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स्तंभेश्वर महादेव

जहाँ दरिया करता है शिवशंभु का जलाभिषेक

हमें फॉलो करें स्तंभेश्वर महादेव

अलकेश व्यास

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धर्मयात्रा में इस बार दर्शन कीजिए गुजरात के स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के। इस अलौकिक मंदिर में शिवशंभु का जलाभिषेक करने खुद दरिया आता है। जी हाँ, गुजरात के भरुच जिले की जम्बूसर तहसील में एक गाँव है कावी। यूँ मानचित्र में इस गाँव की स्थिति खम्भात की खाड़ी के सामने की ओर है। समुद्र के किनारे स्थित इस गाँव में स्तंभेश्वर महादेव का मंदिर है।
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  समुद्र के इस किनारे पर दो बार ज्वार-भाटा आता है। ज्वार के समय समुद्र का पानी मंदिर के अंदर आता है और शिवलिंग का अभिषेक दो बार कर वापस लौट जाता है। लोक मान्यता है कि स्तंभेश्वर मंदिर में स्वयं शिवशंभु विराजे हैं।      
समुद्र के इस किनारे पर दो बार ज्वार-भाटा आता है। ज्वार के समय समुद्र का पानी मंदिर के अंदर आता है और शिवलिंग का अभिषेक दो बार कर वापस लौट जाता है। लोक मान्यता है कि स्तंभेश्वर मंदिर में स्वयं शिवशंभु विराजे हैं, इसलिए समुद्र देवता खुद उनका जलाभिषेक करते हैं। ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है। मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि यह प्रक्रिया सदियों से सतत चल रही है। हमने इस नियम को टूटते कभी नहीं देखा।

मंदिर के पुजारी विद्यानंद ने 'वेबदुनिया' को बताया कि ज्वार-भाटा किस समय आता है, यह बताने के लिए हमने खासतौर पर परचे बँटवाए हैं, ताकि प्रभुदर्शन का लाभ लेने आए श्रद्धालु परेशान न हों।

शिवशंभु के पुत्र कार्तिकेय स्वामी छह दिन की आयु में ही देवसेना के सेनापति नियुक्त कर दिए गए थे। इस समय ताड़कासुर नामक दानव ने देवसेना को आतंकित कर रखा था। देव-ऋषि-मुनि, आमजन सभी बेहद परेशान थे। कार्तिकेय स्वामी ने अपने बाहुबल से ताड़कासुर का वध कर दिया। वध के उपरांत कार्तिकेय स्वामी को ज्ञात हुआ कि ताड़कासुर भोलेनाथ का परम भक्त था।

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यह जानने के बाद व्यथित कार्तिकेय स्वामी को प्रभु विष्णु ने कहा कि आप वधस्थल पर शिवालय बनवाएँ। इससे आपका मन शांत होगा। कार्तिकेय स्वामी ने ऐसा ही किया।

समस्त देवगणों ने एकत्र होकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की। पश्चिम भाग में स्थापित स्तंभ में भगवान शंकर स्वयं विराजमान हुए। तब से ही इस तीर्थ को स्तंभेश्वर कहते हैं। यहाँ पर महिसागर नदी का सागर से संगम होता है।
- स्कंध पुराण

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि औहर अमावस्या पर मेला लगता है। प्रदोष, पूनम और ग्यारस को पूरी रात यहाँ चारों प्रहर पूजा-अर्चना होती है। दूर-दूर से श्रद्धालु दरिया द्वारा शिवशंभु के जलाभिषेक का अलौकिक दृश्य देखने यहाँ आते हैं।

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