पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महर्षि दधीचि (Maharishi Dadhichi) एक महान तपस्वी ऋषि थे। उनके माता का नाम चित्ति, पिता का नाम अथर्वा, पत्नी का नाम गभस्तिनी और पुत्र का नाम पिप्पलाद ऋषि था। कुछ जगहों पर इनकी पत्नी का नाम शांति बताया गया है तो कर्दम ऋषि की पुत्री थीं।
पुराणों में दधीचि ऋषि का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि वृत्रासुर नामक राक्षस ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था और उसने सभी देवताओं को देवलोक से बाहर निकाल दिया था। सभी देवताओं ने ब्रह्माजी से इस समस्या का निदान करने को कहा।
ब्रह्माजी ने कहा कि पृथ्वीलोक में दधीचि नाम के एक महर्षि रहते हैं। यदि वे अपनी अस्थियों का दान कर दें तो उन अस्थियों से एक वज्र बनाया जा सकेगा और उस वज्र की शक्ति से ही वृत्तासुर का वध हो सकता है, क्योंकि वृत्रासुर को किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। इसके अतिरिक्त और कोई दूसरा उपाय नहीं है।
देवराज इंद्र महर्षि दधीचि के पास जाना नहीं चाहते थे, क्योंकि इंद्र ने एक बार दधीचि ऋषि की तपस्या भंग करने का प्रयास किया था और उनका अपमान भी किया था। दरअसल, महर्षि दधिची ब्रह्म विद्या जानते थे और इंद्र उनसे यह विद्या सीखना चाहता था परंतु दधीचि ऋषि ने यह करकर इनकार कर दिया था कि तुम इस योग्य नहीं हो। यह सुनकर इंद्र ने कहा कि यदि तुम किसी ओर को यह विद्या दोगे तो मैं तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दूंगा।
महर्षि दधीचि ने कहा कि यदि कोई योग्य व्यक्ति मेरे पास आएगा तो मैं उसे जरूर यह विद्या दूंगा। कुछ समय बाद अश्विनीकुमार उनसे यह विद्या सीखने के लिए पहुंचे तो महर्षि दधीचि ने कहा कि मैं तुम्हें यह विद्या जरूर सिखाऊंगा परंतु इंद्र ने मेरा सिर धड़ से अलग करने की धमकी दी है।
यह सुनकर अश्विनीकुमारों ने महर्षि दधीचि के धड़ पर अश्व का सिर लगाकर ब्रह्म विद्या प्राप्त कर ली। जब यह बात इंद्र को पता चली तो उन्होंने महर्षि दधीचि का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद अश्विनीकुमारों ने महर्षि के असली सिर को फिर से धड़ से लगा दिया। यह देखकर इंद्र ने अश्विनीकुमारों को स्वर्ग से निकाल दिया।... इसी घटना के कारण इंद्र महर्षि दधीचि के पास जाने से कतरा रहे थे। फिर जब वृत्तासुर का अत्याचार बढ़ने लगा तो आखिरकार इंद्र को महर्षि दधीचि के पास जाना ही पड़ा और उन्होंने उनसे अपनी अस्थियां देने की प्रार्थना की।
देवताओं के कल्याण और असुरों के वध के लिए दधीचि ने वज्र के निर्माण हेतु अपनी अस्थियां दान कर दी थीं। बाद में जब दधीचि की पत्नी गभस्तिनी को यह पता चला तो वह सती होने लगी तो देवताओं ने उसे रोका और कहा कि तुम तो गर्भवती हो। परंतु गभस्तिनी नहीं मानी तब देवताओं ने उसके गर्भ को निकालकर पीपल को उसका लालन-पालन करने का दायित्व सौंपा। पीपल ने ही उस गर्भ को पाला। इसी के कारण दधीचि के पुत्र का नाम पिप्पलाद हुआ।
देवताओं ने दधीचि की रीढ़ की हड्डी से एक हथियार बनाया जिसका नाम वज्र रखा गया। वृत्रासुर एक शक्तिशाली असुर था जिसने देवताओं के नगरों पर कई बार आक्रमण करके उनकी नाक में दम कर रखा था। अंत में इंद्र ने मोर्चा संभाला और उससे उनका घोर युद्ध हुआ जिसमें वृत्रासुर का वध हुआ। इंद्र के इस वीरतापूर्ण कार्य के कारण चारों ओर उनकी जय-जयकार और प्रशंसा होने लगी थी। कहते हैं कि बची हुई हड्डियों से और भी हथियार बने थे।