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खज्जी नागा मंदिर

भारत का स्विटजरलैंड है खजियार मंदिर

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- पून
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पथरीली मिट्टी की भीनी-भीनी सोंधी सी महक, दूर-दूर तक फैली कोमल-मनमोहक हरियाली के बीच मन मचलाने वाली रंगीन शाम किसे पसंद नहीं होगी। चीड़ और देवदार के ऊँचे-लंबे हरे-भरे पेडों के बीच बसा खजियार दुनिया के 160 मिनी स्विटजरलैंड में से एक है। यहाँ आकर सैलानियों को आत्मिक शांति और सुकून मिलता है। अप्रैल के बाद मई की झुलसाने वाली गर्मी से छुटकारा पाना है तो यह स्थान आपके लिए सपनों के शहर जैसा नजर आएगा।

पहाड़ी स्थापत्य कला में निर्मित 10वीं शताब्दी की यह प्रसिद्ध जगह धार्मिक स्थल खज्जी नागा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहाँ नागदेव की पूजा होती है। दिल्ली से 560 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान खूबसूरती और हरियाली के मामले में अपना अलग स्थान रखता है। सर्दी के मौसम में यहाँ बेहद ठंड रहती है। इसीलिए अप्रैल से जून के महीनों में यहाँ आना सबसे ज्यादा अच्छा माना जाता है।

चीड़ और देवदार के पेड़ों के बीच स्थित झील पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इस पाँच हजार वर्गफुट क्षेत्रफल में फैली झील को खजियार लेक के नाम से जाना जाता है। झील के बीचोबीच स्थित टापू पर बैठकर सैलानी घंटों इस प्रकृति की अनुपम धरोहर को निहारते रहते हैं।

यही कारण है कि चंबा के तत्कालीन राजा ने खजियार को अपनी राजधानी बनाया था। गर्मी के मौसम में शाम के समय जब हल्के कपड़ों में टहलने के लिए निकलते हैं तो यहाँ की ठंडी और अजीब से नशीली हवाएँ तन और मन दोनों को मदहोश कर देती हैं। रोमांच के शौकीन लोग पहाड़ी पगडंडियों पर चलकर ट्रैकिंग का मजा ले सकते हैं। पर यहाँ कब किसी जंगली जानवर से सामना हो जाए, कहना मुश्किल है।

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सड़क मार्ग से यहाँ आने के लिए चंबा या डलहौजी पहुँचने के बाद मुश्किल से आधा घंटे का समय लगता है। चंडीगढ़ से 352 और पठानकोट रेलवे स्टेशन से मात्र 95 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खजियार में खज्जी नागा मंदिर की बड़ी मान्यता है। मंदिर के मंडप के कोनों में पाँच पाँडवों की लकड़ी की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मान्यता है कि पाँडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहाँ आकर ठहरे थे।

यहाँ के सार्वजनिक निर्माण विभाग के रेस्ट हाउस के पास स्थित देवदार के छह समान ऊँचाई की शाखाओं वाले पेड़ों को पाँच पाँडवों और छठी द्रोपदी के प्रतीकों के रूप में माना जाता है। यहाँ से एक किमी की दूरी पर कालटोप वन्य जीव अभ्यारण्य में 13 समान ऊँचाई की शाखाओं वाले एक बड़े देवदार के वृक्ष को 'मदर ट्री' के नाम से जाना जाता है। यहाँ एक बार आने वाला बार-बार आना चाहेगा।

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