एक दिन राजा सत्यदेव अपने महल के दरवाजे पर बैठे थे तभी एक स्त्री उनके घर से उनके सामने से गुजरी।
राजा ने पूछा, 'देवी! आप कौन है और इस समय कहां जा रही हैं?'
उसने उत्तर दिया, 'मैं लक्ष्मी हूं और यहां से जा रही हूं।' राजा ने कहा, 'ठीक है, शौक से जाइए।'
कुछ देर बाद एक अन्य नारी उसी रास्ते से जाती दिखाई दी। राजा ने उससे भी पूछा, 'देवी! आप कौन है?'
उसने उत्तर दिया, 'मैं कीर्ति हूं और यहां से जा रही हूं।'
राजा ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, 'जैसी आपकी इच्छा।'
थोड़ी देर के बाद एक पुरुष भी उनके सामने से होकर जाने लगा।
राजा ने, उससे भी प्रश्न पूछा, 'आप कौन हैं?'
पुरुष ने उत्तर दिया, 'मैं सत्य हूं। मैं भी अब यहां से जा रहा हूं।' राजा ने तुरंत ही उसके पैर पकड़ लिए और प्रार्थना करने लगा कि 'कृपया आप तो न जाएं?'
राजा सत्यदेव के बहुत विनती करने पर सत्य मान गया और न जाने का आश्वासन दिया। कुछ देर के बाद राजा सत्यदेव ने देखा कि लक्ष्मी एवं कीर्ति दोनों ही वापस लौट रही हैं।
राजा सत्यदेव ने पूछा, 'आप कैसे लौट आईं?' दोनों देवियों ने कहा, 'हम उस स्थल से दूर नहीं जा सकतीं, जहां पर सत्य रहता है।'