(भाग-2)
ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ को ठंडे जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान के बाद भगवान को ज्वर (बुखार) आ जाता है। 15 दिनों तक भगवान जगन्नाथ को एकांत में एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जहां केवल उनके वैद्य और निजी सेवक ही उनके दर्शन कर सकते हैं। इसे 'अनवसर' कहा जाता है।
इस दौरान भगवान जगन्नाथ को फलों के रस, औषधि एवं दलिया का भोग लगाया जाता है। भगवान स्वस्थ होने पर अपने भक्तों से मिलने रथ पर सवार होकर निकलते हैं जिसे जगप्रसिद्ध 'रथयात्रा' कहा जाता है। 'रथयात्रा' प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है।
भगवान भी बदलते हैं करवट-
देवशयनी एकादशी से भगवान का शयन प्रारंभ हो जाता है जो देवोत्थान एकादशी तक जारी रहता है। इस अवधि को चातुर्मास भी कहा जाता है। इस बीच भगवान भाद्रपद शुक्ल एकादशी को अपनी करवट बदलते हैं। (क्रमश:)
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया