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प्रकृति का एक अचम्भा है चम्बा

चम्बा पर एक नजर

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विख्यात कलापारखी और डच विद्वान डॉ. बोगल ने चम्बा को यूँ ही 'अचंभा' नहीं कह डाला था और सैलानी भी यूँ ही इस नगरी में नहीं खिंचे चले आते हैं। हिमाचलप्रदेश स्थित चम्बा की वादियों में कोई ऐसा सम्मोहन जरूर है जो सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है और वे बार-बार यहाँ दस्तक देने को लालायित रहते हैं।

यहाँ मंदिरों से उठती धार्मिक गीतों की स्वरलहरियाँ जहाँ परिवेश को आध्यात्मिक बना देती हैं, वहीं रावी नदी की मस्त रवानगी और पहाड़ों की ओट से आते शीतल हवा के झोंके सैलानी को ताजगी का अहसास कराते हैं।

चम्बा में कदम रखते ही इतिहास के कई वर्क परिंदों के पंखों की तरह फड़फड़ाने लगते हैं और यहाँ की प्राचीन प्रतिमाएँ संवाद को आतुर हो उठती हैं। चम्बा की खूबसूरत वादियों को ज्यों-ज्यों हम पार करते जाते हैं, आश्चर्यों के कई नए वर्क हमारे सामने खुलते चले जाते हैं और प्रकृति अपने दिव्य सौंदर्य की झलक हमें दिखाती चलती है।

चम्बा के संस्थापक राजा साहिल वर्मा ने सन्‌ 920 में इस शहर का नामकरण अपनी बेटी चंपा के नाम पर क्यों किया था, इस बारे में एक बहुत ही रोचक किंवदंती प्रचलित है। कहा जाता है कि राजकुमारी चंपावती बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की थीं और नित्य स्वाध्याय के लिए एक साधु के पास जाया करती थीं। एक दिन राजा को किसी कारणवश अपनी बेटी पर संदेह हो गया।

शाम को जब साधु के आश्रम में बेटी जाने लगी तो राजा भी चुपके से उसके पीछे हो लिया। बेटी के आश्रम में प्रवेश करते ही जब राजा भी अंदर गया तो उसे वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया। लेकिन तभी आश्रम से एक आवाज गूँजी कि उसका संदेह निराधार है और अपनी बेटी पर शक करने की सजा के रूप में उसकी निष्कलंक बेटी छीन ली जाती है।

साथ ही राजा को इस स्थान पर एक मंदिर बनाने का आदेश भी प्राप्त हुआ। चंबा नगर के ऐतिहासिक चौगान के पास स्थित इस मंदिर को लोग चमेसनी देवी के नाम से पुकारते हैं। वास्तुकला की दृष्टि से यह मंदिर अद्वितीय है। इस घटना के बाद राजा साहिल वर्मा ने नगर का नामकरण राजकुमारी चंपा के नाम कर दिया, जो बाद में चम्बा कहलाने लगा।

चम्बा में मंदिरों की बहुतायत होने के कारण इसे 'मंदिरों की नगरी' भी कहा जाता है। यहाँ लगभग 75 मंदिर हैं और इनके बारे में अलग-अलग किंवदंतियाँ हैं। इनमें से कई मंदिर शिखर शैली के हैं और कई पर्वतीय शैली के। लक्ष्मीनारायण मंदिर समूह तो चम्बा का सर्वप्रसिद्ध देवस्थल है।

इस मंदिर समूह में महाकाली, हनुमान, नंदीगण के मंदिरों के साथ-साथ विष्णु व शिव के तीन-तीन मंदिर हैं। सिद्ध चर्पटनाथ की समाधि भी यहीं है। मंदिर में अवस्थित लक्ष्मीनारायण की बैकुंठ मूर्ति कश्मीरी व गुप्तकालीन निर्माण कला का अनूठा संगम है। इस मूर्ति के चार मुख व चार हाथ हैं। मूर्ति की पृष्ठभूमि में तोरण है, जिस पर दस अवतारों की लीला चित्रित है।

लक्ष्मीनारायण मंदिर की ही तरह रानी सूही का मंदिर भी सैलानियों व श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह मंदिर सफेद संगमरमर का बना है। चम्बा में भूरीसिंह नाम का एक संग्रहालय है, जहाँ चम्बा घाटी की हर कला सुशोभित है। इस संग्रहालय का निर्माण चम्बा नरेश भूरीसिंह ने डच विद्वान डॉ. बोगल की प्रेरणा से किया था।

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