* देशभर में विराजित मां शाकंभरी के शक्तिपीठ जानिए...
देशभर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं। पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय माताजी के नाम से स्थित है। दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और तीसरा स्थान उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलोमीटर की दूर पर स्थित है।
शक्तिपीठ 1 :-
मां शाकंभरी का पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय माताजी के नाम से स्थित है। यह स्थान सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव अपने भाइयों व परिजनों का युद्ध में वध (गोत्र हत्या) के पाप से मुक्ति पाने के लिए अरावली की पहाड़ियों में रुके थे। युधिष्ठिर ने पूजा-अर्चना के लिए देवी मां शर्करा की स्थापना की थी, वहीं अब शाकंभरी तीर्थ है।
श्री शाकंभरी माता का यह गांव सकराय अब आस्था का केंद्र है। सुरम्य घाटियों के बीच बना शेखावटी प्रदेश के सीकर जिले में यह मंदिर स्थित है।
यह मंदिर सीकर से 56 किमी दूर अरावली की हरी वादियों में बसा है। झुंझनूं जिले के उदयपुरवाटी के समीप यह मंदिर उदयपुरवाटी गांव से 16 किमी दूरी पर है। यहां के आम्रकुंज, स्वच्छ जल का झरना आने वाले भक्तों को का मन मोहित कर लेते हैं। आरंभ से ही इस शक्तिपीठ पर नाथ संप्रदाय वर्चस्व रहा है, जो आज तक भी कायम है।
इस मंदिर में लगे शिलालेखों के अनुसार मंदिर के मंडप आदि बनाने में धूसर तथा धर्कट के खंडेलवाल वैश्यों ने सामूहिक रूप से धन इकट्ठा किया था। यह मंदिर खंडेलवाल वैश्यों की कुलदेवी के मंदिर के रूप में विख्यात है।
इस मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में किया गया था। विक्रम संवत् 749 के एक शिलालेख प्रथम छंद में गणपति, द्वितीय छंद में नृत्यरत चंद्रिका एवं तृतीय छंद में धनदाता कुबेर की भावपूर्ण स्तुति लिखी हुई है। यहां देवी शंकरा, गणपति तथा धन स्वामी कुबेर की प्राचीन प्रतिमाएं भी देखने को मिलती हैं। इस मंदिर के आसपास जटाशंकर मंदिर तथा श्री आत्ममुनि आश्रम भी हैं। नवरात्रि के दौरान 9 दिनों में यहां उत्सव का आयोजन होता है। सालभर इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता हैं।
शक्तिपीठ 2 :-
दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप 'शाकंभर' के नाम से स्थित है। शाकंभरी माता सांभर की अधिष्ठात्री देवी हैं और इस शक्तिपीठ से ही इस कस्बे ने अपना यह नाम पाया। सांभर की अधिष्ठात्री तथा चौहान राजवंश की कुलदेवी शाकंभरी माता का यह प्रसिद्ध मंदिर सांभर से लगभग 15 किमी की दूरी पर है। यहां की सांभर झील भी शाकंभरी देवी के नाम पर प्रसिद्ध है।
महाभारत के अनुसार यह क्षेत्र असुर राज वृषपर्व के साम्राज्य का एक भाग था और यहां पर असुरों के कुलगुरु शुक्राचार्य निवास करते थे। इसी स्थान पर शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का विवाह नरेश ययाति के साथ संपन्न हुआ था। देवयानी को समर्पित एक मंदिर झील के पास स्थित है। यहां शाकंभरी देवी को समर्पित एक मंदिर भी उपस्थित है। समस्त भारत में शाकंभरी माता का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर यही है जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि देवी की प्रतिमा भूमि से स्वत: प्रकट हुई थी।
एक अन्य मान्यता के अनुसार शाकंभरी देवी चौहान राजपूतों की रक्षक देवी हैं। जब वन-संपदा को लेकर होने वाले संभावित झगड़ों से सांभर प्रदेश के लोग चिंतित हो गए थे, तब देवी ने यहां स्थित इस वन को बहुमूल्य धातुओं के एक मैदान में परिवर्तित कर दिया था। तब इसे एक वरदान के स्थान पर श्राप समझने लगे। लोगों ने देवी से अपना वरदान वापस लेने की प्रार्थना की, तो देवी ने सारी चांदी को नमक में परिवर्तित कर दिया था ऐसा माना जाता है।
यहां शाकंभरी देवी के मंदिर के अलावा पौराणिक राजा ययाति की दोनों रानियों देवयानी और शर्मिष्ठा के नाम पर एक विशाल सरोवर एवं कुंड भी विद्यमान है, जो यहां के प्रमुख तीर्थस्थलों के रूप में विख्यात है।
शक्तिपीठ 3 :-
मां शाकंभरी का तीसरा स्थान उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस सिद्धपीठ में माता शाकंभरी देवी, भीमा देवी, भ्रामरी देवी व शताक्षी देवी भी प्रतिष्ठित हैं। कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर दूरी पर है। यहां पर माता शाकंभरी कल-कल बहती नदी की जल धारा, ऊंचे पहाड़ और जंगलों के बीच विराजती हैं।
कहा जाता है शाकंभरी देवी की आराधना करने वालों का घर हमेशा अन्न के भंडार से भरा रहता है। यह माता अपने भक्तों को धन-धान्य से परिपूर्ण होने का आशीर्वाद देती हैं। शिवालिक पर्वत श्रेणी में विराजित माता शाकंभरी देवी का यह प्रख्यात तीर्थस्थल है।