंत ब्रह्मांड निहित है यानी 'विराट रूप' को अर्जुन के समक्ष प्रकट किया ताकि अर्जुन समझ सकें कि वह जो भी कर रहा है वह विधि निर्धारित है।

यह भाग्य ही 'प्रकृति' है जिसकी रचना 'पुरुष' ने की है और सर्वव्यापी ही उसका इस्तेमाल करेगा। तब 'कर्मयोग' के इस सार को समझ अर्जुन युद्ध को तैयार हुए। जिस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया वह 'गीता जयंती' या 'मोक्षदा एकादशी' के रूप में मनाया जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi