शिव अनादि हैं, उनका ना कोई आरंभ है और ना कोई अंत। वह स्वयंभू हैं, उनका ना तो जन्म हुआ है और ना ही कभी उनकी मृत्यु संभव है। वे सृष्टि के विनाशक भी हैं और महादेव भी। वह रुद्र भी हैं और शांत चेहरे वाले बाबा भोलेनाथ भी।
अगर उनके क्रोध की ज्वाला से कोई बच नहीं सकता तो उन्हें प्रसन्न करना भी अन्य देवी-देवताओं से कहीं ज्यादा आसान है। भगवान भोलेनाथ ने समय-समय पर अपने विभिन्न स्वरूपों के दर्शन दिए।
कभी वे वीरभद्र बने, तो कभी उन्होंने नटराज रूप धारण किया, कभी वे काल भैरव बने तो कभी अर्धनारीश्वर बनकर अपने भक्तों के बीच प्रसिद्ध हुए।
शिव को अघोर तंत्र का जनक भी माना जाता है, यही वजह है कि अघोरी साधक शिव और शक्ति के स्वरूप की पूजा कर सिद्धियां एकत्रित करने में अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं।
भगवान शिव से जुड़े कई रहस्य, कई कथाएं हम अकसर सुनते रहते हैं। शिव परिवार, यानि भगवान गणेश, कार्तिकेय, माता पार्वती, इनसे जुड़ी कथाएं भी हम कई बार सुन चुके हैं लेकिन बहुत से लोग अभी तक इस बात से अनभिज्ञ हैं कि भगवान शिव की एक बहन भी थीं।
क्या कभी आपने भगवान शिव की बहन के विषय में सुना हैं? नहीं तो चलिए आज हम आपको ननद-भाभी, यानि शिव की बहन, असावरी देवी और माता पार्वती से जुड़ी एक अद्भुत कथा सुनाते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार जब माता पार्वती, भगवान शिव से विवाह कर कैलाश पर्वत पर आईं, तब वे कई बार उदास और अकेला महसूस करती थीं।
भगवान शिव तो अंतर्यामी हैं, उन्होंने माता पार्वती के मन को पढ़कर उनकी उदासी का कारण तो जान लिया लेकिन फिर भी उन्होंने पार्वती जी से उदासी का कारण पूछा तो माता पार्वती ने उनसे कहा कि उन्हें एक ननद चाहिए।
माता ने कहा “काश मेरी कोई ननद होती”। भगवान शिव ने उनसे पूछा कि क्या ननद के साथ तुम निभा पाओगी? तो इस सवाल के जवाब में देवी पार्वती ने कहा “ननद से मेरी क्यों नहीं बनेगी?
भगवान शिव ने उनसे कहा “ठीक है, मैं तुम्हें एक ननद लाकर देता हूं”। भोलेनाथ ने अपनी माया से एक स्त्री को उत्पन्न किया। वह स्त्री बहुत मोटी और भद्दी थी, उसके पैर भी फटे हुए थे।
भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा “ये लो देवी, आ गई तुम्हारी ननद, इनका नाम असावरी देवी है”। माता पार्वती अपनी ननद को देखकर बहुत खुश हुईं, वे जल्दी-जल्दी उनके लिए भोजन का प्रबंध करने लगीं।
असावरी देवी ने स्नान के पश्चात भोजन की मांग की तो देवी पार्वती ने स्वादिष्ट भोजन उनके सामने परोस दिया। असावरी देवी सारा भोजन चट कर गईं और सारा अन्न भी खा गईं।
इस बीच असावरी देवी को शरारत सूझी, उन्होंने देवी पार्वती को अपने फटे पांव की दरारों में छिपा लिया, जहां उनका दम घुटने लगा।
जब भगवान भोलेनाथ वापस आए तो अपनी पत्नी को ना पाकर बहुत चिंतित हुए। उन्होंने असावरी देवी ने पूछा कि कहीं ये उसकी चाल तो नहीं।
असावरी देवी मुस्कुराने लगीं और पार्वतीजी को अपने पैरों की दरारों से आजाद किया। आजाद होते ही देवी ने कहा “भोलेनाथ, कृपा कर ननद को अपने ससुराल भेज दें, अब और धैर्य नहीं रखा जाता”।
भगवान शिव ने जल्द ही असावरी देवी को कैलाश पर्वत से विदा किया। इस घटना के बाद से ही ननद-भाभी के बीच छोटी-छोटी तकरार और नोंक-झोंक का सिलसिला प्रारंभ हुआ।