शेंदुर्णी का त्रिविक्रम मंदिर
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संदीप पारोलेकरधर्मयात्रा की इस कड़ी में हम आपको लेकर चलते है पंढरपुर की प्रतिकृति के रूप में पहचाने जाने वाले शेंदुर्णी के त्रिविक्रम मंदिर में। महाराष्ट्र के खानदेश क्षेत्र में स्थित इस मंदिर की स्थापना सन् 1744 में प्रसिद्ध संत श्री कडोजी महाराज द्वारा की गई थी।फोटो गैलरी देखने के लिए क्लिक करेंमंदिर के प्रमुख शांताराम महाराज भगत के अनुसार श्री संत कडोजी महाराज प्रतिवर्ष भगवान विट्ठल के दर्शन हेतु पंढरपुर की पैदल यात्रा किया करते थे। एक बार कार्तिक सुदी एकादशी पर वे पंढरपुर की ओर जा रहे थे तभी उन्हें भगवान ने स्वयं आकर दर्शन दिए और कहा कि मैं तुम्हारे गाँव की नदी के निकट पड़े कचरे के ढेर के नीचे निवास कर रहा हूँ। मेरा वाहन वराह है। उन्होंने महाराज को आदेश दिया कि उनकी प्रतिमा को वहाँ से निकालकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा की जाए।
यह सुनकर महाराज पुन: अपने गाँव लौट आए और जब उन्होंने इस घटना की जानकारी ग्रामवासियों को दी तो लोगों ने उन्हें पागल करार दिया और उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया परंतु कडोजी महाराज ने श्रद्धापूर्वक कूड़ा फेंकने वाले स्थान को खोदना शुरू किया और वहाँ उन्हें पाषाण का वराह दिखाई दिया। तब गाँव के लोगों को महाराज की बातों पर विश्वास हुआ और उन्होंने भी खुदाई शुरू की। करीब 25 फीट गहराई में उन्हें काले पाषाण की साढ़े चार फीट की भगवान विट्ठल की मूर्ति प्राप्त हुई जिसकी प्राण-प्रतिष्ठा विधि-विधानपूर्वक सम्पन्न की गई। यह भी कहा जाता है कि जब मूर्ति को बाहर निकालने का काम चल रहा था तो गलती से फावड़े का एक वार मूर्ति की नाक पर भी हुआ और मूर्ति की नाक से रक्त बह निकला। मूर्ति की विशेषता यह है कि इसमें एक साथ भगवान के तीन स्वरूप विष्णु, विट्ठल व बालाजी नजर आते हैं। यही कारण कि इसे त्रिविक्रम कहा जाता है। लोगों का विश्वास है कि मूर्ति की भावभंगिमाएँ प्रतिदिन बदलती रहती हैं। यह मूर्ति स्वयंभू होने की वजह से श्रद्धालुओं की इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि त्रिविक्रम और उनके वाहन वराह की आराधना करने से सारी विपदाएँ आसानी से दूर हो जाती हैं।
संत कडोजी महाराज ने कार्तिक सुदी एकादशी पर त्रिविक्रम की रथयात्रा प्रारंभ की थी। यह परंपरा आज भी कायम है। कहा जाता है कि जिस रथ पर भगवान को विराजित कर यात्रा निकाली जाती है, वह लकड़ी से बना 25 फीट ऊँचा, 263 वर्ष पुराना और महाराष्ट्र का सबसे पुराना रथ है जो अभी भी अच्छी स्थिति में है। इस यात्रा में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं।
कैसे पहुँचें:-
सड़क मार्ग: जलगाँव जिले के जामनेर से यह मंदिर 16 किमी दूरी पर स्थित है।
रेलमार्ग: जलगाँव मध्य रेलवे का मुख्य जंक्शन है, जहाँ से शेंदुर्णी गाँव करीब 45 किमी दूरी पर स्थित है।
वायुमार्ग: औरंगाबाद विमानतल शेंदुर्णी गाँव से सबसे निकटतम है। औरंगाबाद से शेंदुर्णी 125 किमी दूरी पर स्थित है।