Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

शिवाबाबा का प्रसिद्ध मेला

जहाँ दी जाती है हजारों बकरों की बलि हर साल...

हमें फॉलो करें शिवाबाबा का प्रसिद्ध मेला

भीका शर्मा

WDWD
सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच घने जंगल में हर साल वसंत पंचमी से पूर्णिमा तक लगने वाला शिवाबाबा का मेला वैसे तो दिखने में एक आम ग्रामीण मेले की तरह ही हैकैसेट-सीडी, खेल-खिलौने, मिठाइयाँ, कपड़े, बर्तनों से सजी दुकानें, खरीदारी करते लोग, परंतु इन सबके अलावा भी ऐसा कुछ है यहाँ, जो खास बनाता है इस मेले को इस पूरे क्षेत्र में। जी हाँ, शिवाबाबा के मेले में लोग आते हैं मन्नतें लेकर और जब मन्नत पूरी होती है तो भेंट में चढ़ाते हैं बकरे। कोई एक तो कोई दो तो कोई पाँच-पाँच बकरे अपनी मुराद पूरी होने के बाद शिवाबाबा को चढ़ाते हैं।

फोटो गैलरी देखने के लिए क्लिक करें-
शिवाबाबा के बारे में मान्यता है कि वे एक संत थे, जिनके चमत्कारों की प्रसिद्धि इस इलाके के हर एक शख्स की जबान पर है। यहाँ शिवाबाबा को भगवान शिव का अवतार मानकर पूजा की जाती है। मंदिर के पास एक बाबा जोगीनाथ का कहना है कि यह बहुत ही अद्भुत दरबार है। देर की तो बात ही नहीं, बस इधर माँगो और उधर इच्छा पूरी हो जाती है

  शिवाबाबा के बारे में मान्यता है कि वे एक संत थे, जिनके चमत्कारों की प्रसिद्धि इस इलाके के हर एक शख्स की जबान पर है। यहाँ शिवाबाबा की भगवान शिव का अवतार मानकर पूजा की जाती है। मंदिर के पास एक बाबा जोगीनाथ का कहना है कि यह बहुत ही अद्भुत दरबार है।      
मन्नत पूरी होने पर लोग अपने परिजनों और दोस्तों के साथ मेले में पहुँचते हैं और फिर सजे-धजे बकरे की पूजा कर पूरे जोर-शोर से शिवाबाबा के मंदिर की ओर ले जाया जाता है। शिवाबाबा के मंदिर में स्थित देवी की प्रतिमा के सामने पुजारी बकरे पर जल छिड़ककर उसे देवता को अर्पित कर देता है।

यहाँ लाए जाने वाले ज्यादातर बकरों की बलि दी जाती है, जबकि कुछ अन्य को जंगल में छोड़ दिया जाता है। पहले बलि मंदिर के सामने स्थित चहारदीवारी में दी जाती थी, लेकिन अब यहाँ बलि देने की मनाही है अत: अब बकरे की बलि लोग अपने ठहरने के स्थान पर जाकर देते हैं। बलि के बाद बकरे के माँस को शिवाबाबा का प्रसाद मानकर मिल-बाँटकर खाया जाता है। प्रसाद को लोग मेला क्षेत्र से बाहर या अपने घर नहीं ले जा सकते। बचने पर प्रसाद को वहीं गरीबों में बाँट दिया जाता है।

webdunia
WD
मेले में आए एक कसाई से जब हमने बात की तो उसने बताया कि हर साल सम्पूर्ण मेला अवधि में करीब दो लाख बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। उसने यह भी बताया कि उस दिन सुबह से लेकर दोपहर तीन बजे तक करीब पाँच हजार बकरों की बलि दी जा चुकी है।

कहते हैं कि शिवाबाबा की कृपा से मेले के दौरान इस इलाके में मक्खियाँ और चीटियाँ नहीं होती हैं। हमने इस तथ्य की जाँच-परख की। हमने पूरा मेला क्षेत्र देखा, बकरों के कटने के स्थान देखे, मिठाइयों की दुकानें देखीं परंतु वाकई हमें एक भी मक्खी दिखाई नहीं दी। यह एक बहस के विषय हो सकता है कि क्या बकरे की बलि देने से कोई देवता प्रसन्न हो सकता है? आप इस विषय पर हमें अपनी राय जरूर लिखें।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi