मां गंगा धरती पर कैसे आईं, कैसे शिव की जटा में समाई पढ़ें कहानी
प्रतिवर्ष वैशाख माह में गंगा सप्तमी और ज्येष्ठ माह में गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। कहते हैं कि गंगा सप्तमी को गंगा जी भगवान की जटाओं में उतरी और गंगा दशहरा के दिन धरती पर।
आओ जानते हैं गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) पर कैसे अवतरित हुई धरती पर गंगा, पढें गंगा अवतरण की कथा और राजा शांतुनी से उनका संबंध...
गंगा की उत्पत्ति कथा : कहते हैं कि गंगा देवी के पिता का नाम हिमालय है जो पार्वती के पिता भी हैं। जैसे राजा दक्ष की पुत्री माता सती ने हिमालय के यहां पार्वती के नाम से जन्म लिया था उसी तरह माता गंगा ने अपने दूसरे जन्म में ऋषि जह्नु के यहां जन्म लिया था।
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने विष्णुजी के चरणों को आदर सहित धोया और उस जल को अपने कमंडल में एकत्र कर लिया। गंगा अवतरण हेतु ऋषि भागीरथ की तपस्या ने घोर तपस्या की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शंकर ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं।
बाद में भगीरथ की आराधना के बाद उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त कर धरती पर उतार दिया। यह भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु के अंगूठे से गंगा प्रकट हुई अतः उसे विष्णुपदी कहा जाता है। पुराणों अनुसार वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्गलोक से सबसे पहले शिवशंकर की जटाओं में पहुंची और फिर गंगा दशहरा के दि धरती पर उतरीं।
गंगा और शांतनु : जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा ने राजा शांतनु से विवाह करके 7 पुत्रों को जन्म दिया और सभी को नदी में बहा दिया। तब आठवां पुत्र हुआ तो राजा शांतनु ने पूछ लिया कि तुम ऐसा क्यों कर रही हो।
यह सुनकर गंगा ने कहा कि विवाह की शर्त के मुताबीक तुम्हें ऐसा नहीं पूछना था। अब मुझे पुन: स्वर्ग जाना होगा और यह आठवीं संतान अब तुम्हारे हवाले। वही आठवीं संतान आगे चलकर भीष्म पितामह के नाम से विख्यात हुई।
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