Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

त्यागराजर स्वामी की समाधि

हमें फॉलो करें त्यागराजर स्वामी की समाधि

के. अय्यानाथन

हर साल पुष्य पंचमी तिथि के उपलक्ष्य में दुनियाभर से कार्नेटिक संगीतकार यहाँ आते हैं और पंचरत्न कीर्तन जो कि एक संत ने भगवान श्रीराम की महिमा में लिखा था, का गान करते हैं। एक संगीत पसंद करने वाले संत के लिए यह पाँच दिवसीय गायन-वादन कार्यक्रम, तमिलनाडु का एक मुख्य आकर्षण है।

फोटो गैलरी देखने के लिए क्लिक करें-

कावेरी नदी के तट पर जहाँ पक्षी पूरा दिन अपने ही राग में सुरीला गीत गाते हैं, जहाँ के पेड़ों की पत्तियों की सरसराहट भी अपने आप में मधुर संगीत है, पाँच नदियों के मिलन से पवित्र होने वाले ऐसे स्थान पर है सुप्रसिद्ध कार्नेटिक संगीतकार त्यागराजर की समाधि। इन्हें सम्मानपूर्वक त्याग ब्रह्म भी कहा जाता है।

webdunia
WDWD
यह वही जगह है जहाँ इस महान संगीतकार ने भगवान श्रीराम की महिमा में 24,000 कीर्तन गाए और इसी जगह वे धरती में विलीन हो गए। श्री त्यागराजर के कीर्तनों में ऐसी भक्ति है कि इन्हें मात्र सुन लेना ही, भगवान की भक्ति या पूजा करने के बराबर है। यही कारण है कि चेन्नई में होने वाली कार्नेटिक संगीत की हर सभा में इनके 3 से 4 कीर्तन गाए या बजाए जाते हैं। कावेरी, कुदमूर्ति, वेन्नरू, वेट्टरू, वडावुरू नामक पाँच नदियों वाले स्थान तिरुवइयरू में त्यागराजर ने अपने जीवन के कई साल बिताए।

त्यागराजर का जन्म 6 जनवरी 1767 को तिरुवरूर में हुआ था। उन्होंने कार्नेटिक संगीत को बढ़ावा दिया और उसे भगवान की भक्ति का रास्ता बनाया न कि दौलत और प्रसिद्धी का। इसी वजह से उन्होंने एक बार तन्जावुर के राजा का प्रस्ताव ठुकरा दिया था जिसकी वजह से उनके भाई ने गुस्से में आकर श्रीराम की मूर्ति को फेंक दिया। त्यागराजर इसी मूर्ति की पूजा किया करते थे लेकिन इस घटना की वजह से वे तीर्थयात्रा पर चले गए और दक्षिण भारत में रहकर उन्होंने भगवान श्रीराम की महिमा के कई गीत गाए।

webdunia
WDWD
अंतत: उन्होंने तिरुवइयरू को अपना निवास स्थान बनाया। वे राम भगवान की काँस्य से बनी एक मूर्ति की पूजा करते थे जो उन्हें नदी में स्नान करते समय मिली थी। इसके साथ ही वे सीता और लक्ष्मण की भी पूजा किया करते थे।

वे हनुमानजी की मूर्ति के पास बैठकर भगवान की महिमा के बहुत से कीर्तन गाया करते थे। उनके द्वारा गाए गए पंच कीर्तनों को कार्नेटिक संगीत की दुनिया में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।

त्यागराजर 80 साल की उम्र में भगवान के चरणों में विलीन हो गए थे। जिस जगह उन्होंने अपने प्राण त्यागे उस जगह एक राम मंदिर है। उस मंदिर में त्यागराजर द्वारा पूजी जाने वाली राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियों को स्थापित किया गया है। इस मंदिर के अंदर दीवारों पर कीर्तन लिखे हुए हैं। त्यागराजर भगवान के एक ऐसे भक्त हैं जो संगीत के द्वारा भगवान की भक्ति करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

कैसे पहुँचें :
रेलमार्ग : तन्जावुर के नजदीक है। चेन्नई से तन्जावुर रेल के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग : चेन्नई से तन्जावुर के लिए और यहाँ से तिरुवइयरू के लिए बसें आसानी से उपलब्ध होती हैं।
वायुमार्ग : तिरुचि सबसे नजदीकी हवाईअड्डा है। यहाँ से मात्र डेढ़ घंटे में तिरुवइयरू पहुँचा जा सकता है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi