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पौराणिक काल की 10 अत्यंत सुंदर स्त्रियां और उनकी कहानियां

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पौराणिक यानी पुरातन या प्राचीन काल में भारत बहुत ही समृद्धि, खुशहाल और विकसित राष्ट्र था। प्रचीन काल की महिलाओं को हर तरह की स्वतंत्रता प्राप्त थी। हालांकि उस काल में सुंदर महिलाओं के साथ जीवन के कई खतरे भी जुड़े हुए थे। सभी कलाओं में दक्ष महिला ही खुद को सुरक्षित और स्थापित करने में सफल हो पाती थी। आओ जानते हैं पौराणिक काल की 10 अत्यंत सुंदर स्त्रियां और उनकी कहानियां।
 
हम यहां पर माता लक्ष्मी, मां सरस्वती और माता पार्वती, कामदेव पत्नी रति आदि को छोड़कर अन्य पौराणिक महिलाओं की बता कर रहे हैं।
 
1. अहिल्या : वी अहिल्या की कथा का वर्णन वाल्मीकि रामायण के बालकांड में मिलता है। अहिल्या अत्यंत ही सुंदर, सुशील और पतिव्रता नारी थीं। उनका विवाह ऋषि गौतम से हुआ था। दोनों ही वन में रहकर तपस्या और ध्यान करते थे। शास्त्रों के अनुसार शचिपति इन्द्र ने गौतम की पत्नी अहिल्या के साथ उस वक्त छल से सहवास किया था, जब गौतम ऋषि प्रात: काल स्नान करने के लिए आश्रम से बाहर गए थे। गौतम ऋषि को जब यह बात पता चली तो उन्होंने अहिल्या को पत्थर बन जाने के शाप दे दिया। फिर त्रेतायुग में श्रीराम के चरण लगने से उनका उद्धार हुआ।
 
2. दमयंती : उनकी सुंदरता का प्रमाण इसी बात से लग जाता है कि उनके स्वंव में स्वयं वरुणदेव, इंद्रदेव, अग्नि तथा यमदेव भी शामिल हुए थे। चारों देवता उनसे विवाह करने की इच्छा रखते थे। परंतु दमयंती को निषादराज के राजकुमार नल से प्रेम हो गया था। दमयन्ती विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री थीं। स्वयंवर के समय उन चारों देवताओं ने नल का ही रूप धारण कर लिया। दमयंती भ्रम और असमंजस में फंस गयी। नल को पहचानना असंभव हो गया तब उसने देखा कि एक ही रूप के पांचों युवकों में से चार को पसीना नहीं आ रहा है और उनकी पुष्प मालाएं एकदम खिली हुई एवं ताजा दिखलायी पड़ रही हैं और चारों के पांव पृथ्वी का स्पर्श नहीं कर रहे हैं। तब दमयंती समझ गई और उन चारों को छोड़कर पांचवें व्यक्ति को राजा नल पहचान कर उसका वरण कर लिया।
 
3. मेनका : मेनका ने अपने रूप और सौंदर्य से तपस्या में लीन विश्वामित्र का तप भंग कर दिया। विश्वामित्र सब कुछ छोड़कर मेनका के ही प्रेम में डूब गए। मेनका से विश्वामित्र ने विवाह कर लिया और मेनका से विश्वामित्र को एक सुन्दर कन्या प्राप्त हुई जिसका नाम शकुंतला रखा गया। शकुंतला छोटी ही थी, तभी एक दिन मेनका उसे और विश्वामित्र को छोड़कर फिर से इंद्रलोक चली गई। इसी पुत्री का आगे चलकर सम्राट दुष्यंत से प्रेम विवाह हुआ, जिनसे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। यही पुत्र राजा भरत थे। मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारद्वाज महान ऋषि थे। चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है। इसी भरत के कुल में राजा कुरु हुआ और उनसे कौरव वंश की स्थापना हुई। कुरु के वंश में शान्तनु का जन्म हुआ। शान्तनु ने गंगा और सत्यवती से विवाह किया था। इसके मतलब यह कि उर्वशी के वंश को ही बाद में मेनका ने आगे बढ़ाया।
 
