साथ ही साथ इस घी को कम भाव में बेचकर, उसकी आमदनी से रूपाल गाँव में शाला, कॉलेज, हॉस्पिटल, लाइब्रेरी, बगिया और रोड निर्माण किया जा सकता है, जो कि लाभदायक रहेगा। परंतु गाँव के लोग इस बात को नहीं मानते। इस अभियान को चलाने वाले लंकेश चक्रवर्ती का गाँव के लोग विरोध करते है और उन्हें लंका का रावण कहते हैं। लेकिन हमें लंकेश चक्रवती की बातें बिलकुल सही लगीं। गौतम बुद्ध ने भी कहा था कि हमारे देश में जहाँ धर्म औऱ श्रद्धा सभी पर हावी है, ऐसे मुद्दों पर लोगों को एकत्रित करना बहुत मुश्किल होता है। लोग मानते हैं कि शास्त्र में जो लिखा है, वही सही है लेकिन मैं कहता हूँ कि जो करो सोच-विचार कर करो। हमारा भी अपने पाठकों से निवेदन है कि जो करें सोच-समझकर करें। आस्था और अंधविश्वास में बेहद पतली लकीर होती है। उसे समझें और बहुत सोचकर ही कोई कदम उठाएँ। प्राचीन कथा- ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ वनवास के दरमियान रूपाल गाँव से निकले थे, तब माता वरदायिनी की आराधना करके एक साल के गुप्तवास के दरमियान पकड़े न जाएँ, इसलिए मानता मानी थी। एक साल बाद मानता पूर्ण होते ही पांडवों ने सोने की पल्ली बनवाकर, उस पर शुद्ध घी चढ़ाकर पूरे गाँव में पल्ली यात्रा निकाली थी। तब से शुरू हुई यह परंपरा आज तक जीवंत है। इस रथ को सभी वाणंगभाई सजाते हैं और कुम्हार लोग मिट्टी के पाँच कुंड बनाकर पल्ली यात्रा पर रखते हैं।
पिंजर लोग कपास तैयार कर देते हैं और माली इस पल्ली को फूल-हार से सजाते हैं। इस तरह रथ तैयार किया जाता है। हर साल माता की नई पल्ली बनाई जाती है। इसके निर्माण में एक भी कील का उपयोग नहीं किया जाता। हर साल पल्ली यात्रा से पहले बंधाणी भाई नए साल में बारिश कैसी होगी, उसका अनुमान (भविष्यवाणी) लगाते हैं। इस साल शैलैषभाई बंधाणी ने बताया कि किसानों के लिए नया साल अच्छा रहेगा और जरूरत मुताबिक बारिश होगी। पिछले साल बंधाणी भाइयों द्वारा लगाया गया अनुमान सही निकला था। उन्होंने कहा था कि पिछ्ले साल की अपेक्षा इस साल अधिक बारिश होगी।