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बड़केश्वर महादेव मंदिर

- अशोक गुप्ता

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बड़केश्वर महादेव का अति प्राचीन व मनोरम स्थल विंध्याचल में अलौकिक प्राकृतिक वैभव प्राप्त धार्मिक क्षेत्र है। प्राकृतिक सुषमा से आच्छादित यह रम्य धर्मस्थल कुक्षी (धार) से 13 कि.मी. दूर स्थित है। प्राकृतिक छटा से आच्छादित यह स्थान यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है। श्रावण मास में भगवान शिव के साक्षात वासस्थल का महत्व और अधिक हो जाता है।

यहाँ मुख्य पर्व महाशिवरात्रि पर धर्मालुओं का ताँता लग जाता है। इस रमणीय स्थल पर निमाड़ एवं मालवा क्षेत्र के प्रसिद्ध 7 दिवसीय मेले का आयोजन जनपद पंचायत कुक्षी द्वारा किया जाता है। महाशिवरात्रि पर भगवान श्री बड़केश्वर महादेव का चित्ताकर्षक श्रंगार किया जाता है। प्राचीन मान्यता है कि यहाँ महाशिवरात्रि पर मध्यरात्रि की भस्मार्ती के समय प्रकृति केसर से शिवजी का अभिषेक करती है। केसर के छींटे इस स्थल पर इस समय गिरते हैं।

महाकालेश्वर पीठ के अधीन इस बड़केश्वर महादेव मंदिर से अनेक जनश्रुतियाँ व किंवदंतियाँ जुड़ी हैं। इस मंदिर का निर्माण ग्वालियर राज्य द्वारा पर्वत को काटकर करवाया गया था। मंदिर एक गुफानुमा है। इसमें कोठीनुमा शिवलिंग स्थित है। इस पर्वतमाला की तलहटी में बहने वाला ओम की आकृति निर्मित नाला तथा मंथर गति से बहने वाला झरना मनभावन दृश्य उपस्थित करते हैं। मंदिर के ठीक सामने पुलिया-सह-स्टॉपडेम में पानी संग्रहीत होने से यहाँ बड़ा ही रमणीक एवं मनमोहक दृश्य दिखाई देता है।

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बड़केश्वर महादेव की पूजा-अर्चना पुरी संप्रदाय के वंशज 12 पुश्तों से करते आ रहे हैं। फाल्गुन सुदी एकादशी से प्रारंभ होने वाले महाशिवरात्रि मेले के प्रारंभ होने के पूर्व महाकालेश्वर मंदिर पर ध्वज एवं नगाड़े का पूजन कर यात्रा प्रारंभ होती है। दूसरे दिन बड़केश्वर पहुँचने पर पूजन पश्चात नगाड़े एवं ध्वज को मंदिर से कुछ दूरी पर रखा जाता है। पश्चात माँ भगवती पार्वतीजी का पूजन होता है।

प्रारंभ में सूखी लकड़ी की टहनियों को रगड़कर अग्नि मंथन द्वारा अग्नि प्रज्वलित की जाती है। इस अग्नि पर सवा पाँच किलो आटे का रोट सेका जाता है, जिसका भोग लगता है। पश्चात इस अग्नि को अखंड धूने में पूर्णतः प्रवाहित किया जाता है। इस क्रिया के होने के पूर्व मेले में अग्नि नहीं जलाई जाती है।

मंदिर की दाईं और देवीजी का खप्पर भी भरा जाता है। खप्पर में देवी के श्रंगार व पूजन की सामग्री रखकर सिंदूर से देवीजी का पारा बनाया जाता है। मंदिर की बाईं और कुछ दूरी पर कुएँ एवं तीन कुंड भी बने हैं। इस प्राचीन कुंड में नाग एवं सूर्य के चिन्ह बने हुए हैं, जो कि ग्वालियर राज्य के हैं।

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बड़केश्वर महादेव मंदिर से पूर्व की ओर कुछ दूरी पर नाले में पहाड़ी की तलहटी पर एक गुफा के अंदर दूधिया महादेव का स्थान है। इस गुफा में स्थित शिवलिंग पर जल मिश्रित धवल दुग्ध धारा अविरल गिरती रहती है।

आदिवासियों के प्रणय पर्व भगोरिया पर्व का प्रारंभ भी बड़केश्वर मेले से होता है। आदिवासी युवक-युवतियाँ ढोल एवं मांदल की थाप के साथ फागुन की मस्ती में डूबने के पूर्व बड़केश्वर महादेव के सम्मुख ढोल-मांदल बजाकर रंग-गुलाल के पर्व की शुरुआत करते हैं। अमावस्या के दिन मेले में पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे आदिवासी नवयुवक हाथ में बाँसुरी लिए मधुर तान छेड़कर माहौल में उत्साह का रंग घोलते हैं। सुंदर आदिवासी वेशभूषा में आभूषणों से सजी-सँवरी युवतियाँ मांदल की थाप पर नृत्य करती हैं। इस मेले के पश्चात प्रणय पर्व भगोरिया प्रारंभ होता है।

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