अमरनाथ की यात्रा आषाढ़ माह के मध्य में प्रारंभ होती है जो सावन माह के मध्य तक चलती है। यह तो सभी जानते हैं कि यहां पर बर्फ का शिवलिंग निर्मित होता है, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि यह शिवलिंग कैसे बनता है? और वह भी ठोस बर्फ का शिवलिंग।
1. गुफा की परिधि लगभग 150 फुट है और इसमें ऊपर से बेहद ही ठंडे पानी की बूंदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर सेंटर में एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली बूंदें लगभग दस फुट लंबे शिवलिंग में परिवर्तन हो जाती है।
2. आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि अन्य जगह टपकने वाली बूंदों से कच्ची बर्फ बनती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाती है और जो समय के साथ तुरंत ही पिघल भी जाती है।
3. गुफा के सेंटर में पहले बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। चंद्र की कलाओं के साथ हिमलिंग बढ़ता है और उसी के साथ घटकर लुप्त हो जाता है।
4. चंद्र का संबंध शिव से माना गया है। ऐसे क्या है कि चंद्र का असर इस हिमलिंग पर ही गिरता है अन्य गुफाएं भी हैं जहां बूंद बूंद पानी गिरता है लेकिन वे सभी हिमलिंग का रूप क्यों नहीं ले पाते हैं?
5. अमरनाथ गुफा के क्षेत्र में और भी कई तरह कई गुफाएं हैं जहां पर भी सेंटर में बूंद बूंद पानी गिरता है लेकिन वहां शिवलिंग निर्मित नहीं होता है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं और वहां पर छत से बूंद-बूंद पानी टपकता है लेकिन वहां कोई शिवलिंग नहीं बनता।
6. अमरनाथ के मूल शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड भी बन जाते हैं।