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जानिए क्या है एकलिंगजी मंदिर का इतिहास, महाराणा प्रताप के आराध्य देवता हैं श्री एकलिंगजी महाराज

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WD Feature Desk

, बुधवार, 27 नवंबर 2024 (16:54 IST)
Eklingji Temple Udaipur

 

 

Eklingji Temple Udaipur :  राजस्‍थान के उदयपुर के सिटी पैलेस में प्रवेश की बात को लेकर लक्ष्‍यराज सिंह मेवाड़ व विश्‍वराज सिंह मेवाड़ का परिवार आमने-सामने हैं। विवाद के तीसरे दिन बुधवार को विश्वराज सिंह मेवाड़ ने मेवाड़ के शासक देवता एकलिंगजी मंदिर में दर्शन किए। मेवाड़ राजघराने की एकलिंग महादेव मंदिर में गहरी आस्‍था है। परंपरा के अनुसार एकलिंग महादेव के दर्शन किए बिना कोई महाराणा नहीं बनता।

कहां है श्री एकलिंगजी महादेव मंदिर: उदयपुर से लगभग 22 किमी और नाथद्वारा से लगभग 26 कि.मी. दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर कैलाशपुरी नाम के स्थान पर स्थित हैं। पूर्वी भारत में जहां त्रिकलिंग की मान्यता रही है, वहीं पश्चिमी भारत में एकलिंग की मान्यता है।

मंदिर के निर्माण और पुनर्निमाण की कहानी: इस मंदिर का निर्माण मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी में करवाया और उन्होंने ही श्री एकलिंग जी की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। बाद में यह मंदिर टूटा और इसका पुनर्निमाण हुआ।

वर्तमान मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में महाराणा रायमल ने करवाया था। मुख्य मंदिर में एकलिंगजी की चार सिरों वाली मूर्ति स्थापित है। मंदिर परिसर में 108 देवी-देवताओ के छोटे-छोटे मंदिर स्थित हैं, और इन मंदिरों के बीच में ही श्री एकलिंग जी मंदिर स्थापित हैं।

मुख्य मंदिर के गर्भगृह में आम दर्शनार्थियों का प्रवेश वर्जित हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश वहाँ के ट्रस्ट से आज्ञा लेकर ही हो सकता है। उदयपुर से यहाँ जाने के लिए बसें मिलती हैं।
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Eklingji Temple


चतुर्मुखी शिवलिंग की विशेषता
  • एकलिंगजी के चार चेहरे भगवान शिव के चार रूपों को दर्शाते हैं।
  • पूर्व दिशा की तरफ का चेहरा सूर्य देव के रूप में पहचाना जाता है।
  • पश्चिम दिशा के तरफ का चेहरा भगवान ब्रह्मा को दर्शाता है।
  • उत्तर दिशा की तरफ का चेहरा भगवान विष्णु को दर्शाता है।
  • दक्षिण की तरफ का चेहरा रूद्र है जो स्वयं भगवान शिव का है। 
 
एकलिंग महादेव का साहित्यिक उत्सव
महाराणा कुंभा और महाराणा रायमल के शासनकाल के समय रचित दो महत्वपूर्ण पौराणिक ग्रंथों के माध्यम से एकलिंग महादेव की महिमा को साहित्य के माध्यम से अमरता मिली। इन कृतियों में मंदिर की पवित्रता का गुणगान किया गया और एकलिंगजी के दिव्य विधान में शासकों की आस्था को उजागर किया गया।

राजा खुद को इस देवता का संरक्षक मानते थे। इस आध्यात्मिक निष्ठा ने महाराणा सांगा और महाराणा प्रताप जैसे महान व्यक्तित्वों के लिए समर्थन जुटाया।

मेवाड़ में राजा खुद को मानते हैं श्री एकलिंगजी का प्रतिनिधि:  
श्री एकलिंगजी मेवाड़ के शासक और राजपूतों के मुख्य आराध्य देव हैं। कहा जाता हैं कि मेवाड़ में राजा खुद को उनका प्रतिनिधि मानकर शासन किया करता था। युद्ध पर जाने से पहले राजपूत श्री एकलिंग जी आशीर्वाद जरुर लेते थे। 

महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा :
एकलिंग भगवान को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार ऐतिहासिक महत्व के प्रण किए थे। उल्लेख मिलता है कि विपत्तियों से घिरे महाराणा प्रताप का धैर्य टूटने जा रहा था तब उन्होंने अकबर के दरबार में रहकर राजपूती गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वीराज को पत्र लिखा था। पत्र के उत्तर में महाराणा प्रताप ने जो वीरतापूर्ण शब्द लिखे थे वे आज भी अमर हैं:

'तुरुक कहासी मुखपतौ, इणतण सूं इकलिंग, ऊगै जांही ऊगसी प्राची बीच पतंग'

अर्थात, प्रताप के शरीर रहते एकलिंग की सौगंध है, बादशाह अकबर मेरे मुख से तुर्क ही कहलाएगा। आप निश्चित रहें, सूर्य पूर्व में ही उगेगा'


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