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शीतला माता मंदिर

प्राचीन माता घाट मंदिर

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भोपाल की बड़ी झील के किनारे वीआईपी रोड स्थित शीतला माता मंदिर शहर के प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में करीब ढाई सौ वर्ष पुरानी माता शीतलादेवी एवं वीर महाराज की प्रतिमाएँ आज भी उसी स्थान पर विराजमान हैं। समय के साथ-साथ इस मंदिर को भी काफी उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरना पड़ा। यह मंदिर हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र है, जहाँ वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान शहर की आधी से अधिक आबादी इस मंदिर में माता पूजन के लिए पहुँचती है।

मंदिर के वर्तमान पुजारी पं. जितेन्द्र दुबे के अनुसार बड़े तालाब के किनारे फतेहगढ़ क्षेत्र में स्थित यह मंदिर शुरू में खुले स्थान पर था। नीम, पीपल व बरगद के पेड़ के नीचे माता शीतलादेवी एवं वीर महाराज की प्रतिमाएँ विराजमान थीं। उस समय यहाँ ऊबड़-खाबड़ पथरीला क्षेत्र था।

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हिन्दू परिवारों की माँग पर सुल्तान जहांबेगम ने यह जमीन हिन्दुओं को दान में दे दी। इसके बाद भोपाल रियासत के प्रधानमंत्री राजा अवध नारायण बिसारिया के निर्देश पर यहाँ चबूतरे का निर्माण किया गया। मंदिर एक शेड के नीचे स्थापित रहा, जिसे बाद में जन सहयोग से बनवाया गया। स्व. ठाकुर प्रसाद दुबे (खड्डर महाराज) ने इस मंदिर की देखभाल की।

इस मंदिर का मुख्य आयोजन शीतला सप्तमी होता है। रंगपंचमी से चौदस तक यहाँ पूजन होता है, जिसमें बासी भोजन (बसौड़ा) चढ़ाया जाता है। दोनों नवरात्रों में अखण्ड ज्योति स्थापना के अलावा सप्तमी पर महाआरती और नवमी पर हवन के बाद भण्डारा आयोजित किया जाता है।

मंदिर में स्थापित वीर महाराज की प्रतिमा मोतीझिरा से पीडि़त व्यक्ति को रोग मुक्ति देते हैं। कहावत है कि वीर महाराज की प्रतिमा पर जल चढ़ाने से पीडि़त व्यक्ति मोतीझिरा के प्रकोप से मुक्त हो जाता है।

भोपाल में यही एक मंदिर है, जहाँ मोतीझिरा से मुक्ति मिलती है। वर्ष 2006 से मंदिर के जीर्णोद्घार का कार्य चल रहा है। इस मंदिर पर 70 फीट ऊँचा शिखर बनना प्रस्तावित है, जो कि पूर्ण रूप से प्राचीन स्वरूप में होगा। मंदिर में छत निर्माण के साथ ही उसे भव्यता प्रदान की जा रही है।

भोपाल शहर का यह प्राचीन धार्मिक स्थल माता घाट के नाम से श्रद्धालुओं में प्रसिद्ध हैं।

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