भगवान श्रीराम ने माता सीता को धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर वरण किया था। वास्तव में वह भगवान भोलेनाथ का धनुष था जिसकी टंकार (धनुष की रस्सी को खींचने के बाद अचानक छोड़ देने वाली आवाज) से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। इसी धनुष के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को भगवान शंकर ने ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था।
शिव पुराण में भगवान शंकर के इस धनुष का विस्तृत उल्लेख मिलता है। जब राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए तो उन्होंने सभी देवताओं को अपने धनुष (पिनाक) से नष्ट करने की ठानी। एक टंकार से धरती का वातावरण भयानक हो गया। बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया, तब उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया।
देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवरात को यह धनुष दिया था। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। इस धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। लेकिन एक दिन उनकी पुत्री सीता ने खेल -खेल में वह धनुष उठाकर रख दिया।
राजा जनक को पता चला तो वे विस्मित हो गए कि ऐसा कैसे संभव है जबकि यह धनुष महान प्रतापी बलवान राजा भी नहीं उठा सकते हैं। तभी उन्होंने सुनिश्चित किया कि जो भी राजा इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा वे अपनी पुत्री का हाथ उसी को सौंपेंगे। भरे दरबार में भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया। और देवी सीता के साथ परिणय किया।