कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका और होलिका नामक दो पुत्री को जन्म दिया। ब्रह्मा के वरदान के चलते दोनों ही पुत्र शक्तिशाली और अत्याचारी बन गए थे। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया था और दूसरी ओर नृसिंह अवतार धारण करके हिरण्यकश्यप का वध कर दिया था।
प्रहलाद की बुआ होलिका जहां आग में जलकर मर गई थी वहीं दूसरी बुआ सिंहिका को हनुमानजी ने लंका जाते वक्त रास्ते में मार दिया था।
हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद।
भक्त प्रह्लाद विष्णु के भक्त थे। हिरण्यकश्यप के वध के बाद वे ही असुरों के सम्राज्य के राजा बने थे। प्रहलाद के महान पुत्र विरोचन हुए और विरोचन से महान राजा बालि का जन्म हुआ जो महाबलीपुरम के राजा बने। इन बालि से ही श्री विष्णु ने वामन बनकर तीन पग धरती मांग ली थी।
प्रहलाद के महान पुत्र विरोचन से एक नई संक्रांति का सूत्रपात हुआ था। इंद्र से जहां आत्म संस्कृति का विकास हुआ वहीं विरोचन से भोग संस्कृति जन्मी। इसके पीछे एक कथा प्रचलित है। दोनों ही ब्रह्मा के पास शिक्षा ग्रहण करते हैं लेकिन उस शिक्षा का असर दोनों में भिन्न भिन्न होता है। इंद्र आत्मा को ही सबकुछ मानते हैं और विरोचन शरीर को। इस आधार पर दुनिया में योग और भोग संस्कृति का विकास हुआ। यही आगे चलकर आस्तिकों और नास्तिकों की विचारधारा का आधार बन गए।
ऋषि भृगु के पुत्र शुक्राचार्य असुर राजा विरोचन के गुरु थे जो बाद में महान राजा बली के गुरु भी बने। शुक्राचार्य प्रहलाद के भानजे थे। शुक्राचार्य के बारे में कहा जाता है कि माता लक्ष्मी उनकी बहन थी। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बलि का जन्म हुआ। इस बलि ने ही अमृत मंथन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।