भगवान विश्वकर्मा के जन्म की 4 कहानियां
भगवान विश्वकर्मा के जन्म की पौराणिक कथाएं
Vishwakarma story: वशिष्ठ पुराण और विश्वकर्मा समाज के मतानुसार माघ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को विश्वकर्मा जयंती आती है, जबकि अन्य मनानुसार कन्या संक्रांति के दिन भी विश्वकर्मा जयंती मनाते हैं। भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पी कहा जाता है। उन्होंने देवों को लिए महल, अस्त्र और शस्त्रों का निर्माण किया था। आओ जानते हैं उनके जन्म की 4 पौराणिक कथाएं।
माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ।
अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च॥- वशिष्ठ पुराण
पहली कथा : ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए। धर्म की वस्तु नामक पत्नी से उत्पन्न वास्तु सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे।
दूसरी कथा : स्कंद पुराण के अनुसार धर्म के आठवें पुत्र प्रभास का विवाह देवगुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी से हुआ। भगवान विश्वकर्मा का जन्म इन्हीं की कोख से हुआ। महाभारत आदिपर्व अध्याय 16 श्लोक 27 एवं 28 में भी इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
तीसरी कथा : वायु पुराण अध्याय 4 के पढ़ने से यह बात सिद्ध हो जाती है कि वास्तव में विश्वकर्मा संतान भृगु ऋषि कुल उत्पन्न हैं।
चौथी कथा : वराह पुराण के अध्याय 56 में उल्लेख मिलता है कि सब लोगों के उपकारार्थ ब्रह्मा परमेश्वर ने बुद्धि से विचारकर विश्वकर्मा को पृथ्वी पर उत्पन्न किया, वह महान पुरुष विश्वकर्मा घर, कुआं, रथ, शस्त्र आदि समस्त प्रकार के शिल्पीय पदार्थों की रचना करने वाला यज्ञ में तथा विवाहादि शुभ कार्यों के मध्य, पूज्य ब्राह्मणों का आचार्य हुआ।
विश्वकर्मा के अवतार और रूप : विश्वकर्मा के पांच अवतारों का वर्णन मिलता है- 1.विराट विश्वकर्मा, 2.धर्मवंशी विश्वकर्मा, 3.अंगिरावंशी विश्वकर्मा, 4.सुधन्वा विश्वकर्म और 5.भृंगुवंशी विश्वकर्मा। इस प्रकार विश्वकर्माजी के अनेक रूपों का उल्लेख मिलता हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु और दस बाहु वाले। इसके अलावा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले विश्वकर्मा।
विश्वकर्मा के पांच महान पुत्र: विश्वकर्मा के उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र थे। ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे। मनु को लोहे में, मय को लकड़ी में, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे में, शिल्पी को ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी में महारात हासिल थी। राजा प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था।