chauth ki kahani katha: चतुर्थी (चौथ) के देवता हैं शिवपुत्र गणेश। इस तिथि में भगवान गणेश के पूजन से सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। माह में दो बार चतुर्थी का व्रत रखते हैं। संकष्टी चतुर्थी और विनायक चतुर्थी। दोनों की ही कहानी अलग अलग है। इसी के साथ ही वर्ष में कुल 24 चतुर्थियां होती हैं। प्रत्यके चतुर्थी की अपनी कहानी अलग है। जैसे जेठानी चतुर्थी और करवा चौथ की चतुर्थी की कहानी भी होती है। भाद्र माह की चतुर्थी को गणेशजी का जन्म हुआ था, जिसे विनायक चतुर्थी कहते हैं। कई स्थानों पर विनायक चतुर्थी को 'वरद विनायक चतुर्थी' और 'गणेश चतुर्थी' के नाम से भी जाना जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी, माघी चतुर्थी या तिल चौथ कहा जाता है। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है।
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1. गणेश चतुर्थी की कहानी : पौराणिक कथाओं के अनुसार, भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। माता पार्वती ने अपने शरीर पर लगे चंदन के लेप को तेल के साथ मिलाकर एक शिशु का रूप तैयार किया और फिर उसमें प्राण फूंक दिए। जन्म के बाद उन्हें द्वार पर पहरेदार नियुक्त कर दिया। शिवजी जब आए तो गणेशजी ने उन्हें रोक दिया। शिवजी ने क्रोधित होकर गणेशजी का सिर काट दिया। बाद में माता पार्वती के क्रोधित होने पर शिवजी ने गणेशजी के धड़ पर एक हाथी का सिर लगाकर उसमें जान फूंक दी। इस तरह यह है विनायक चतुर्थी की प्रसिद्ध कथा।
2. संकष्टी चतुर्थी की कहानी : एक समय की बात है राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया। उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। उसने गणेशजी से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की। दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चे का बाल बांका भी नहीं हुआ था। वह डर गया और राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई। इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाली संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए संकट चौथ का व्रत करने लगीं।
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3. तिल चौथ की कथा : एक दिन जेठानी सुबह बहुत जल्दी उठी और घर में गंदगी देखकर परेशान हो गई। उसने गणेश जी से मदद मांगी। गणेश जी ने बताया कि देवरानी से जलन के कारण उसने जो किया था, यह उसी का फल है। उसने आधा धन बांट दिया, लेकिन मोहरों की एक हांडी चूल्हे के नीचे गाढ़ रखी थी। उसने सोचा किसी को पता नहीं चलेगा और उसने उस धन को नहीं बांटा। उसने कहा 'हे श्री गणेश जी, अब तो अपना यह बिखराव समेटो, वे बोले- पहले चूल्हे के नीचे गाड़ी हुई मोहरों की हांडीसहित ताक में रखी दो सुई के भी दो हिस्से कर कर। इस प्रकार श्री गणेश ने बाल स्वरूप में आकर सुई जैसी छोटी चीज का भी बंटवारा किया और अपनी माया समेटी। हे गणेश जी महाराज, जैसी आपने देवरानी पर कृपा की वैसी सब पर करना। कहानी कहने वाले, सुनने वाले व हुंकारा भरने वाले सब पर कृपा करना। किंतु जेठानी को जैसी सजा दी वैसी किसी को मत देना।
4. करवा चौथ की कथा : एक सेठ-सेठानी थे। उनके एक बेटा और बहू थे। बहू सबको भोजन कराके फिर स्वयं भोजन करती। एक पड़ोसन ऐसी भी थी, जो रोज पूछती कि बहू आज क्या बनाया-खाया है? बहू कहती- ठंडो बासी। एक दिन उसके पति ने ऐेसा सुनकर विचार किया कि आज तो पकवान बनाए जाएं, फिर देखें कि मेरी पत्नी क्या कहती है? उसने तरह-तरह के पकवान बनवाए और घर के सभी लोगों ने एकसाथ बैठकर भोजन किया। आज भी पड़ोसन ने पूछा तो बहू ने कहा ठंडो बासी। सेठ के लड़के ने सोचा, हो न हो कोई बात अवश्य है जिससे कि मेरी पत्नी ऐसा कहती है। उसने पत्नी से पूछा- तुम रोज 'ठंडो बासी खाया' ऐसा क्यों कहती हो, जबकि अपन सबने एकसाथ बैठकर कई तरह के पकवान खाए? उसकी पत्नी बोली- अपन जो खा रहे हैं, वह बाप-बूढ़ों की कमाई है जिस दिन आप कमाकर लाओगे, उस दिन मैं समझूंगी कि ताजा भोजन कर रहे हैं।
