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राम नाम की महिमा अपरंपार

जपे राम नाम का महामंत्र...!

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जब-जब धरती पर त्राहि-त्राहि मची, अत्याचारियों के अत्याचार बढ़े, तब-तब भगवान ने अवतार लिया और धरती से पाप व अत्याचार को मिटाकर धरती का उद्धार किया। इस दो अक्षर से बने राम नाम की महिमा भी अपरंपार है। राम नाम का स्मरण करके हम जीवन के कष्टों का निवारण कर सकते हैं।

भगवान राम की चारित्रिक विशेषताएं, उनका जीवन व शिक्षाएं आज भी सर्वथा प्रासंगिक हैं। चैत्र शुक्ल नवमी के दिन तेत्रा युग में रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहां अखिल ब्रह्मांड नायक अखिलेश ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था।

दिन के बारह बजे जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए हुए चतुर्भुजधारी श्रीराम प्रकट हुए तो मानो माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो गईं। उनके सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे।

श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था। देवता, ऋषि, किन्नर, चारण सभी जन्मोत्सव में शामिल होकर आनंद उठा रहे थे।

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रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था। भगवान राम हमारे जीवन के प्रत्येक रंग में समाए हुए हैं। हमने पाश्चात्य सभ्यता को काफी हद तक अपनाया, परंतु 'राम-राम' कहना नहीं छोड़ा। हम प्रतिदिन अच्छे बुरे अवसरों पर राम नाम ही लेते हैं।

आज भी हम 'राम-राम' या 'जय रामजी की' कहकर अभिवादन करते हैं। जीवन के अंतिम समय में बिछुड़ने पर राम-राम का ही उल्लेख होता है। समस्या के आने पर, विपत्तियों से घिरने पर 'हे राम' अथवा 'अरे राम' सहसा ही हमारे मुख से निकल पड़ता है। जीवन में प्रसन्नचित होने पर हम रामजी की कृपा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

राम नाम की बड़ी अद्भुत महिमा है। बस, जरूरत है श्रद्धा, विश्वास और भक्ति की। राम नाम स्वयं ज्योति है, स्वयं मणि है। राम नाम के महामंत्र को जपने में किसी विधान या समय का बंधन नहीं है।

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