शक्ति के उपासकों के लिए गुजरात का अंबाजी मंदिर बहुत महत्व रखता है। मां अंबा-भवानी के शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के प्रति मां के भक्तों में अपार श्रद्धा है। यह मंदिर बेहद प्राचीन है। मंदिर के गर्भगृह में मां की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है।
यहां मां का एक श्रीयंत्र स्थापित है। इस श्रीयंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि मां अम्बे यहां साक्षात विराजी हैं। अंबाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था। वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहां आ चुके हैं।
शक्तिस्वरूपा अंबाजी देश के अत्यंत प्राचीन 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। वस्तुतः हिन्दू धर्म के प्रमुख बारह शक्तिपीठ हैं।
इनमें से कुछ शक्तिपीठ हैं- कांचीपुरम का कामाक्षी मंदिर, मलयगिरि का ब्रह्मारंब मंदिर, कन्याकुमारी का कुमारिका मंदिर, अमर्त-गुजरात स्थित अंबाजी का मंदिर, कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर, प्रयाग का देवी ललिता का मंदिर, विंध्या स्थित विंध्यवासिनी माता का मंदिर, वाराणसी की मां विशालाक्षी का मंदिर, गया स्थित मंगलावती और बंगाल की सुंदर भवानी और असम की कामख्या देवी का मंदिर। ज्ञात हो कि सभी शक्तिपीठों में मां के अंग गिरे हैं।
मां अंबाजी मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है। इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम 1975 से शुरू हुआ था और तब से अब तक जारी है। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर का शिखर एक सौ तीन फुट ऊंचा है। शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं।
मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर नामक पहाड़ है। इस पहाड़ पर भी देवी मां का प्राचीन मंदिर स्थापित है। माना जाता है यहां एक पत्थर पर मां के पदचिह्न बने हैं। पदचिह्नों के साथ-साथ मां के रथचिह्न भी बने हैं। अंबाजी के दर्शन के उपरान्त श्रद्धालु गब्बर जरूर जाते हैं।
या देवीसर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै-नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः...
आकर्षण- नवरात्रि में यहां का पूरा वातावरण शक्तिमय रहता है। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में गरबा करके शक्ति की आराधना की जाती है।
समूचे गुजरात से कृषक अपने परिवार के सदस्यों के साथ मां के दर्शन के लिए एकत्रित होते हैं। व्यापक स्तर पर मनाए जाने वाले इस समारोह में ‘भवई’ और ‘गरबा’ जैसे नृत्यों का प्रबंध किया जाता है। साथ ही यहां पर ‘सप्तशती’ (मां की सात सौ स्तुतियां) का पाठ भी आयोजित किया जाता है।
हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा के मौके पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं। भाद्रपदी पूर्णिमा को इस मंदिर में एकत्रित होने वाले श्रद्धालु पास में ही स्थित गब्बरगढ़ नामक पर्वत श्रृंखला पर भी जाते हैं, जो इस मंदिर से दो मील दूर पश्चिम की दिशा में स्थित है। प्रत्येक माह पूर्णिमा और अष्टमी तिथि पर यहां मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
कैसे पहुंचें- आप अहमदाबाद से हवाई सफर भी कर सकते हैं। अंबाजी मंदिर अहमदाबाद से 180 किलोमीटर और माउंटआबू से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
अंबाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। आप यहां राजस्थान या गुजरात जिस भी रास्ते से चाहें पहुंच सकते हैं। यहां से सबसे नजदीक स्टेशन माउंटआबू का पड़ता है।
गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित विख्यात तीर्थस्थल अंबाजी मंदिर मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक है तथा यहां वर्षपर्यंत भक्तों का रेला लगा रहता है।