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शीतला माता का सबसे प्राचीन मंदिर, जहां जाने से होती है मनोकामना पूर्ण

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अनिरुद्ध जोशी

शीतला माता की पूजा शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी पर की जाती है। शीतला माता के यूं तो कई प्रचीन मंदिर है जैसे राजस्थान के पाली जिले में, जबलपुर के पास पालन में घमापुर-शीतलामाई मार्ग पर और भोपाल की बड़ी झील के किनारे वीआईपी रोड स्थित शीतला माता मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है लेकिन गुड़गांव में जो मंदिर है उसे सबसे खास माना जाता है।
 
 
गुड़गांव गुरुग्राम में शीतला माता का प्राचीन मंदिर स्थित है। देश के सभी प्रदेशों से श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने आते हैं। गुड़गांव का शीतला माता मंदिर देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहां साल में दो बार एक-एक माह का मेला लगता है। यहां के शीतला माता मंदिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है।
 
महाभारत के समय में भारतवंशियों के कुल गुरु कृपाचार्य की बहन और महर्षि शरद्वान की पुत्री शीतला देवी (गुरु मां) के नाम से गुरु द्रोण की नगरी गुड़गांव में शीतला माता की पूजा होती है। लगभग 500 सालों से यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। लोगों की मान्यता है कि यहां पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने, जिन्हें स्थानीय बोलचाल में (माता) कहते हैं, नहीं निकलते।
 
प्रचलित मान्यता के अनुसार जब गुरु द्रोण महाभारत के युद्ध में द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा वीरगति को प्राप्त हुए, तो उनकी पत्नी कृपि अपने पति के साथ सती होने के लिए तैयार हुई तो लोगों ने उनको सती होने से रोका परंतु माता कृपि सती होने का निश्चय करके अपने पति की चिता पर बैठ गईं। बैठते वक्त उन्होंने लोगों को आशीर्वाद दिया कि मेरे इस सती स्थल पर जो भी अपनी मनोकामना लेकर पहुंचेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी।

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