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जलिकट्टू : बहादुरी की निशानी या बर्बरता?

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के. अय्यानाथन

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आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हम आपके समक्ष लाए हैं तमिलनाडु का लोकप्रिय खेल जलिकट्टू। तमिल लोगों के बीच पोंगल उत्सव के समय जलिकट्टू सबसे अधिक पसंदीदा खेल है। यह बैलों से जुड़ा एक पारंपरिक खेल है।

जानवरों के साथ बर्बर व्यवहार के चलते यह खेल काफी विवादास्पद हो गया है, जिसके लिए पशु कल्याण बोर्ड ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। याचिका के तहत उसने इस खेल पर पाबंदी लगाने की माँग की थी। अदालत ने इस खेल पर रोक लगा दी थी, परंतु बाद में इसे सशर्त जारी रखने पर सहमति जताई थी।
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जी हाँ, आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हम आपके समक्ष एक ऐसी परंपरा प्रस्तुत करने जा रहे हैं, जो तमिलनाडु के मदुरई जिले के आलंगनल्लूर तथा पलमेणु नामक स्थान पर संपन्न होती है। अब आपको निर्णय लेना है कि यह परंपरा बहादुरी का खेल है या फिर एक अमानवीय रिवाज।

तमिलवासियों के लिए जलिकट्टू एक पारंपरिक खेल है, जो काफी प्राचीन समय से यहाँ लोकप्रिय है।
  तमिल साहित्य के अनुसार महिलाएँ उन्हीं पुरुषों से विवाह करती थीं जो बैल पर काबू पाते थे। उस समय बैल को अपने काबू में करने का यह खेल जीवन-मरण का खेल होता था।      
तमिल साहित्य के अनुसार महिलाएँ उन्हीं पुरुषों से विवाह करती थीं जो बैल पर काबू पाते थे। उस समय बैल को अपने काबू में करने का यह खेल जीवन-मरण का खेल होता था। इस खेल के साक्ष्य मोहन जोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई से भी प्राप्त हुए हैं।

पिछले 400 सालों से यह खेल आज भी चला आ रहा है। बस फर्क इतना है कि वर्तमान में बैलों को पहले से ही इस खेल के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और उनके सींगों को नुकीला बनाया जाता है और सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है।

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यहाँ के लोगों का मानना है कि जो व्यक्ति अपने से दस गुना बहादुर इस बैल को अपने वश में कर लेगा, वही सच्चा साहसी पुरुष होगा। मगर पशु कल्याण बोर्ड ने इस खेल को हिंसक व अमानवीय करार देते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने की गुहार लगाई है। उच्चतम न्यायालय ने इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए आदेश भी दिए थे, परंतु लोगों का विश्वास व तमिलनाडु सरकार द्वारा इस खेल को सुरक्षित तरीके से संपन्न कराने की याचिका पर गौर करके न्यायालय ने पुनः इस खेल को सुरक्षित तरीके से संपन्न करने के आदेश दे दिए हैं।

तत्पश्चात कड़ी निगरानी के साथ यह खेल 16 व 17 जनवरी को जिला प्रशासन के संरक्षण में पलमेणू व आलंगनल्लूर में संपन्न करवाया गया, जहाँ हजारों की तादाद में विदेशी पर्यटक भी पहुँचे थे। अब आपको खुद ही तय करना है कि यह खेल बहादुरी का है या बर्बरता का? इस खेल को देखने के लिए हमारा खास वीडियो देखें।


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