मानवाधिकार मनुष्य के वे मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार हैं, जिनसे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि किसी भी दूसरे कारक के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता।
1829 - राजा राममोहन राय द्वारा चलाए गए हिन्दू सुधार आंदोलन के बाद भारत में ब्रिटिश राज के दौरान सती प्रथा को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया।
1929 - नाबालिगों को शादी से बचाने के लिए बाल विवाह निरोधक कानून पास हुआ।
1947 - ब्रिटिश राज की गुलामी से भारतीय जनता को आजादी मिली।
1950 - भारतीय गणतंत्र का संविधान लागू हुआ।
1955 - भारतीय परिवार कानून में सुधार। हिन्दू महिलाओं को मिले और ज्यादा अधिकार।
1973 - केशवानंद भारती वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि संविधान संशोधन द्वारा संविधान के मूलभूत ढाँचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। (जिसमें संविधान द्वारा प्रदत्त कई मूल अधिकार भी शामिल हैं)
1989 - अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों से सुरक्षा) एक्ट 1989 पास हुआ।
1992 - संविधान में संशोधन के जरिए पंचायत राज की स्थापना, जिसमें महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण लागू हुआ। अजा-अजजा के लिए भी समान रूप से आरक्षण लागू।
1993 - प्रोटेक्शन ऑफ मून राइट्स एक्ट के तहत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना।
2001 - खाद्य अधिकारों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त आदेश पास किया।
2005 - सूचना का अधिकार कानून पास।
2005 - रोजगार की समस्या हल करने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट पास।
2005 - भारतीय पुलिस के कमजोर मानव अधिकारों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधार के निर्देश दिए।
मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा
10 दिसंबर 1948 को यूनाइटेड नेशन्स की जनरल एसेम्बली ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया। इस ऐतिहासिक कार्य के बाद ही एसेम्बली ने सभी सदस्य देशों से अपील की कि वे इस घोषणा का प्रचार करें और देशों या प्रदेशों की राजनीतिक स्थिति पर आधारित भेदभाव का विचार किए बिना विशेषतः स्कूलों और अन्य शिक्षा संस्थाओं में इसके प्रचार, प्रदर्शन और व्याख्या का प्रबंध करें। इस घोषणा में न सिर्फ मनुष्य जाति के अधिकारों को बढ़ाया गया बल्कि स्त्री और पुरुषों को भी समान अधिकार दिए गए।