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महाशिवरात्रि 2025 : महाभारत के अर्जुन से कैसे जुड़ा है दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर का इतिहास?

जानिए तुंगनाथ महादेव से जुड़ी 10 रहस्यमयी बातें, जो आपको नहीं पता होंगी

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हमें फॉलो करें महाशिवरात्रि 2025 : महाभारत के अर्जुन से कैसे जुड़ा है दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर का इतिहास?

WD Feature Desk

, बुधवार, 19 फ़रवरी 2025 (12:24 IST)
Tungnath Temple History : महाशिवरात्रि आते ही शिव भक्तों में एक अलग ही ऊर्जा देखने को मिलती है। हर तरफ "हर हर महादेव" के जयकारे गूंजते हैं और शिवालयों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इसी के चलते, आज हम आपको दुनिया के सबसे ऊंचे, सुप्रसिद्ध शिव मंदिर के बारे में कुछ ऐसी रहस्यमयी बातें बताएंगे, जो शायद आपने पहले कभी नहीं सुनी होंगी। हिंदू धर्म में भगवान शिव के अनगिनत पवित्र धाम हैं, लेकिन तुंगनाथ महादेव का स्थान उनमें सबसे ऊंचा और रहस्यमयी है। उत्तराखंड की खूबसूरत पहाड़ियों में स्थित यह मंदिर ना सिर्फ धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि अपने ऐतिहासिक, वास्तुशिल्पीय और रहस्यमयी तथ्यों के कारण भी यह श्रद्धालुओं और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में समुद्र तल से 3680 मीटर (12073 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। इस महाशिवरात्रि पर आइए जानते हैं तुंगनाथ महादेव के इतिहास, निर्माण की कथा, इन 10 रहस्यमयी और रोचक तथ्यों में, जो आपको चौंका सकते हैं।
 
1. दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर: तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से लगभग  3,640 से 3,680 मीटर (12,073 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जो इसे विश्व का सबसे ऊंचा शिव मंदिर बनाता है। यह मंदिर कत्यूरी शैली में निर्मित है, जिसमें पत्थरों को जोड़कर विशेष संरचना बनाई गई है। यहां से चंद्रशिला शिखर, चोपता, देवरिया ताल, रोहिणी बुग्याल और मध्यमहेश्वर मंदिर जैसी जगहें देखने लायक हैं, जो ट्रेकिंग और प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग समान हैं। बर्फ से ढकी चोटियां, हरे-भरे घास के मैदान और 360 डिग्री का मनोरम दृश्य इसे खास बनाते हैं। ट्रेकिंग, कैंपिंग और ध्यान के लिए यह स्थान बेहद लोकप्रिय है, जहां हर साल हजारों यात्री शांति और रोमांच की तलाश में आते हैं।
 
2. पंच केदार में तृतीय स्थान: यह मंदिर पंच केदार में तीसरे स्थान पर आता है और यह भगवान शिव के पंचकेदार मंदिरों में से एक है, जो महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। 
 
3. महाभारत और पांडवों का कनेक्शन: स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, तुंगनाथ मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था और इसकी नींव अर्जुन ने रखी थी। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद, पांडव अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की खोज में हिमालय पहुंचे। शिवजी ने उन्हें भैंस के रूप में दर्शन दिए, लेकिन पांडवों से बचने के लिए भूमिगत हो गए। बाद में उनके शरीर के विभिन्न अंग पांच स्थानों पर प्रकट हुए, जिन्हें पंचकेदार कहा जाता है। तुंगनाथ मंदिर उस स्थान पर स्थित है, जहां भगवान शिव के हाथ मिले थे, और यही कारण है कि इसका नाम तुंगनाथ पड़ा।
 
4. कभी कोई मंदिर के शिखर को छू नहीं सकता: यह मान्यता है कि जो भी इस मंदिर के शीर्ष को छूने की कोशिश करता है, उसे कोई अनहोनी का सामना करना पड़ता है। 
 
