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कैसे हैं पीओके और भारतीय कश्मीर के हिन्दू मंदिर, जानिए...

हमें फॉलो करें कैसे हैं पीओके और भारतीय कश्मीर के हिन्दू मंदिर, जानिए...

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

1947 को विभा‍जित भारत आजाद होकर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान बना। पाकिस्तान ने कबाइलियों के भेष में अपनी सेना भेजकर कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और जम्मू एवं कश्मीर के लगभग आधे हिस्से पर कब्जा कर लिया जिसे आज पीओके कहते हैं। हालांकि इसे पाक अधिकृत जम्मू और कश्मीर कहना चाहिए क्योंकि पीओके में कश्मीर के अलावा जम्मू का भी हिस्सा शामिल है।
पीओके का शिव मंदिर और शारदा पीठ

प्राचीनकाल से लेकर मध्यकाल तक यहां हिन्दुओं की आबादी बहुलता से थी और हजारों हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिर अस्तित्व में थे, लेकिन आक्रांताओं के विध्वंस के कारण अब गिनती के ही मंदिर बचे हैं जिसमें से जैन और बौद्ध मंदिर तो लगभग समाप्त कर दिए गए हैं। यहां प्रस्तुत है हिन्दू मंदिरों के हालात की जानकारी। 
 
कश्मीर हिन्दुओं मंदिरों का विध्वंस और कत्लेआम यूं तो मध्यकाल से ही जारी है, लेकिन भारत विभाजन के बाद यह अधिक तेजी से चला, जिसके चलते पीओके के कश्मीरी पंडितों को पलायन कर भारतीय कश्मीर में शरण लेना पड़ी। वहां भी 1989 से 1995 तक नरसंहार का एक नया दौर चला जिसके चलते 6000 कश्मीरी पंडितों को बर्बर तरीके से मौत के घाट उतर दिया गया। इस नरसंहार के चलते 750000 (साढ़े सात लाख) पंडितों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। इस दौरान 1500 मंदिरों नष्ट कर दिया गया। 600 कश्मीरी पंडितों के गांवों को इस्लामिक नाम दे दिया गया। इस नरसंहार को भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकार मूकदर्शक बनकर देखती रही। आज भी नरसंहार करने और करवाने वाले खुलेआम घुम रहे हैं।
 
राज्य सरकार के आंकड़ों के हवाले से केंद्र सरकार के गृहराज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत के कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के अब केवल 808 परिवार रह रहे हैं तथा उनके 59442 पंजीकृत प्रवासी परिवार घाटी के बाहर रह रहे हैं। कश्मीरी पंड़ितों के घाटी से पलायन से पहले वहां उनके 430 मंदिर थे। अब इनमें से मात्र 260 सुरक्षित बचे हैं जिनमें से 170 मंदिर क्षतिग्रस्त है। 
 
पीओके के मंदिर POK Mamndir :
1.शिव मंदिर पीओके :- पाक अधिकृत कश्मीर में वैसे तो बहुत से मंदिरों का अस्तित्व अब नहीं रहा लेकिन यह शिव मंदिर अब खंडर ही हो चुका है। भारत-पाक बंटवारे के कुछ सालों तक यह मंदिर अच्छी अवस्था में था, लेकिन पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकियों के बढ़ते प्रभाव के कारण मंदिर में श्रद्धालुओं का आवागमन कम हो गया और अब यह मंदिर विरान पड़ा है।
 
2.शारदा देवी मंदिर, पीओके:- यह मंदिर भारत-पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है। यह मंदिर भी अब लगभग खंडहर में तब्दील हो चूका है। माना जाता है कि भगवान शंकर यहां से यात्रा करते हुए निकले थे।  1948 के बाद से इस मंदिर की बमुश्किल ही कभी मरम्मत हुई। इस मंदिर की महत्ता सोमनाथ के शिवा लिंगम मंदिर जितनी है। 19वीं सदी में महाराजा गुलाब सिंग ने इसकी आखिरी बार मरम्मत कराई और तब से ये इसी हाल में है।
 
अगले पन्ने पर भारतीय कश्मीर के मंदिर...

