मानवता का निर्माण और संहार का परिहार वाल्मीकि रामायण की विषय-वस्तु से निकलने वाले दो प्रमुख तत्व हैं। इन दो बुनियादी मानव मूल्यों को अपने काव्य में प्रतिपादित करने के लिए बाल्मीकि को तमसा नदी की प्रसन्न और रमणीय जलधारा तथा क्रौंच-मिथुन के परम दारुणिक वियोग से प्रेरणा मिली थी। वाल्मीकि द्वारा प्रणीत इस महाकाव्य के मूल में ये ही दो घटनाएं आधार बनकर खड़ी होती हैं।
महाकाव्य की कलात्मक अभिव्यंजना में सर्वसमर्थ होने के कारण वाल्मीकि कभी भी उपदेशक या शिक्षक के रूप में अपनी बात नहीं कहते, बल्कि वे अपने पात्रों को अपना प्रवक्ता बना देते हैं।
वे भी अपने आचरण, शब्द और विचारों के माध्यम से अपनी और अपने कवि की बात कह देते हैं। उनको भी आचरण का माध्यम ही अधिक अच्छा लगता है। इधर-उधर कभी-कभी कुछ सामान्य तथ्य और सैद्धांतिक सत्य का निरूपण पाया जाता है, परंतु वह घटनाक्रम से अपने आप उभरकर आते हैं।
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कुछ आदर्श पात्र हैं, जैसे राम, भरत, लक्ष्मण, सीता, सुमित्रा, सुमंत्र, गुह, जटायु, शबरी, हनुमान आदि। ये विभिन्न मानवीय गुणों का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। उनका आचरण देखकर पाठक स्वयं सोचने लगते हैं, 'हां' आदर्श पुत्र हो तो ऐसा होना चाहिए, पुत्र वत्सल पिता ऐसे ही होते हैं, भाई का प्रेम, पत्नी की पति-भक्ति, स्त्री की सेवा भावना जो कभी किसी की शिकायत नहीं करती है और हमेशा दूसरों की सहायता करने में तत्पर रहती है।
बुद्धिमान और उत्साही परामर्शदायता, संकट में साथ देने वाला मित्र, सेवक जो अपनी सुविधा की अपेक्षा स्वामी की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देता है, संत महात्मा जो परम पद को छोड़कर और किसी सुख की कामना नहीं रखता है और एक कार्यकारी समर्थ व्यक्ति जो अपने कर्तव्य का पालन समर्पित भावना और निष्ठा से करता है। इन सभी आदर्शों के प्रतिदर्श रामायण में मिलते हैं।
भगवान वाल्मीकि ने सामाजिक समरसता, मानव गौरव व भ्रातृत्व की विराट भावना का आदर्श मानव समाज को सर्वप्रथम दिया।
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रामायण मुख्यतः एक पारिवारिक महाकाव्य है। इस काव्य का मूल स्वर परिवार है जो कि सामाजिक समरसता, मानव-गौरव और भ्रातृत्व की विराट भावना की बुनियाद है। इसमें तीन प्रकार के भ्रातृ-युगल दिखाई देते हैं-राम और भरत, बाली और सुग्रीव तथा रावण और विभीषण।
इसी प्रकार तीन प्रकार के जीवन-साथी हैं-राम और सीता, बाली और तारा तथा रावण और मंदोदरी। सीता-राम हृदय-संगम के आदर्श प्रतिरूप हैं। बाली और तारा में समानता कम होने पर भी समरसता बराबर है। रावण और मंदोदरी के आदर्शों में काफी अंतर होने पर भी एक-दूसरे के प्रति अनुराग, सद्भाव और सदाशय में कोई कमी नहीं है।
सीता, तारा और मंदोदरी-तीनों में से सीता सर्वाधिक पूजनीय हैं, हालांकि लौकिक दृष्टि से उनको सबसे अधिक पीड़ा सहनी पड़ी। तारा सबसे अधिक सुखी रही और मंदोदरी का स्वाभिमान सर्वोपरि है। उनका स्वभाव, व्यवहार और आदर्श संसार के समस्त स्त्री-पुरुषों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते हैं।
विडंबना है कि सारा संसार सीता और राम को आदर्श दंपति मानकर उनकी पूजा करता है किंतु उनके जैसा दांपत्य जीवन किसी को भी स्वीकार्य नहीं होगा। इससे स्पष्ट होता है कि उनके दांपत्य जीवन में मानव की सहनशीलता का कितना उदात्त उन्नयन हो पाया है। पीड़ा सहने से यदि लोक कल्याण संभव है तो सहनशीलता तपस्या बन जाती है। वाल्मीकि ने अपनी कृति रामायण के माध्यम से मानव-जाति को यही संदेश दिया है।
रामायण का एक और महत्वपूर्ण पहलू है जो उसे उच्चतर भूमि पर प्रतिष्ठित करता है। यही आध्यात्मिक दृष्टि भंगिमा है। वैदिक दृष्टि और काव्य सृष्टि की क्षमता से संपन्न वाल्मीकि ने 'रामायण' के माध्यम से वेद का सार और वैदिक सूक्तियों का वैभव मानव-जाति तक पहुंचाया है। सुंदरकांड इस प्रकार की महत्वपूर्ण अभिव्यंजना का भंडार है। जो लोग इसकी गहराई में जाना चाहते हैं उनके लिए रामायण गहन अध्ययन का अक्षय भंडार है।