5. भगवान शिव की भुजाओं की पूजा: पवित्र ग्रंथों के अनुसार, तुंगनाथ मंदिर में भगवान शिव की भुजाओं की पूजा शिवलिंग रूप में की जाती है, जो उनकी शक्ति, सृजन और रक्षा के प्रतीक हैं। भक्त इस पूजा के माध्यम से शिव की दिव्य ऊर्जा और आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं। 3,680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक भी है। हिमालय की कठिन चढ़ाई और प्राकृतिक सुंदरता के बीच यहां की यात्रा भक्तों के लिए एक दिव्य अनुभव बन जाती है।
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6. भगवान राम से जुड़ी मान्यता: पुराणों के अनुसार, भगवान राम ने रावण दहन के बाद ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए तुंगनाथ के पास चंद्रशिला की पहाड़ी पर ध्यान और तप किया था। समुद्र तल से लगभग 14,000 फीट ऊंची इस चोटी को रामजी की तपस्या का साक्षी माना जाता है, जिससे यह स्थान धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
 
7. मक्कूमठ में होती है शीतकालीन पूजा : सर्दियों में जब मंदिर बंद रहता है तो भगवान तुंगनाथ की पूजा मक्कूमठ नामक स्थान पर की जाती है। तुंगनाथ में सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी होती है, जिससे मंदिर को अस्थायी रूप से बंद कर दिया जाता है। इस दौरान भगवान शिव की प्रतीकात्मक मूर्ति को मक्कूमठ ले जाया जाता है, जहां पूजा-अर्चना होती है। अप्रैल से नवंबर के बीच मुख्य मंदिर में भक्तों को दर्शन और पूजा का अवसर मिलता है।
 
8. तुंगनाथ महादेव मेला: तुंगनाथ महादेव मेला हर साल अप्रैल या मई में मंदिर के द्वार खुलने के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है, जहां हजारों भक्त एकत्रित होते हैं। भक्ति गीतों, मंत्रों और पारंपरिक संगीत से मंदिर परिसर भक्तिमय हो जाता है। इस अवसर पर स्टॉल और अस्थायी दुकानें लगती हैं, जहां स्थानीय हस्तशिल्प और पारंपरिक व्यंजन मिलते हैं। मेले में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, लोक नृत्य और संगीत प्रदर्शन क्षेत्र की समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं। भगवान शिव को समर्पित अनुष्ठान और जुलूस इस आयोजन को धार्मिक रूप से और भी विशेष बना देते हैं।
 
9. कैसे पहुंचें तुंगनाथ मंदिर: तुंगनाथ पहुंचने के लिए हवाई, रेल और सड़क मार्ग तीनों विकल्प उपलब्ध हैं। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जहाँ से चोपता तक का सफर लगभग 220 किलोमीटर का होता है। ट्रेन यात्रा के लिए आप हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून रेलवे स्टेशन तक जा सकते हैं और वहाँ से बस या टैक्सी से चोपता पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग से यात्रा करने वाले यात्री दिल्ली से देहरादून या हरिद्वार होते हुए चोपता तक पहुंच सकते हैं, जो ऋषिकेश से लगभग 209 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
 
10. योग और ध्यान का केंद्र: तुंगनाथ मंदिर का शांत और दिव्य वातावरण इसे योग और ध्यान के लिए आदर्श स्थान बनाता है, जहां कई साधक आंतरिक शांति और आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश में आते हैं। कई लोग यहां ध्यान करने पर विशेष आध्यात्मिक अनुभूति की बात बताते हैं। यह प्राचीन मंदिर अपनी विस्मयकारी वास्तुकला, प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के कारण हिमालय का एक अनमोल रत्न है। भक्तों और प्रकृति प्रेमियों के लिए यह स्थल शांति और रोमांच का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। तुंगनाथ की यात्रा न केवल इतिहास के रहस्यों से परिचित कराती है, बल्कि भक्तों को दिव्यता और आध्यात्मिकता में डुबो देती है। 


अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। 

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