4. रंभा : रम्भा अपने रूप और सौन्दर्य के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी। यही कारण था कि हर कोई उसे हासिल करना चाहता था। रामायण काल में यक्षराज कुबेर के पुत्र नलकुबेर की पत्नी के रूप में इसका उल्लेख मिलता है। रावण ने रम्भा के साथ बलात्कार करने का प्रयास किया था जिसके चलते रम्भा ने उसे शाप दिया था। कहते हैं कि रम्भा का प्रकट्य समुद्र मंथन से हुआ था। इसीलिए उसे लक्ष्मीस्वरूपा भी कहा जाता है। लेकिन एक अन्य मान्यता अनुसार रम्भा के पिता का नाम कश्यप और माता का नाम प्रधा था। एक बार विश्वामित्र की घोर तपस्या से विचलित होकर इंद्र ने रम्भा को बुलवाकर विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए भेजा लेकिन ऋषि इन्द्र का षड्यंत्र समझ गए और उन्होंने रम्भा को एक हजार वर्षों तक शिला बनकर रहने का शाप दे डाला। वाल्मीकि रामायण की एक कथा के अनुसार एक ब्राह्मण द्वारा यह ऋषि के शाप से मुक्त हुई थीं। लेकिन स्कन्द पुराण के अनुसार इसके उद्धारक 'श्वेतमुनि' बताए गए हैं, जिनके छोड़े बाण से यह शिलारूप में कंमितीर्थ में गिरकर मुक्त हुई थीं।
 
5. उर्वशी : एक बार इन्द्र की सभा में उर्वशी के नृत्य के समय राजा पुरुरवा उसके प्रति आकृष्ट हो गए थे जिसके चलते उसकी ताल बिगड़ गई थी। इस अपराध के कारण इन्द्र ने रुष्ट होकर दोनों को मृर्त्यलोक में रहने का शाप दे दिया था। मर्त्यलोक में पुरुरवा और उर्वशी कुछ शर्तों के साथ पति-पत्नी बनकर रहने लगे। दोनों के कई पुत्र हुए। इनके पुत्रों में से एक आयु के पुत्र नहुष हुए। नहुष के ययाति, संयाति, अयाति, अयति और ध्रुव प्रमुख पुत्र थे। इन्हीं में से ययाति के यदु, तुर्वसु, द्रुहु, अनु और पुरु हुए। यदु से यादव और पुरु से पौरव हुए। पुरु के वंश में ही आगे चलकर कुरु हुए और कुरु से ही कौरव हुए। भीष्म पितामह कुरुवंशी ही थे। यही उर्वशी एक बार इन्द्र की सभा में अर्जुन को देखकर आकर्षित हो गई थी और इसने इन्द्र से प्रणय-निवेदन किया था, लेकिन अर्जुन ने कहा- 'हे देवी! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं...।' अर्जुन की ऐसी बातें सुनकर उर्वशी ने कहा- 'तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं अतः मैं तुम्हें शाप देती हूं कि तुम 1 वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे।'.. इस तरह उर्वशी के संबंध में सैकड़ों कथाएं पुराणों में मिलती हैं।
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6. मां सीता : राजा जनक की पुत्री और प्रभु श्रीराम की पत्नी माता सीता अत्यंत ही सुंदर और योग्य थीं। पंचवटी में रावण ने जब उन्हें देखा तो वह कुछ समय के लिए तो स्तब्ध हो गया था और तब उनसे कहा था कि देवी आपका शरीर सोने के समान दमक रहा है।
 
