भगवान विष्णु का विवाह बड़ी ही रोचक परिस्थिति में हुआ था। इस विवाह की चर्चा पुराणों में मिलती है। स्वयंवर के समय का रोचक प्रसंग पढ़ने को मिलता है। आओ जानते हैं श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह की रोचक कथा।
ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी थीं। उनकी माता का नाम ख्याति था। राजा दक्ष के भाई भृगु ऋषि थे। एक बार लक्ष्मीजी के लिए स्वयंवर का आयोजन हुआ। माता लक्ष्मी पहले ही मन ही मन विष्णुजी को पति रूप में स्वीकार कर चुकी थीं लेकिन नारद मुनि भी लक्ष्मीजी से विवाह करना चाहते थे। नारदजी ने सोचा कि यह राजकुमारी हरि रूप पाकर ही उनका वरण करेगी। तब नारदजी विष्णु भगवान के पास हरि के समान सुन्दर रूप मांगने पहुंच गए।
विष्णु भगवान ने नारद की इच्छा के अनुसार उन्हें हरि रूप दे दिया। हरि रूप लेकर जब नारद राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे तो उन्हें विश्वास था कि राजकुमारी उन्हें ही वरमाला पहनाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजकुमारी ने नारद को छोड़कर भगवान विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। नारदजी वहां से उदास होकर लौट रहे थे तो रास्ते में एक जलाशय में उन्होंने अपना चेहरा देखा। अपने चेहरे को देखकर नारद हैरान रह गए, क्योंकि उनका चेहरा बंदर जैसा लग रहा था।
'हरि' का एक अर्थ विष्णु होता है और एक अर्थ वानर भी होता है। भगवान विष्णु ने नारद को वानर रूप दे दिया था। नारद समझ गए कि भगवान विष्णु ने उनके साथ छल किया। उनको भगवान पर बड़ा क्रोध आया। नारद सीधे बैकुंठ पहुंचे और आवेश में आकर भगवान को श्राप दे दिया कि आपको मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर जाना होगा। जिस तरह मुझे स्त्री का वियोग सहना पड़ा है उसी प्रकार आपको भी वियोग सहना होगा। इसलिए राम और सीता के रूप में जन्म लेकर विष्णु और देवी लक्ष्मी को वियोग सहना पड़ा।
इस कथा प्रसंग में भगवान गणेशजी का विष्णु और देवताओं द्वारा अपमान करने का भी उल्लेख मिलता है जिसके चलते विष्णुजी बारात लेकर निकले तब रास्ते में गणेशजी ने अपने मूषक से कहकर संपूर्ण रास्ता खुदवा दिया था। बाद में गणेशजी को मनाया और उनकी पूजा की गई थी तब बारात आगे बढ़ सकी थी।