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परशुरामजी ने क्या सच में धरती पर से 21 बार क्षत्रियों का नाश कर दिया था?

हमें फॉलो करें Lord Parashurama Jayanti
, मंगलवार, 3 मई 2022 (09:04 IST)
Parashuram Jayanti 2022: भगवान परशुराम का आज जन्मोत्वस है। वे भी हनुमानजी की तरह चिरंजीवी हैं। उन्हें अपने पिता से अमरता का वरदान मिला था। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 21 या 36 बार धरती को छत्रियों से विहिन कर दिया था, लेकिन इस बात में कितनी सचाई है? आओ जानते हैं कि भगवान परशुराम ने क्षत्रियों का नाश क्यों किया? क्या है इसकी कहानी।
 
हैहयवंशी राजाओं से युद्ध : समाज में आम धारणा यह है कि परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहीन कर दिया था। यह धारणा गलत है। भृगुक्षेत्र के शोधकर्ता साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय के अनुसार जिन राजाओं से इनका युद्ध हुआ उनमें से हैहयवंशी राजा सहस्त्रार्जुन इनके सगे मौसा थे। जिनके साथ इनके पिता जमदग्नि ॠषि कई बातों को लेकर विवाद था जिसमें दो बड़े कारण थे। पहला कामधेनु और दूसरा रेणुका।
 
 
परशुराम राम के समय में हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार था। भार्गव और हैहयवंशियों की पुरानी दुश्मनी चली आ रही थी। हैहयवंशियों का राजा सहस्रबाहु अर्जुन भार्गव आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था। एक समय सहस्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि के आश्रम की कामधेनु गाय को लेने तथा परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया। परशुराम की मां रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गई।
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इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया- मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूंगा। इसी कसम के तहत उन्होंने इस वंश के लोगों से 36 बार युद्ध कर उनका समूल नाश कर दिया था। तभी से यह भ्रम फैल गया कि परशुराम ने धरती पर से 36 बार क्षत्रियों का नाश कर दिया था।
 
 
हैहयवंशियों के राज्य की राजधानी महिष्मती नगरी थी जिसे आज महेश्वर कहते हैं जबकि परशुराम और उनके वंशज गुजरात के भड़ौच आदि क्षे‍त्र में रहते थे। परशुराम ने अपने पिता के वध के बाद भार्गवों को संगठित किया और सरस्वती नदी के तट पर भूतेश्‍वर शिव तथा महर्षि अगस्त्य मुनि की तपस्या कर अजेय 41 आयुध दिव्य रथ प्राप्त किए और शिव द्वारा प्राप्त परशु को अभिमंत्रित किया।
 
इस जबरदस्त तैयारी के बाद परशुराम ने भड़ौच से भार्गव सैन्य लेकर हैहयों की नर्मदा तट की बसी महिष्मती नगरी को घेर लिया तथा उसे जीतकर व जलाकर ध्वस्त कर उन्होंने नगर के सभी हैहयवंशियों का भी वध कर दिया। अपने इस प्रथम आक्रमण में उन्होंने राजा सहस्रबाहु का महिष्मती में ही वध कर ऋषियों को भयमुक्त किया।
 
इसके बाद उन्होंने देशभर में घूमकर अपने 21 अभियानों में हैहयवंशी 64 राजवंशों का नाश किया। इनमें 14 राजवंश तो पूर्ण अवैदिक नास्तिक थे। इस तरह उन्होंने क्षत्रियों के हैहयवंशी राजाओं का समूल नाश कर दिया जिसे समाज ने क्षत्रियों का नाश माना जबकि ऐसा नहीं है। अपने इस 21 अभियानों के बाद भी बहुत से हैहयवंशी छुपकर बच गए होंगे।

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