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भारत का 5वाँ कुम्भ मेला राजिम में

धर्म-संस्कृति से जोड़ता हैं राजिम अर्द्धकुंभ

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- संतोष सोनक
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फरवरी- मार्च माह में माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक पन्द्रह दिनों के लिए लगने वाला भारत का पाँचवाँ कुम्भ मेला छत्तीसगढ़ की धार्मिक राजधानी प्रयागधरा राजिम में हर वर्ष लगने वाला कुम्भ है। इसमें उज्जैन, हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, ऋषिकेश, द्वारिका, कपूरथला, दिल्ली, मुंबई जैसे धार्मिक स्थलों के साथ छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक सम्प्रदायों के अखाड़ों के महंत, साधु-संत, महात्मा और धर्माचार्यों का संगम होता है।

जहाँ एक ओर जगतगुरु शंकराचार्य, ज्योतिष पीठाधीश्वर व महामंडलेश्वरों की संत वाणी का अमृत बरसता है। वहीं श्रद्धालुगण दूर-दूर से आकर इनके प्रवचनों का लाभ लेते हैं। इसमें शाही कुम्भ स्नान होता है जो देखने लायक रहता है। नागा साधुओं के दर्शन के वास्ते भीड़ उमड़ पड़ती है। अखाड़ों के साधुओं के करतब लोगों को आश्चर्य में डाल देते हैं।

पृथ्वी को मृत्युलोक में स्थापित करके विघ्नों को नाश करने के लिए ब्रह्मा सहित देवतागण विचार करने लगे कि इस लोक में दुष्टों की शांति के लिए क्या करना चाहिए? इतने में अविनाशी परमात्मा का ध्यान किया तो एकत्रित देवता बड़े आश्चर्य से देखते हैं कि सूर्य के समान तेज वाला एक कमल गो लोक से गिरा, जो पाँच कोस लम्बा और सुगंध से भरा या जिसमें भौंरे गुँजार कर रहे थे तथा फूल का रस टपक रहा था मानो यह कमल नहीं अमृत का कलश है।

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ऐसे कमल फूल को देखकर बह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए और आज्ञा दी कि हे पुष्कर 'तुम मृत्युलोक में जाओ' जहाँ तुम गिरोगे वह क्षेत्र पवित्र हो जाएगा, नाल सहित वह मनोहारी कमल पृथ्वी पर गिरा और पाँच कोस भूमंडल को व्याप्त कर लिया। जिनके स्वामी स्वयं भगवान राजीवलोचन हैं।

कमल फूल की पाँच पंखुड़ी के ऊपर पाँच स्वयं भूपीठ विराजित हैं जिसे पंचकोशी धाम के नाम से जाना जाता हैं। श्री राजीवलोचन भगवान पर कमल पुष्प चढ़ाने का अनुष्ठान है। इन्हीं दिनों से यह पवित्र धरा कमलक्षेत्र के रूप में अंकित हो गया। परकोटे पर लेख के आधार पर कमलक्षेत्र पद्मावती पुरी राजिम नगरी की संरचना जिस प्रकार समुद्र के भीतर त्रिशूल की नोक पर काशी पुरी तथा शंख में द्वारिकापुरी की रचना हुई है, उसी के अनुरूप पाँच कोस का लम्बा चौड़ा वर्गाकार सरोवर है। बीच में कमल का फूल है, फूल के मध्य पोखर में राजिम नगरी है।

श्री मद्राजीवलोचन महात्म्यम्‌ के अनुसार भगवान श्वेतवराह ने कहा कि 'तीनों लोकों में प्रख्यात कमलक्षेत्र होगा, जिनको साक्षात काशी समस्त देवता, लोकपाल, श्री पार्वती और सर्पों के साथ महादेव जी निवास करेंगे। इस संसार में यह क्षेत्र बैकुंठ के समान है, पद्म सरोवर में साक्षात गज-ग्राहा लड़ाई का प्रमाण मिलता है।

अन्य हाथियों के साथ क्रीडा करता हुआ गजराज पद्म सरोवर में घुसा तो उसके पैर को ग्राहा ने कसकर पकड़ लिया। छुड़ाने का भरपूर प्रयास किया किन्तु नाकाम रहा। व्याकुल होकर कमल फूल ले भगवान को अर्पण करते हुए वह आर्तशब्द करने लगा, हे गदाधर रक्षा करो, कराल ग्राहा ने मुख से मेरा पैर जकड़ लिया है, इससे छुड़ाओ। इस तरह रुदन भरी आवाज सुनकर लक्ष्मी पति भक्त वत्सल भगवान विष्णु स्वयं उपस्थित हो गए। सूर्य के समान तेज से युक्त सुदर्शन चक्र से ग्राहा को खंड-खंड कर गजराज की रक्षा की तथा ग्राहा का उद्धार किया।

बुजुर्गों का कथन है कि इस पद्म सरोवर में स्नान करने से शरीर के रोग नष्ट हो जाते हैं। शंख, चक्र, गदा, पद्म से आलोकित प्रभु की परम पावनी लीला के कारण इसे पद्मावती पुरी के नाम से नवाजा जाने लगा। राजिम कुम्भ के छत्तीसगढ़ शासन द्वारा विशेष व्यवस्था की जाती है। अयोध्या मथुरा, गया, काशी, अवन्तिका, द्वारिकापुरी ये मोक्ष प्रदायक हैं, उसी प्रकार राजिम क्षेत्र भी मोक्ष धाम है।

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