जीवन एक संग्राम है और इसलिए कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गीता का गान एक सुयोग्य पृष्ठभूमि का सर्जन है। भगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर, विश्व के मानव मात्र को गीता के ज्ञान द्वारा जीवनाभिमुख बनाने का चिरंतन प्रयास किया है।
जीवन रोने के लिए नहीं है, भाग जाने के लिए नहीं है, हंसने के लिए है, खेलने के लिए हैं, संकटों से, हिम्मत से लड़ने के लिए है, वैसे ही अखंड आशा और दुर्दम्य श्रद्धा के बल पर विकास करने के लिए है। गीता मानव मात्र को जीवन में प्रतिक्षण आने वाले छोटे-बड़े संग्रामों के सामने हिम्मत से खड़े रहने की शक्ति देती है।
आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के मंगलप्रभात के समय कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर योगेश्वर श्रीकृष्ण के मुखारविंद से गीता का ज्ञान प्रवाह बहा और भारत को गीता का अमूल्य ग्रंथ प्राप्त हुआ। तबसे यह दिन भारत के ज्वलंत सांस्कृतिक इतिहास का एक सुवर्ण पृष्ठ बनकर रहा है।