अब एक दिन लड़के ने मां से कहा- मैं एक बड़े शहर में कमाई करने जा रहा हूं। मां बोली- बेटा, अपने पास इतना धन है कि 'खाया नहीं खुटेगा'। मां के मना करने पर भी बेटे ने स्वयं कमाने का दृढ़ निश्चय कर लिया और जाते समय पत्नी से कहा- 'मैं जब तक कमाकर बहुत-सा धन लेकर न आऊं, तुम चूल्हे की आग मत बुझने देना।' एक दिन चूल्हे की आग बुझ गई तो वह मन ही मन घबराने लगी- कहीं मेरे पति पर संकट तो नहीं आन पड़ा। जल्दी से पड़ोस में से आग लाकर चूल्हे में रख दूं, ऐसा विचार करके पड़ोस में गई। वहां पड़ोसन चौथ माता का व्रत-पूजन कर रही थी। पड़ोसन ने कहा- 'थोड़ी देर में आकर ले जाना।' बहू ने पड़ोसन से पूछा- आप यह व्रत क्यों करती हैं? इससे क्या मिलता है? पड़ोसन ने कहा- चौथ माता के इस व्रत को करने से अन्न-लक्ष्मी मिले और अपनी मनोकामना पूरी हो।
अब बहू भी 'चौथ माता' का व्रत करने लगी। दीवार पर चौथमाता बनाई। उस दिन घी-गुड़ का चूरमा बनाकर रात्रि को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करती। ऐसा करते-करते बहुत दिन हो गए। चौथमाता ने उस बहू के पति को सपना दिया कि 'साहूकार का बेटा, तू जागे कि सोवे। तेरी पत्नी बहुत याद कर रही है, घर जाकर उसकी चिंता मिटा। तू दुकान खोलकर कंकू केशर का पगल्या बनाके बैठ जाना। आज तेरा हिसाब-किताब चुकता हो जाएगा।' अब तो चौथमाता ने जैसा कहा था, वैसा ही हुआ। उसने घर जाने की तैयारी की और गाड़ी भर के धन-दौलत लेकर चल दिया। रास्ते में एक बड़ा-सा काला नाग फल फैलाए बैठ गया और कहने गला- आज तो मैं तुझे डसूंगा, छोड़ंगा नहीं। आज तेरी आयु पूरी हो गई है। सेठ ने लड़के से कहा- आज चौथमाता ने मुझे सपना दिया तो मैं पत्नी से मिलने घर जा रहा हूं, वहां मेरी पत्नी बहुत चिंता कर रही है। मैं उससे मिलकर जरूर आऊंगा, तब तुम मुझे डस लेना। नाग ने कहा- तुम शपथपूर्वक कहकर जाओ तो मैं तुम्हें जाने दूंगा, परंतु लौटकर नहीं आए तो तुम्हारे घर आकर मैं तुम्हें डस लूंगा।
इस प्रकार सर्प को वचन देकर वह अपने घर पहुंचा। वहां सभी से हंसी-खुशी से मिला और भोजन करने उदास होकर बैठ गया। उसकी पत्नी ने उदास होने का कारण पूछा तो पति ने 'काले नाग' वाली बात बताते हुए कहा- यदि मैं उसके पास नहीं जाऊंगा, तो वह घर आकर ही मुझे डस लेगा। पत्नी बहुत चतुर थी। उसने कहा कि आप घबराओ नहीं, लेट जाओ, मैं एक उपाय करती हूं। पत्नी ने कमरे की 7 पेढ़ी (सिड़ाव) धोई। पहली पेढ़ी पर रेत, दूसरी पर इत्र, तीसरी पर गुलाल, फूल, चौथी पर कंकू-केशर, पांचवीं पर लड्डू-पेड़ा, छठी पर गादी-गलीचा और सातवीं पेढ़ी पर दूध का कटोरा भरकर रख दिए। इस प्रकार वह 7 ही पेढ़ी सजाकर बैठ गई।
आधी रात होते ही नाग आकर पेढ़ी चढ़ने लगा। पहली पेढ़ी पर रेत में लोट गया और कहने लगा कि सेठ की बहू ने आराम तो बहुत दिया, पर वचनों से बंधकर आया हूं, सो डसूंगा अवश्य ही। इसी प्रकार सातों पेढ़ियों पर नाग आराम करता हुआ और कहता हुआ कि 'डसूंगा जरूर' कमरे में जाने ही वाला था कि चौथ माता ने विचार किया कि मैं इसे नहीं बचाऊंगी तो संसार में धरम-करम और व्रत-पूजन को कौन मानेगा? अब तो गणेशजी, चंद्रमाजी और चौथमाता ने उसे बचाने का विचार किया। चंद्रमाजी ने उजाला किया, चौथमाता ढाल बनी और गणेशजी ने तलवार लेकर नाग को मार दिया और ढाल से ढंक दिया।
अब बहू भी थकी-हारी सो गई। दिन उगा तो लोग बेटे से मिलने आए, परंतु बेटा-बहू तो उठे ही नहीं थे। बहुत देर हो गई तो मां उन्हें उठाने गई। मां ने सातों पेढ़ियों पर जो कुछ देखा तो बहुत घबराई और बेटा-बहू को आवाज लगाई। बेटा-बहू उठे तो देखा कि एक ढाल-तलवार वहां पड़ी है। अब ढाल उठाई तो वही काला नाग मरा हुआ पड़ा है। बेटा-बहू ने सोचा कि आज तो धरम-करम ही आड़े आए, जो भगवान गणेशजी और चौथमाता ने अपनी रक्षा की। हे चौथमाता! आपने जैसी सेठ के बेटे-बहू की रक्षा की, वैसी सबकी रक्षा कीजो।
बोलो चौथमाता की जय।
साभार- बारह महीने की व्रत-कथाएं