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कोल्लूर मुकाम्बिका देवी मंदिर

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“कोल्लूर या कोलापुरा नाम की उत्पत्ति कोला महर्षि से हुई थी। यहाँ पर सदियों कामासुर नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। इस राक्षस से यहाँ के लोगों की रक्षा करने के लिए कोला महर्षि ने देवी महालक्ष्मी की आराधना की। वहीं अमरत्व पाने के लिए कामासुर दैत्य शिवशंभु से वरदान पाने के लिए कठोर तप करने लगा।

वरदान के समय माँ ने इस दैत्य को गूँगा कर दिया। इसके बाद दैत्यराज को मूकासुर के नाम से जाना जाने लगा। आवाज खो देने के बाद भी दैत्य ने संत-महापुरुषों और आम लोगों को सताना बंद नहीं किया। तब महर्षि कोला की प्रार्थना पर माँ ने मूकासुर का वध कर दिया। इस कारण से इस मंदिर को कोल्लूर मुकाम्बिका मंदिर के नाम से जाना जाता है”

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महर्षि कोला की प्रार्थना पर माँ महालक्ष्मी ने मूकासुर का वध कर दिया। इस कारण से इस मंदिर को कोल्लूर मुकाम्बिका मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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कोल्लूर मुकाम्बिका देवी का यह मंदिर वास्तुकला के रूप में एक आश्चर्य कहा जा सकता है। मंदिर की परिक्रमा में प्रवेश करते ही आपको स्वयं के अंदर अद्भुत शक्ति का संचार होता महसूस होगा। कोल्लूर मुकाम्बिका मंदिर के गर्भगृह में माँ की पाषाण पिंडी है। यहाँ ज्योति के रूप में देवी की आराधना की जाती है। इसका स्वरूप बेहद निराला है।

पानीपीठ नामक पवित्र जगह को एक सोने के चक्र जैसी ज्योति ने घेरा हुआ है। माना जाता है कि जैसे श्रीचक्र में ब्रह्मा-विष्णु-महेश का वास होता है, वैसे ही इस ज्योति चक्र में माँ का वास है। गर्भगृह में प्रकृति-शक्ति, काली, लक्ष्मी और सरस्वती माँ की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित की गई हैं। ज्योति चक्र के पश्चिमी भाग में श्री देवी की पद्मासन में बैठी अत्यन्त रमणीय मूर्ति है, जिनके हाथों में शंख-चक्र आदि सुसज्जित हैं।

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मंदिर में गणेशजी की दशभुजा मूर्ति भी प्रतिष्ठित है। पश्चिम भाग में आदि शंकराचार्य का तपस्या पीठ भी है। यहाँ आदि शंकराचार्य की एक धवल मूर्ति स्थापित है, साथ ही यहाँ उनके उपदेशों का भी उल्लेख किया गया है। यहाँ के दर्शन करने के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है। मंदिर के उत्तरी-पश्चिमी भाग में यज्ञशाला है, जहाँ वीरभद्रेश्वर की मूर्ति स्थापित है। माना जाता है कि वीरभद्रेश्वर ने मूकासुर वध में माता का साथ दिया था।- नागेंद्र त्रासी

उड्डिप्पी जिले की सुपर्णिका नदी के किनारे बने कोल्लूर मुकाम्बिका मंदिर में विजया दशमी का दिन विद्या दशमी के रूप में मनाया जाता है। जी हाँ, इस दिन पालक यहाँ से अपने बच्चों की औपचारिक शिक्षा का शुभारंभ करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उनके बच्चों में अच्छी बुद्धि का संचार होगा।

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मंदिर के बाहरी भाग में बालीपीठ, ध्वज स्तंभ और दीप स्तंभ बनाए गए हैं। स्वर्णजड़ित ध्वज स्तंभ की छटा देखते ही बनती है। वहीं कार्तिक मास में होने वाले दीपोत्सव के दिन यहाँ होने वाली रोशनी अद्भुत होती है। मंदिर के अन्नदानम क्षेत्र में रोज हजारों लोगों को प्रसाद के रूप में भोजन प्रदान किया जाता है।

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मंदिर के बाहर आने पर त्र्यम्बकेश्वर श्रींगेरी भगवान का मंदिर और मरिअम्मा मंदिर स्थित है। इसके अलावा यहाँ अनेक दैवीय पाठशालाएँ बनी हैं, जहाँ वैदिक शास्त्रों का अध्‍य्यन करने के इच्छुक लोगों को निःशुल्क पढ़ाया जाता है। इस शिक्षा में आने वाला खर्च कांची कामकोटि पीठ वहन करता है। इस मंदिर में कई उत्सव विशेष रूप से मनाए जाते हैं, जिनमें विजयादशमी के दिन मनाया जाने वाला विद्यादशमी उत्सव मुख्य है। इसके अलावा गणेश चतुर्थी, मुकाम्बिका जन्माष्टमी, कृष्णाष्टमी, नरक चतुर्दशी, नया चंद्र दिवस और नया सूर्य दिवस भी काफी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

कैसे पहुँचें कोल्लूरः- कोल्लूर कर्नाटक के तटीय क्षेत्र उड्डिप्पी में स्थित है। यह जगह बैंगलोर से 500 किलोमीटर और मैंगलोर से 135 किलोमीटर दूर है। यहाँ से यह सड़क-रेल-वायु परिवहन द्वारा जुड़ा हुआ है। उड्डिप्पी से यह जगह लगभग 65 किलोमीटर दूर है। कुंडापुर यहाँ से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है, जो करीब 40 किलोमीटर दूर पड़ता है। वहीं मैंगलोर यहाँ का नजदीकी विमानपत्तन है।

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