* धार्मिक ग्रंथों में बना तीर्थराज, आज भी पहचान को मजबूर...
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गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों की संगम स्थली प्रयाग की महिमा तो विश्व प्रसिद्ध है, मगर पांच नदियों के संगम का स्थान तातरपुर विश्व पर्यटन के मानचित्र में खुद को स्थापित कराने के लिए छटपटा रहा है।
उत्तरप्रदेश में इटावा के बिठौली गांव में स्थित तातरपुर में यमुना, चम्बल, कावेरी, सिंधु और पहुज नदियों का संगम होता है। इस संगम को पचनदा अथवा पचनद भी कहा जाता है। यहां के प्राचीन मन्दिरों में लगे पत्थर आज भी दुनिया के इस आश्चर्य और भारत की श्रेष्ठ धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का बखान करते नजर आते हैं।
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कुदरत की अनुपम कृति को अपने आंचल में संजोए यह स्थान पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में अब तक नाकाम है।
स्थानीय लोग इसके पीछे सरकार की उदासीनता के अलावा दुर्दांत दस्यु गिरोह को भी जिम्मेदार मानते है, जिनके आतंक से कुख्यात चम्बल घाटी के 200 किलोमीटर के दायरे में फैले खतरनाक बीहड़ों में बसे पचनद को अपेक्षा के अनुरूप ख्याति नहीं मिल सकी।
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां पचनदा मेले का आयोजन किया जाता है, जिसका प्रबंध ग्रामसभा कंजौसा की ओर से किया जाता है। प्राकृतिक सुन्दरता के मामले में पचनदा देश के गिने-चुने स्थानो में से एक माना जाता है। घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों से घिरे इस इलाके की अनुपम छटा का नजारा भरेह के ऐतिहासिक किले से देखा जा सकता है।
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पर्यटन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान दर्ज कराने में यह क्षेत्र भले ही कोसों दूर है, मगर श्रद्धालु धार्मिक समारोह को यहां पूरी संजीदगी से मनाते है। यहां धार्मिक लक्खी मेला में बड़ी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं। देवी भागवत और तुलसी साहित्य समेत अन्य धार्मिक ग्रंथों में उक्त क्षेत्र के व्यापक धार्मिक महत्व को दर्शाया गया है और इसको हिन्दुओं के तीर्थराज की मान्यता दी गई है।
सैलानियों के लिए पचनदा रोमांच से भरपूर स्थान है। पांच नदियों के संगम एवं भरेह से पचनद तक विश्व प्रसिद्ध डॉल्फिन मछली का बहुतायत में मिलना सैलानियों के लिए कौतूहल का विषय है।
पचनदा का मनोरम परिदृश्य वर्षा ऋतु में और भी मनोहारी हो जाता है, मगर पांच नदियों का यह अनूठा संगम संभवत: बहुचर्चित चम्बल घाटी में स्थित होने की वजह से उपेक्षित रह गया। चम्बल घाटी बरसों से डकैतों की शरणस्थली रही, जहां उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश के दस्यु गिरोह खतरनाक खादरों में पनाह लेते थे।
पचनदा के आसपास के 20 किमी. के दायरे में डकैत शरण लेकर अपनी गतिविधियों को अंजाम देते थे, जिससे इस इलाके के सौंदर्यीकरण और विकास में बाधा आती रही है।
देश में सदियों से विभिन्न नदियों की उपासना की जाती रही है और दो अथवा तीन नदियों के संगम स्थलों का विशेष महत्व रहा है, मगर यह आश्चर्यजनक बात है कि पांच नदियों के संगम 'पचनदा' को पर्याप्त धार्मिक महत्व नहीं मिला। (वार्ता)