Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

भक्तों और तांत्रिकों का मंदिर कामाख्या

हमें फॉलो करें भक्तों और तांत्रिकों का मंदिर कामाख्या
webdunia
WDWD
असम की राजधानी गुवाहटी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर कामाख्या नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यह जगह शहर से 8 किलोमीटर की दूरी पर है।

यह मंदिर शक्ति की देवी सती को समर्पित है, जो स्त्री की ऊर्जा की प्रतीक हैं। दुर्गा के 1008 शक्तिपीठों में से एक होने की वजह से यहाँ देवी भक्तों का पूरे साल ताँता लगा रहता है।

पुराणों के अनुसार जब राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, तो उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रण भेजे। बस अपने जामाता शिव और बेटी सती को उन्होंने इसकी कोई सूचना नहीं दी।

सती बिना बुलाए अपने पिता के घर चली आईं और जब उन्होंने देखा कि उनके पति का अपमान हो रहा है, तो उसी यज्ञ कुंड में कूद गईं।

नाराज शिव उनके शव को ले कर यहाँ-वहाँ घूमते रहे। उनके शरीर के अंग जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई। कामाख्या में देवी सती का योनि भाग गिरा जो प्रजनन अंग है और इसलिए इस मंदिर की बहुत अधिक महत्ता है।
असम की राजधानी गुवाहटी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर कामाख्या नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यह जगह शहर से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती को समर्पित है, जो स्त्री की ऊर्जा की प्रतीक हैं।
webdunia


यह मंदिर गुफा में है, मंदिर में देवी को कोई मूर्ति नहीं है। गुफा की दीवार में ही भित्ति चित्र की शैली में गोल चित्र अंकित है। गुफा में प्राकृतिक रूप से नमी रहती है और योनि भाग से बूँद-बूँद पानी गिरता रहता है। मंदिर को हर महीने 3 दिन बंद रखा जाता है। माना जाता है कि ये दिन माहवारी के होते हैं। चौथे दिन बहुत धूमधाम से मंदिर को खोला जाता है।

इस दौरान उत्सव का माहौल होता है। इस उत्सव को अंबूवकी (अमीती) कहा जाता है। असम के किसान इन 3 दिनों में बुवाई का काम रोक देते है। माना जाता है कि इस दौरान बुवाई करने से फसल अच्छी नहीं होती।

कैसे पहुँचें : गुवाहटी भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। यहाँ तक पहुँचने के लिए ट्रेन, बस व हवाई सेवाएँ उपलब्ध हैं। गुवाहटी को उत्तर-पूर्व का द्वार कहा जाता है।

रेल मार्ग: गुवाहटी तक राजधानी एक्सप्रेस, नार्थ इस्ट एक्सप्रेस, ब्रह्मपुत्र मेल, अवध असम एक्सप्रेस, कामरूप एक्सप्रेस, कंचनजंघा एक्सप्रेस, सरायघाट एक्सप्रेस, दादर एक्सप्रेस, कोचीन एक्सप्रेस, त्रिवेंद्रम एक्सप्रेस और बंगलोर एक्सप्रेस द्वारा पहुँचा जा सकता है।

वायु मार्ग: दिल्ली और कोलकाता से गुवाहटी हवाई मार्ग से सीधा जुड़ा हुआ है। इंडियन एअरलाइंस, जेट एअरवेज और एअर डेक्कन की नियमित उड़ानें यहाँ के लिए उपलब्ध हैं।

कैसे घूमें : स्थानीय आवागमन के साधनों में बस, ऑटो रिक्शा, कार और जीप आसानी से मिल जाते हैं।

कहाँ ठहरें : गुवाहटी में हर रेंज के होटल उपलब्ध हैं। स्टेशन और बस स्टैंड के आसपास रियायती दरों पर लॉज और होटल आसानी से मिल जाते हैं।

अन्‍य आकर्षण: कामाख्या के मुख्य दर्शन के बाद बहुत सी जगहें है, जो देखी जा सकती हैं।

* वशिष्ठ आम : गुवाहटी से मात्र 12 मिलोमीटर दूरी पर स्थित है। प्राचीन काल में यहाँ वशिष्ठ ऋषि का आम था। यहाँ की हरियाली और सुरम्य वातावरण यात्रियों को पर्यटन का अलग अनुभव देते हैं।

* उमानंद मंदिर : ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में टापू पर बना यह बहुत ही खूबसूरत मंदिर है। यह भगवान शिव का मंदिर हैं, जहाँ हर वक्त भक्तों का मेला लगा रहता है। कचारी घाट से मंदिर जाने के लिए नाव और मोटर बोट चलती हैं।

* नवग्रह मंदिर : माना जाता है कि प्राचिन काल में यह खगोल शास्त्र अध्ययन का सबसे बड़ा केंद्र था। इस मंदिर में 9 ग्रहों की मूर्तियां हैं और यह गुवाहटी से 3 किलोमीटर की दूरी पर है।

* हाजो : यह गुवाहटी से पश्चिम में 25 किलोमीटर की दूरी पर है। इसकी स्थापना एक ईराकी उपदेशक ने की थी, जो 12वीं शताब्दी में असम में ज्ञान फैलाने के उद्देश्य से आया था। यहाँ पर हिंदू, मुसलमान और बौद्ध सभी धर्म के अनुयायी समान रूप से आते हैं। यहाँ पर महादेव मंदिर भी है, जहाँ तक पहुँचने के लिए लंबी पत्थर की सीढि़याँ होती हैं। यहाँ एक बड़ा तालाब भी है, जिसमें बड़े कछुए पाए जाते हैं।

विशेष उत्सव : नवरात्रि यहाँ का विशेष पर्व है। हर साल यहाँ लाखों की संख्या में भक्त आते हैं और माँ के दर्शन कर अपनी मनोकामना के लिए आशीर्वाद लेते हैं। इसके अलावा हर महीने अमीती के अवसर पर होनेवाली पूजा भी बहुत धूमधाम से होती है और दूर-दूर से लोग इसमें शामिल होने के लिए विशेष रूप से यहाँ आते हैं।

कामाख्या का महत्‍व:
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देवी को शक्ति रूप माना जाता है। शक्ति के उपासकों के लिए यह स्थान और महत्वपूर्ण इसलिए माना जाता है, क्योंकि यहाँ योनि भाग के प्रतीक की पूजा होती है और यह भाग जनन क्षमता को लक्षित करता है। भारत में कम मंदिरों में आज के जमाने में बलि दी जाती है। बलि पूजा स्वीकार होने की वजह से इसे तांत्रिकों का मंदिर भी कहा जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi