सांकेतिक चित्र
इस संदर्भ में एक कथा है कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद होने लगा। दोनों निर्णय के लिए भगवान शिव के पास गए। विवाद का हल निकालने के लिए भगवान शिव साकार से निराकार रूप में प्रकट हुए। शिव का निराकार रूप अग्नि स्तंभ के रूप में नजर आ रहा था। ब्रह्मा और विष्णु दोनों इसके आदि और अंत का पता लगाने के लिए चल पड़े। कई युग बीत गए, लेकिन इसके आदि और अंत का पता नहीं लगा। जिस स्थान पर यह घटना हुई, वह अरुणाचल के नाम से जाना जाता है।
ब्रह्मा और विष्णु को अपनी भूल का एहसास हुआ। भगवान शिव साकार रूप में प्रकट हुए और कहा कि आप दोनों ही बराबर हैं। इसके बाद शिव ने कहा कि पृथ्वी पर अपने ब्रह्म रूप का बोध कराने के लिए मैं लिंग रूप में प्रकट हुआ इसलिए अब पृथ्वी पर इसी रूप में मेरे परम ब्रह्म रूप की पूजा होगी। इसकी पूजा से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति हो सकेगी।
कथा इस प्रकार है :
ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर झगड़ा चल ही रहा था कि अचानक एक अग्निस्तंभ अवतरित हुआ। वो अग्नि स्तंभ बेहद विशाल था। दोनों की आंखों उसके सिरों को नहीं देख पा रहीं थीं। दोनों के बीच तय हुआ कि ब्रह्मा अग्नि के इस खंभे का ऊपरी सिरा खोजेंगे और विष्णु निचला सिरा। ब्रह्मा ने हंस का रूप धरा और ऊपर उड़ चले। विष्णु ने वाराह का रूप धारण किया और धरती के नीचे अग्नि स्तंभ की बुनियाद खोजने निकल पड़े।
अंत में दोनों में से कोई सफल नहीं हो सका। दोनों लौट कर आए। विष्णु ने मान लिया कि सिरा नहीं खोज पाए। हालांकि ब्रह्मा भी उसके सिरे को खोज नहीं पाए थे लेकिन उन्होंने कह दिया कि वो सिरा देख कर आए हैं।
ब्रह्मा का असत्य कहना था कि अग्नि स्तंभ फट पड़ा और उसमें से शिव प्रकट हुए। उन्होंने ब्रह्मा को झूठ बोलने के लिए डांटा और कहा कि वो इस कारण से बड़े नहीं हो सकते। उन्होंने विष्णु को सच स्वीकारने के कारण ब्रह्मा से बड़ा कहा। ब्रह्मा और विष्णु दोनों ने मान लिया कि अग्निस्तंभ से निकले शिव महादेव यानी किसी अन्य देव से बड़े हैं। वह उन दोनों से भी बड़े हैं क्योंकि दोनों मिलकर भी उनके आदि-अंत का पता नहीं लगा सके।
एक बार पद्म कल्प के प्रारंभ में ब्रह्मा और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ। तब दोनों दिव्यास्त्र लेकर युद्ध करने लगे। यह स्थिति देखकर भगवान शिव अचानक ही वहां ज्योतिर्मय स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए। दोनों देवता उस स्तंभ को देखने लगे। तब दोनों देवता ब्रह्मा और विष्णु ने उसके आदि और अंत को खोजने का निश्चित किया। विष्णु शुक्र का रूप धरकर पाताल चले गए और ब्रह्मा हंस पर सवार होकर ऊपर चले गए। हजारों वर्षों की खोज के बाद जब दोनों लौटे तो विष्णुजी ने कहा कि इसका नीचे मुझे कहीं अंत नहीं मिला। लेकिन ब्रह्माजी ने झूठ बोल दिया और कहा कि मुझे अंत मिल गया। विष्णु ने कहा कि इसका क्या सबूत? तब ब्रह्मा ने केतकी का फूल देकर कहा कि यह फूल उस अग्नि स्तंभ के ऊपर था।
ब्रह्मा का यह छल देखकर शिव स्वयं उस स्तंभ से प्रकट हुए। विष्णु ने उनके चरण पकड़ लिए। तब उन्होंने कहा कि आप दोनों समान है लेकिन ब्रह्मा ने झूठ कहा इसलिए जगत में उनकी पूजा नहीं होगी। ईशान संहिता के अनुसार इस शिवलिंग का प्रादुर्भाव फाल्गुन मास की कृष्ण की चतुर्दशी की रात्रि को हुआ था। इसी दिन शिवरात्रि मनाई जाती है।
संदर्भ : शिव पुराण विधेश्वर संहिता