* कश्मीर के मंदिर Kashmir shrine : कश्मीर के बाबा अमरनाथ और जम्मू के श्रीवेष्णोदेवी मंदिर की हम बात नहीं करेंगे क्योंकि उनके बारे में सभी जानते हैं। जम्मू-कश्मीर की शीतकालीन राजधानी जम्मू रहती है और ग्रीष्मकालीन श्रीनगर। कश्मीर के अधिकतर मंदिर उपेक्षा के कारण खंडर में बदल गए या उन्हें अलगाववादियों ने ध्वस्त कर दिया।
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khieer bhawani mandir in kashmir
1.ज्वालादेवी मंदिर : जम्मू और कश्मीर के कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के पुलवामा से करीब 17 किलोमीटर दूर खरेव में माता ज्वालादेवी का मंदिर है। दो वर्ष पहले कट्टरपंथियों ने इस मंदिर में आग लगागर इसे नष्ट कर दिया। अब यह खंडर ही है। दक्षिण कश्मीर में स्थित यह मंदिर कश्मीरी पंडितों की ईष्ट देवी का मंदिर है। 
 
2.खीर भवानी मंदिर : जम्मू और कश्मीर के मध्य कश्मीर के गंदेरबल जिले के तुल्ला मुल्ला गांव में स्थित यह मंदिर कश्मीरी पंडितों की आराध्य रंगन्या देवी का मंदिर है। यहां वार्षिक खीर भवानी महोत्सव मनाया जाता है, लेकिन आतंकवाद के चलते अब यह बंद है।  यह मंदिर श्रीनगर से 27 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर के चारों ओर चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं बहती हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के बीच इस मंदिर के दर्शन करने की तमन्ना हर कश्मीरी पंडित में रहती है।
 
इस मंदिर का पुन: निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया जिसे बाद में महाराजा हरी सिंह द्वारा पूरा किया गया। इस मंदिर से जुडी एक प्रमुख किवदंती ये है कि सतयुग में भगवान श्री राम ने अपने निर्वासन के समय इस मंदिर का इस्तेमाल पूजा के स्थान के रूप में किया था। 
 
3.सूर्य मंदिर : हमारे जम्मू संवाददाता सुरेश डुग्गर के अनुसार दक्षिण कश्मीर के मार्तंड स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर लगभग 1400 पुराना है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा अशोक के बेटे जलुका ने 200 बीसी में करवाया था जबकि मंदिर के भीतर जो वर्तमान ढांचा है उसका निर्माण किसी अज्ञात हिन्दू श्रद्धालु ने जहांगीर के शासनकाल के दौरान करवाया था। इस मंदिर से पूरी पीरपंजाल पर्वत श्रृंखला और शहर का प्रत्येक भाग देखा जा सकता है। 
 
400 वर्ष पहले कारकूट खानदान से संबंधित राजा ललितादित्य मुख्यपादय ने मंदिर को अंतिम रूप दिया था। कारकूट वंश के राजा हर्षवर्धन ने ही 200 साल तक सेंट्रल एशिया सहित अरब देशों में राज किया था। पहलगाम का मशहूर शीतल जल वाला चश्मा इसी वंश से संबंधित है।
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ऐसी किंवदंती है कि सूर्य की पहली किरण निकलने पर राजा अपनी दिनचर्या की शुरुआत सूर्य मंदिर में पूजा कर चारों दिशाओं में देवताओं का आह्वान करने के बाद करते थे। वर्तमान में खंडहर की शक्ल अख्तियार कर चुके इस मंदिर की ऊंचाई भी अब 20 फुट ही रह गई है। मंदिर में तत्कालीन बर्तन आदि अभी भी मौजूद हैं।
 
4.भवानी मंदिर : भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर के कश्मीर में जिला अनंतनाग के लकडिपोरा गांव में स्थित यह भवानी मंदिर की देखरेख अब स्थानीय मुसलमान करते हैं। साल 1990 में कश्मीर में हिंसक आंदोलन शुरू हुआ तो कश्मीर घाटी में रहने वाले लाखों पंडितों को अपने घर-बार छोड़कर जाना पड़ा था। इस गांव से भी हिन्दू पलायन कर गए तो यह मंदिर सूना हो गया।
 
5.शीतलेश्वर मंदिर : श्रीनगर के हब्बा कदल इलाके में 2000 साल पुराना शीतलेश्वर मंदिर है। जर्जर अवस्था में पहुंच चुके इस मंदिर को कश्मीरी पंडितों के एक संगठन ने स्थानीय मुस्लिम आबादी के सहयोग से फिर से आबाद किया था लेकिन लगातार हिंसा के चलते अब यह विरान पड़ा है। हालांकि समय समय पर यहां कश्मीरी पंडित जाते रहते हैं।
 
