एक बार की बात है, गणेश जी अपने जन्मदिन यानी चतुर्थी के अवसर पर अपने एक प्रिय भक्त के यहां भोजन के आमंत्रण पर गए। वहां उन्होंने भरपेट भोजन किया और अपने आराधकों को सुख-प्राप्ति के भरपूर आशीर्वाद दिए। इसके बाद वे अपनी सवारी चूहे के ऊपर चढकर शिवलोक की तरफ चल दिए। तभी एक सांप ने उनका रास्ता काट दिया। चूहे तो सांप के प्रिय भोजन होते हैं। गणेश जी की छोटी सी सवारी चूहा सांप से बहुत डर गया और भाग खड़ा हुआ।
गणेश जी लड़खड़ा कर गिर पड़े और उनका गोलमटोल शरीर लुढ़कने लगा। रात का समय था और आसमान में चतुर्थी का चांद चमचमा रहा था। यह दृश्य देखकर चांद से रहा ना गया और जोर-जोर से ठहाके मारकर हंस पड़ा। यह देखकर गणेश जी के गुस्से का ठिकाना ना रहा। सांप को सबक सिखाने के बाद गणेश जी मखौल उड़ाते चांद की तरफ दौड़ पड़े। गुस्से से लाल गणेश जी को देखकर चांद भाग खड़ा हुआ और डरकर अपने महल में छिप गया।
रात का समय था। चांद के छिप जाने के कारण चारों तरफ अंधेरा छा गया। पृथ्वी पर लोग परेशान हो गए। सभी देवों ने गणेश जी से धरती पर शांति लाने की प्रार्थना की और यह आग्रह किया कि चंद्रमा को क्षमा कर दें। अंततः गणेश जी पिघल गए और चांद को अपने क्रोध से मुक्त किया। पर जाते-जाते उसे एक शाप भी दे गए। चूंकि चां द एक चोर की तरह अपने महल में छुप गया था, जैसे उसने कोई अपराध किया हो। इसीलिए अगर कोई गणेश जी के जन्मदिन वाली चतुर्थी पर चांद का दर्शन करेगा, तो वह भी चोर कहलाएगा। यही कारण है कि आज भी लोग गणेश चतुर्थी के अवसर पर चांद की तरफ नहीं झांकते।