सनातन धर्म की महानता यही है कि यहां स्वयं ईश्वर अपने भक्तों का मान रखने के लिए उनके दिए श्राप को भी शिरोधार्य करते हैं। नारद मुनि ने लक्ष्मी जी स्वयंवर में स्वयं को वानर बनाने से क्षुब्ध होकर भगवान विष्णु को स्त्री वियोग का श्राप दिया था जिसे स्वीकार कर भगवान ने रामावतार में सीता हरण करवाया।
लक्ष्मी जी के स्वयंवर में नारद जी ने भगवान विष्णु से कहा कि मुझे हरि की तरह बना दीजिए, भगवान विष्णु विनोद कर बैठे और उनका मुख बंदर का बना दिया। क्योंकि हरि का एक अर्थ वानर भी होता है। स्वयंवर में नारद जी हंसी के पात्र बन गए इससे वे कुपित हो गए और विष्णु जी को स्त्री वियोग का शाप दे दिया। त्रेता युग में जब विष्णु जी ने रामावतार लिया तो इसी शाप को स्वीकार कर माता सीता का हरण करवाया और पत्नी वियोग में परेशान हुए। वहीं कृष्णावतार में गांधारी के दिए श्राप को शिरोधार्य कर अपने यादव वंश का नाश किया।
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया