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करेड़ी वाली माँ

जिनकी मूर्ति से निकलती है अमृतधारा

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धर्मेंद्
आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हम आपको दिखा रहे हैं पानी का चमत्कार। जी हाँ, मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले से आठ किलोमीटर दूर स्थित करेड़ी गाँव में देवी माँ की मूर्ति से लगातार पानी निकल रहा है। स्थानीय गाँववासियों का मानना है कि यह पानी नहीं अमृत है। जब हमने यह किस्सा सुना तो जा पहुँचे करेड़ी गाँव। गाँव में सबसे पहले हमारी मुलाकात हुई गाँव के सरपंच इंदरसिंह से।
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उन्होंने हमें बताया कि माँ की मूर्ति अति प्राचीन है। दावा तो यह तक किया जाता है कि यह मूर्ति महाभारतकालीन है। सरपंच इंदरसिंह ने हमें बताया कि यह मूर्ति कर्ण की आराध्य देवी माँ कर्णावती की है। किंवदंती है कि माँ कर्णावती दानवीर कर्ण को रोज सौ मन सोना देती थीं जिसे कर्ण प्रजा की भलाई के लिए दान दे देता था।

  पहलेपहल लगा कि यह पानी मूर्ति के स्नान के समय भर गया होगा। हमने पानी साफ किया लेकिन माँ की बाँहों के पास बने छिद्र में वापस पानी भर गया। कई बार सफाई के बाद महसूस हुआ कि यह पानी आम पानी न होकर माँ का प्रसाद है, माँ का अमृत है।       
इसी तरह गाँव के लोगों का यह भी मानना है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य भी माँ कर्णावती के भक्त थे। आजकल इस मंदिर को गाँव के नाम से करेड़ी वाली माता का मंदिर कहा जाता है। जब हमने मूर्ति और पानी के बाबद पूछताछ की तो चंदरसिंग मास्टर ने हमें बताया कि कुछ दिनों पहले माँ की मूर्ति से एकाएक पानी निकलने लगा।

पहलेपहल लगा कि यह पानी मूर्ति के स्नान के समय भर गया होगा। हमने पानी साफ किया, लेकिन माँ की बाँहों के पास बने छिद्र में वापस पानी भर गया। कई बार सफाई के बाद महसूस हुआ कि यह पानी आम पानी न होकर माँ का प्रसाद है, माँ का अमृत है।

बातचीत करते हुए हम मंदिर पहुँच गए। जब हम यहाँ पहुँचे तो देखा कि पुराने मंदिर के बाहर एक बावड़ी बनी है। वहीं पत्थर से बनी माँ की मूर्ति के कंधे के पास बने एक छेद में पानी भरा हुआ था। मंदिर के पुजारी ने हमें बताया कि कुछ समय पहले इस छेद में अपने आप पानी भर रहा है तब से लेकर अब तक इस छेद से पानी निकलने का सिलसिला लगातार जारी है

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फिर क्या था जैसे ही यह बात गाँववालों तक पहुँची मंदिर में लोगों का ताँता लग गया। गाँववासियों का भी मानना है कि यह पानी अमृत है। इसे पीने के बाद व्यक्ति की बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ हमेशा लगी रहती है। सभी को विश्वास है कि इस पानी को पीने के बाद उनके सभी दु:ख-तकलीफें औऱ बीमारियाँ दूर हो जाएँगी।

मंदिर में दर्शन करने आए एक श्रद्धालु पं. सुरेंद्र मेहता ने हमें बताया कि माँ की मूर्ति ही नहीं, बल्कि यह मंदिर भी स्वयंभू है। गाँव में कई प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष जमींदोज हैं। गाँव में नवनिर्माण के लिए जब भी खुदाई होती है, प्राचीन मूर्तियाँ और मंदिर के भग्नावशेष निकलते हैं, लेकिन पुरातत्व विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।

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हम कुछ देर मंदिर में ही रुके। हमारे सामने पुजारी ने मूर्ति से निकल रहे जल का वितरण किया। कुछ ही देर में छिद्र में वापस पानी भर गया। मंदिर में दर्शन करने आए कई लोगों का कहना था कि यह माँ का चमत्कार है। तो कुछ लोग यह भी मान रहे थे कि यह दैवीय नहीं, बल्कि भूगर्भीय चमत्कार है। माँ की मूर्ति बेहद पुरानी है और जमीन में धँसी हुई है। पास ही सैकड़ों साल पुरानी बावड़ी है, इसलिए मूर्ति के छिद्र से लगातार पानी निकलना भूगर्भीय चमत्कार है। इसका जवाब विज्ञान ही दे सकता है। आप इस संबंध में क्या सोचते हैं हमें बताइएगा।

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