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अरुणाचल में भारत-तिब्बत संस्कृति का मिलन

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बीजिंओलिम्पिक खेलों को टीवी पर देख कर मुझे गोल्डन पगोडा की यात्रा के बारे में याद आया। अरुणाचल प्रदेश में स्थित यह मठ भारत-चीन विवाद का केंद्र बन गया है। त्वांग मैकमोहन लाईन, भारत-चीन सीमा के पास स्थित था। 2007 में चीन ने कहा कि त्वांग क्षेत्र चीन सरकार के नियंत्रण में आता है।

अरुणाचल प्रदेश के निवासी भारत में ही रहना चाहते हैं। बातचीत करने पर हमें पता चला कि उनके हिंदी के गाने लोकप्रिय हैं इस विषय पर चर्चा करना उन्हें अच्छा लगता है। अरुणाचल के निवासी न केवल हिंदी, तिब्बती भाषा जानते है बल्कि असम की भाषा भी जानते हैं।

400 साल पुराना त्वांग मठ प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धलुजनों का ताँता लगा रहता है। यह मठ 3500 मीटर समुद्र स्तर से ऊपर स्थित है। इस प्राचीन मठ में 700 से ज्यादा महंत रहते हैं।

मान्यता है कि सन 1681 में मठ का निर्माण एक घोड़े ने किया था। कथा के अनुसार 5वीं महंत की इच्छा पूर्ण करने मीरा लामा सोडरे गायस्थो यात्रा पर निकल गए। एक स्थान पर रुक, विश्राम कर प्राथर्ना करने लगे। समाप्त होने पर जब उन्होंने अपनी आँखें खोली तब उनका घोड़ा पहाड़ की चोटी पर खड़ा हुआ दिखा। उन्होंने सोचा कि यह भगवान का दिया हुआ संदेश है उन्होंने वहाँ पर मठ को निर्मित किया था।

स्थानीय लोगों ने मठ को अपने हाथों से बनाया तथा गुफा की देखभाल भी स्वंय करते हैं। मठ के अंदर बुद्ध भगवान की प्रतिमा स्थापित की गई है। शिल्पकर्ताओं द्वारा बनाई गई लकड़ी की मूर्ति 3 फीट ऊँची है। इस प्रतिमा को बहुमूल्य टंका तथा विभिन्न बुद्धिस्त वस्तुओं से सुसज्जित किया गया है

मठ के अंदर प्रवेश करने पर मुझे शांति महसूस होने लगी सिर्फ धीमे-धीमे स्वर में महंतों की प्रार्थना सुनाई दे रही थी।

मठ के साथ संग्रहालय स्थित है। इस संग्रहालय में पौराणिक पाडुंलिपी प्रदर्शित की गई थी तथा बहुमूल्य हस्तलिपि तिब्बत की प्राचीन संस्कृति को दर्शाती है। पहाड़ों में रहने वाले स्थानीय लोग मोपा शांतिपूर्ण स्वभाव के हैं तथा पारम्परिक तौर से ज़िंदगी गुज़ारते हैं।

धार्मिक मान्यताओं में वे भूटान में रहने वाले लोगों के समान हैं। धर्म जीवन का अहम हिस्सा है। मोपा निवासियों के घर पत्थरों से बने होते हैं तथा उनकी हाथ की बुनी हुई वस्तुओं में तिब्बत की कला झलकती है। सुंदर, कल कल करते बहते जलाशय के आस पास आर्किड के फूल झूमती, लहराते हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य के लिए यह स्थल बहुत प्रसिद्ध है। ‘कोयल’ फिल्म में यहाँ के दृश्यों को दिखाया गया है। इस बात को बड़े गर्व के साथ यहाँ के स्थानीय निवासी वह स्थान ले जाकर दिखाते हैं जहाँ पर फिल्म की शूटिंग हुई थी।

सफर को आगे बढ़ाते हुए हमने देखा था कि दीरंग वादियाँ इतनी ऊँचाई पर स्थित हैं कि चढ़ने में बहुत ही कठिन कार्य लगता है। मैंने देखा कि यह रास्ता भारतीय सड़क सीमा संगठन के नियंत्रण में है।

वहाँ से गुजरते हुए सेला पास पर बहती क़ड़क ठंड से बचने के लिए ढाबे में आश्रय लिया। वहाँ की गर्माहट ने हमारी ठंडक दूर कर दी थी।

किस प्रकार से पहुँचें : -

त्वांग पहुँचने के लिए इनर लाईन परमिट की ज़रूरत होती है

यदि आप इस स्थल का आनंद उठाना चाहते हैं तो सबसे अच्छा समय भ्रमण के लिए है कि जब लोसर तथा तोर्ग्या का त्योहार मनाया जाता है

पर्वों के दौरान ड्रैगन नृत्य पर्यटकों को आकर्षित करते है

यह नृत्य भारत-तिब्बत की मिली-जुली संस्कृति को प्रदर्शित करता है।



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