हरियाली अमावस्या की कथा (Hariyali Amavasya Katha) के अनुसार कहा जाता हैं कि एक राजा की बहू ने एक दिन मिठाई चोरी करके खा ली और नाम एक चूहे का ले दिया।
यह बात जानकर चूहे को क्रोध आया और उसने तय किया कि एक दिन राजा के सामने सच लेकर ही आऊंगा। फिर एक दिन राजा के यहां अतिथि पधारे और राजा के ही अतिथि कक्ष में सोएं। चूहे ने रानी के वस्त्र ले जाकर अतिथि के पास रख दिए।
प्रात:काल उठकर सभी लोग आपस में बात करने लगे की छोटी रानी के कपड़े अतिथि के कमरे में मिले। यह बात जब राजा को पता चली तो उस रानी को घर से निकाल दिया। रानी प्रतिदिन संध्या को दिया जलाती और ज्वार बोती और पूजा करके गुड़-धानी का प्रसाद बांटती थीं।
फिर एक दिन राजा शिकार करके उधर से निकले तो राजा की नजर रानी पर पड़ी। राजा ने महल में आकर कहा कि आज तो वृक्ष के नीचे चमत्कारी चीज हैं, अपने झाड़ के ऊपर जाकर देखा तो दीये आपस में बात कर रहे थे। आज किसने क्या खाया, और कौन क्या है?
उसमें से एक दीया बोला आपके मेरे जान-पहचान के अलावा कोई नहीं है। आपने तो मेरी पूजा भी नहीं की और भोग भी नहीं लगाया बाकि के सब दीये बोले- ऐसी क्या बात हुई? तब दीया बोला- मैं राजा के घर का हूं, उस राजा की एक बहू थी। उसने एक बार मिठाई चोरी करके खा ली और चूहे का नाम ले लिया।
जब चूहे को क्रोध आया तो रानी के कपड़े अतिथि के कमरे में रख दिए। और राजा ने रानी को घर से निकाल दिया।
वो रोज मेरी पूजा करती थी, भोग लगाती थी। उसने रानी को आशीर्वाद दिया और कहा कि सुखी रहे। उसने आगे बताया कि रानी की मिठाई चोरी की वजह से चूहे ने रानी की साड़ी अतिथि के कमरे में रखी थी और बेकसूर रानी को सजा मिल गई। फिर सब लोग पेड़ पर से उतरकर घर आए और कहा कि रानी का कोई दोष नहीं था। यह सुनकर राजा ने रानी को घर बुलाया और फिर सभी सुखपूर्वक रहने लगे।