एक बार की बात है ब्रह्मा जी मनुष्यों की हरकतों से काफी परेशान थे और एक दिन उन्होंने अपनी इस समस्या के लिए देवाताओं की एक बैठक बुलाई। अपनी समस्या रखते हुए उन्होंने देवताओं से कहा कि मैं मनुष्यों की रचना कर के मुसीबत मे पड़ गया हूँ। ये लोग हर समय शिकायत करते रहते हैं। मैं न तो चैन से सो सकता हूँ न कि चैन से किसी स्थान पर रह सकता हूँ। इसलिए मैं किसी ऐसे गुप्त स्थान पर जाना चाहता हूँ जहाँ मनुष्यों की पहुँच न हो।
ब्रह्मदेव की भावनाओं का समाधान करते हुए एक देव ने निवेदन किया कि आप हिमालय पर गौरीशंकर की चोटी पर चले जाएँ। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि वहाँ भी मुझे चैन नहीं मिलेगा। उस स्थान पर भी कोई न कोई मनुष्य पहुँच ही जाएगा।
किसी अन्य देवता ने सलाह दी कि आप प्रशांत महासागर में चले जाइए, तो किसी ने कहा कि चंद्रमा पर। ब्रह्मदेव ने उन्हें कहा कि वैज्ञानिक वहाँ भी पहुँच गए हैं, और पहुँच भी रहे हैं।
फिर किसी ने कहा कि अंतरिक्ष में चले जाइए तो फिर ब्रह्मदेव बोले वहाँ भी भारत या किसी अन्य देश की कोई महिला निवास करेगी अथवा पहुँच जाएगी। तभी देवताओं कि पंक्ति में सबसे बुजुर्ग आदमी ने कहा कि आप मनुष्य के हृदय में बैठ जाइए।
ब्रह्मा जी को अनुभवी की बात जँच गई और सलाह मान ली। उस दिन से मनुष्य शिकायत के लिए ब्रह्म देव को यहाँ-वहाँ सब जगह खोजता फिर रहा है किंतु ब्रह्म देव नहीं मिल रहे है, क्योंकि व्यक्ति अपने अन्दर ब्रह्म देव को नहीं पुकार रहा है। उस दिन से ब्रह्मा जी चैन की बंसी बजा रहे हैं।