6.शंकराचार्य मंदिर : आदि शंकराचार्य ने देश भर में भ्रमण करके ऐसा स्थानों की खोज की जो प्राचीन भारत के गौरवपूर्ण स्थान थे। ऐसे ही प्राचीन महत्वपूर्ण देवस्थलों में शामिल है श्रीनगर का यह प्राचीनतम शिव मंदिर जिसे ज्येष्टेश्वर मंदिर कहा जाता है। कालांतर में इसे आदि शंकराचार्य मंदिर कहा जाने लगा। वर्तमान में इसे तख्‍त-ए- सुलेमान नाम के नाम से पुकारा जाने लगा है। श्रीनगर की पहाड़ी पर बसा यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। 
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा संदीमान ने कराया था। उस समय यहां 300 स्वर्ण-रजत प्रतिमाएं थीं। सन् 426 से 365 ईसापूर्व कश्मीर पर गोपादित्या का शासन था। उन्होंने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। इससे पूर्व 697 से 734 ईसा पूर्व तक शासन करने वाले राजा ललितादित्य ने भी इसके रखरखाव की व्यवस्था की। शाह हमदानी जब सत्तरहवीं शताब्दी में कश्मीर आए तो उन्होंने कश्मीर को बाग-ए-सुलेमान एवं मंदिर स्थल को तख्ते सुलेमान नाम दिया।
 
7.त्रिपुरसुंदरी मंदिर : दक्षिण कश्मीर के देवसर इलाके में त्रिपुरसुंदरी मंदिर को कट्टरपंथियों ने तोड़ दिया। यह मंदिर घाटी के कुलगाम जिले के देवसर क्षेत्र में है। यह मंदिर भी कश्मीरी हिन्दुओं की आस्था का प्राचीन केंद्र है। 
 
8.मट्टन : पहलगाम मार्ग पर स्थित यह हिन्दुओं का पवित्र स्थल माना जाता है जिसमें एक शिव मंदिर है और खूबसूरत झरना भी। श्रीनगर से यह 61 किमी की दूरी पर है। 
 
अगले पन्ने पर जम्मू और लद्दाख के खास मंदिर...

1.रघुनाथ मंदिर:- जम्मू और कश्मीर के जम्मू में रघुनाथ मंदिर को महाराजा गुलाब सिंह ने 1835 में बनवाया था और बाद में उनके पुत्र महाराजा रणवीरसिंह ने 1860 में इसे पूरा करवाया था। इस मंदिर की आंतरिक सज्जा में सोने की पत्तियों तथा चद्दरों का प्रयोग किया गया है। इस मंदिर में देवी-देवताओं की कलात्मक मूर्तियां दर्शनीय हैं।
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2.रणवीरेश्वर मंदिर : जम्मू और कश्मीर के जम्मू में प्रसिद्ध मंदिर ‘रणवीरेश्वर मंदिर’ है जिसकी ऊंचाई के आगे सारी इमारतें छोटी दिखाई पड़ती हैं। महाराजा रणवीर सिंह द्वारा 1883 में बनाया गया यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है तथा पत्थर की पट्टी पर बने प्रहत शिवलिंगों के कारण प्रसिद्ध है। 
 
3.पीर खो : शहर से 3.5 किमी की दूरी पर सर्कुलर रोड पर स्थित यह स्थान एक प्राकृतिक शिवलिंग के कारण प्रसिद्ध है जिसके इतिहास की जानकारी आज भी नहीं मिल पाई है लेकिन लोककथा यह है कि इस लिंगम के सामने स्थित गुफा देश के बाहर किसी अन्य स्थान पर निकलती है। 
 
4.सुद्धमहादेव : जम्मू से 120 किमी की दूरी पर स्थित 1225 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मनोहारी दृश्यों वाला स्थल प्रत्येक पर्यटक तथा तीर्थयात्री को आकर्षित करता है, क्योंकि भगवान शिव-पार्वती के जीवन से जुड़ी कई कथाओं का यह प्रमुख स्थल रहा है। रहने के लिए स्थान तथा सीधी बस सेवा भी उपलब्ध है। 
 
*लद्दाख के मठ : यदि हम लद्दाख की बात करें तो यहां बौद्ध मंदिर और मठ ही हैं। लद्दाख में लेह महल, लेह महल के पास ही स्थित यह गोम्पा भगवान बुद्ध की डबल स्टोरी मूर्ति के लिए जाना जाता है जिसमें भगवान बुद्ध को बैठी हुई मुद्रा में दिखाया गया है। यह भी शाही मठ है। इसके अतिरिक्त लेह के आसपास आलचरी गोम्पा, चोगमलसार, हेमिस गोम्पा, लामायारू, लीकिर गोम्पा, फियांग गोम्पा, शंकर गोम्पा, शे मठ तथा महल, स्पीतुक मठ, स्तकना बौद्ध मंदिर, थिकसे मठ तथा हेमिस मठ आदि हैं।

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