7. सत्यवती : महाभारत काल में सत्यवती धीवर नामक एक मछुवारे की पुत्री थी। लेकिन वह सांवली होने के बावजूद बहुत सुंदर और आकर्षक थी। इसके आकर्षण के चलते पहले ऋषि पराशर पिघले और उनसे वेद व्यास का जन्म हुआ। इसके बाद राजा शांतनु को उनसे प्यार हो गया। इसी सत्यवती ने शांतनु से विवाह किया था। यदि शांतनु सत्यवती से प्रेम नहीं करते तो महाभारत और कुरुवंश का इतिहास कुछ और होता। एक दिन शांतनु यमुना के तट पर घूम रहे थे कि उन्हें नदी में नाव चलाते हुए एक सुन्दर कन्या नजर आई। शांतनु उस कन्या पर मुग्ध हो गए। उन्होंने ने कन्या से उसका नाम पूछा तो उसने कहा, 'महाराजा मेरा नाम सत्यवती है और में निषाद कन्या हूं।' शांतनु सत्यवती के प्रेम में रहने लगे। सत्यवती भी राजा से प्रेम करने लगी। एक दिन शांतनु ने सत्यवती के पिता के समक्ष सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन सत्यवती के पिता ने यह शर्त रखी की मेरी पुत्री से उत्पन्न पुत्र ही हस्तिनापुर का युवराज होकर राजा होगा तभी में अपनी कन्या का हाथ आपके हाथ में दूंगा। राजा इस प्रस्ताव को सुनकर अपने महल लौट आए और सत्यवती की याद में व्याकुल रहने लगे। जब यह बात भीष्म को पता चली तो उन्होंने अपने पिता की खुशी के खातिर आजीवन ब्रह्मचारी रहने की शपथ ली और सत्यवती का विवाह अपने पिता से करवा दिया।
 
8. रुक्मणी और राधा : महाभारत के अनुसार विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। भीष्मक और रुक्मिणी के पास जो भी लोग आते-जाते थे, वे सभी श्रीकृष्ण की प्रशंसा किया करते थे। श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रुक्मिणी ने मन ही मन तय कर लिया था कि वह श्रीकृष्ण को छोड़कर अन्य किसी को भी पति रूप में स्वीकार नहीं करेगी। भागवत में रुक्मणी हरण का सुंदर चित्रण मिलता है। इसी के साथ राधारानी के सौंदर्य का वर्णन हमें पुराणों में मिलता है।
 
9. द्रौपदी : कहते हैं कि द्रौपदी का जन्म यज्ञ से हुआ था इसीलिए उसे याज्ञनी कहा जाता था। द्रौपदी को पंचकन्याओं में शामिल किया गया है। पुराणानुसार पांच स्त्रियां विवाहिता होने पर भी कन्याओं के समान ही पवित्र मानी गई है। अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी।
 
10. सत्यभामा : राजा सत्राजित की पुत्री सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी थीं। सत्यभामा बहुत ही सुंदर थीं और देवमाता अदिति से उनको चिरयौवन का वरदान मिला था। वह राजकार्य और राजनीति में रुचि लेती थी। नरकासुर से युद्ध के दौरान सत्यभामा ने भी युद्ध लड़ा था। सत्यभामा के कारण ही धरती पर पारिजात के वृक्ष पाए जाते हैं क्योंकि उन्होंने श्रीकृष्ण से इसे स्वर्ग से लाने को कहा था।
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इसके अलावा रावण की पत्नी मंदोदरी, बाली की पत्नी तारा भी बहुत सुंदर थीं। महाभारत काल में अर्जुन पत्नी सुभद्रा, उलूपी और चि‍त्रांगदा भी बहुत सुंदर थीं। पुरुवंश के राजा दुष्यंत की प्रेमिका शकुंतला, शांतनु की पत्नी गंगा, कृष्‍ण के पोते अनिरुद्ध की पत्नी उषा आदि भी बहुत ही सुंदर थीं। अप्सराओं में मेनका, उर्वशी और रंभा का नाम इसलिए लिया क्योंकि इनके कारण ही धरती पर मानव वंश का विस्तार हुआ। हालांकि और भी अप्सराएं हैं जिनके कारण धरती पर कई तरह की कहानियों का जन्म हुआ। जैसे पुंजिकस्थला बाद में हनुमानजी की मां अंजनी बनीं। इसके अलावा तिलोत्तमा, घृताची, कृतस्थली, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, वर्चा, पूर्वचित्ति, अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चन्द्रज्योत्सना, देवी, घृताची, गुनमुख्या, गुनुवरा, हर्षा, इन्द्रलक्ष्मी, काम्या, कर्णिका, केशिनी, क्षेमा, लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, रक्षिता, ऋतुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, उमलोचा, शशि, कांचन माला, कुंडला हारिणी, रत्नमाला, भू‍षणि आदि कई अप्सराएं हैं।

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