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खट्टे-मीठे अनुभव भरा 'दक्षिण दर्शन'

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हमें फॉलो करें खट्टे-मीठे अनुभव भरा 'दक्षिण दर्शन'
- मोहन वर्मा

इंडियन रेलवे केटरिंग एंड टूरिज्म द्वारा दक्षिण भारत यात्रा कराई गई। यह यात्रा इंदौर से 28 मार्च को शुरू हुई और तिरुपति बालाजी, मदुराई, रामेश्वरम व कन्याकुमारी के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कराकर 5 अप्रैल को वापस इंदौर पहुँची। यह यात्रा निर्धारित समय अनुसार शाम 5 बजे प्रारंभ होनी थी, किसी कारणवश यह रात 12 बजे प्रारंभ हो सकी।

यात्रियों को सुबह चाय, कॉफी, नाश्ता, दो बोतल पानी, दोपहर का भोजन एवं शाम को चाय-कॉफी एवं रात्रि भोजन की व्यवस्था आईआरसीटीसी द्वारा ट्रेन में ही कराई गई। प्रत्येक दो कोच के लिए एक अटेंडेंट की व्यवस्था थी जो यात्रियों को ठहरने व दर्शनीय स्थलों पर घूमने व लौट कर आगे के कार्यक्रम की जानकारी देते थे। यात्रा का पहला पड़ाव रेनुकुंटा था जहाँ यात्रियों के रुकने के लिए होटल व धर्मशालाओं में व्यवस्था की गई थी। स्टेशन से बसों द्वारा सभी यात्रियों को यथास्थान वहाँ पहुँचाया गया।

अगले दिन सभी को तिरुपति से तिरुमाला दर्शन हेतु ले जाया गया। सभी को हिदायत दी गई कि रात १२ बजे तक बसें चलती हैं उससे ज्यादा देर होने पर निजी वाहनों की व्यवस्था रहती है लेकिन उसका वहन यात्रियों को करना पड़ता है। तिरुमाला में संस्थान की मिनी बसें निःशुल्क उपलब्ध रहती हैं। वरिष्ठ नागरिक व अपंग व्यक्तियों के लिए अलग से व्यवस्था रहती है। इसके लिए उन्हें आईडी प्रूफ देना होता है।

मंगलवार और बुधवार को आमतौर पर भीड़ कम रहती है और दो से तीन घंटे में दर्शन हो जाते हैं। अगले दिन सुबह चाय-नाश्ते के बाद शहर के चार मंदिरों के दर्शन कराए गए। शहर में बसें प्रवेश नहीं करती है अतः छोटे वाहनों से सभी को घुमाया गया। इस दौरान यात्रियों का सामान ट्रेन में ही रहता था। एक जोड़ कपड़े लेकर चलने को कहा जाता था, जिसकी सूचना प्रत्येक कोच में माइक द्वारा दे दी जाती थी।

रात में स्टेशन पहुँचकर ट्रेन में सवार हो गए और ट्रेन मदुराई के लिए चल पड़ी। सुबह वहाँ पहुँचने पर सभी को होटलों में ठहराया गया। स्टेशन से 2 किमी की दूरी पर मीनाक्षी मंदिर है। परंतु तीज तिथि होने से वह बंद था। मदुराई से 7 किमी दूर कार्तिकेय का पुरात्तव कालीन मंदिर है। रिक्शा, बस व मिनी बसों द्वारा वहाँ पहुँचा जा सकता है। अगले दिन प्रातः बसों द्वारा रामेश्वरम के लिए रवाना हो गए।

वहाँ समुद्र में कपड़े सहित स्नान कर मंदिर में गीले कपड़ों में ही प्रवेश करना होता है। दूसरे प्रांत के लोगों को भाषा की समस्या भी रहती है। यहाँ गाइड की आवश्यकता महसूस होती है। दोपहर का भोजन कर सभी पुनः मदुराई पहुँचे व शाम को मीनाक्षी मंदिर के दर्शन किए।

अगले दिन सुबह चार बजे कन्याकुमारी पहुँचकर सभी ने समुद्र तट पर सूर्य उदय का असीम आनंद लिया फिर स्टीमर द्वारा विवेकानंद रॉक पहुँचे। दर्शन कर कन्याकुमारी मंदिर पहुँचे। वहाँ नियम है कि पुरुषों को ऊपरी बदन के सभी वस्त्र निकालने पड़ते हैं फिर मंदिर में प्रवेश दिया जाता है। दर्शन के बाद वहाँ के अन्य मंदिरों के दर्शन कर सभी स्टेशन के लिए रवाना हो गए। कन्याकुमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव था और यहाँ से वापसी यात्रा शुरू हो गई। यात्रा ६ अप्रैल को सुबह १० बजे इंदौर पहुँची। यात्रा के कुछ खट्टे तथा कुछ मीठे अनुभव रहे।

यात्रा के दौरान भोजन देने वाले कर्मचारियों व अन्य सभी की सेवाएँ सभी यात्रियों के लिए संतोषप्रद थीं। यात्रा में गाइड की कमी महसूस की गई। दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान भाषा की समस्या प्रमुख रहती है। खास बात यह कि वहाँ मंदिरों में पॉलीथिन प्रतिबंधित है और बसों, कारों व टैक्सियों में निर्धारित संख्या से ज्यादा यात्रियों को नहीं बैठाया जाता है।

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