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बहादुरी तुझे सलाम

राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित बच्चे

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गायत्री शर्मा

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आज देश उन बहादुर बच्चों को सलाम करता है तथा उनकी बहादुरी की सराहना करता है, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर सच्ची मानवता का फर्ज निभाया। इन बच्चों को प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस पर सम्मानित किया जाता है। सन् 1957 से यह पुरस्कार देश के वीर नौनिहालों को प्रदान किए जा रहे हैं। अब तक 756 बच्चों को यह पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है, जिनमें 541 लड़के और 215 लड़कियाँ शामिल है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हमारे देश के 20 जाबाँज बच्चे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथों बहादुरी पुरस्कार से नवाजे जाएँगे। ये बच्चे इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह में भी हिस्सा लेंगे।

इस पुरस्कार के चयनकर्ताओं में कई विभागों के प्रतिनिधि, आईसीसीडब्ल्यू के वरिष्ठ सदस्य, महत्वपूर्ण स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि आदि विशिष्ट व गुणी व्यक्तियों की टीम होती है, जो बच्चे की आयु, उसके द्वारा किया गया बहादुरी का कृत्य व जान की जोखिम आदि मापदंडों के आधार पर पुरस्कार प्राप्तकर्ता के रूप में बहादुर बच्चों का चयन करते हैं।

इस पुरस्कार में धनराशि, स्मृति चिन्ह व प्रमाण पत्र के साथ 'इंदिरा गाँधी छात्रवृत्ति योजना' के अंतर्गत छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है, जो बच्चों को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने व जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन स्वरूप होती है। इसके अलावा सरकार द्वारा इस पुरस्कार से नवाजे जाने वाले बच्चों के लिए प्रमुख मेडिकल, इंजीनियरिंग, पॉलीटेक्निक आदि कॉलेजों में कुछ सीटें भी आरक्षित रहती है।

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इस वर्ष इन पुरस्कारों को प्राप्त करने वाले बच्चों में म.प्र. की प्राची सेन, महाराष्ट्र का विशाल पाटिल, राजस्थान की हिना कुरैशी, कीर्तिका झँवर, आशु झँवर, कर्नाटक की भूमिका मूर्ति, गगन मूर्ति, हरियाणा का मनीष बंसल, मणिपुर का वाय एडीशन सिंह, मेघालय का सिल्वर खरबानी आदि है।

गीता चौपड़ा वीरता पुरस्कार :- इस वीरता पुरस्कार को पाने वाली सौभाग्यशाली बालिका मध्यप्रदेश के खरगौन जिले के सनावद की 9 वर्षीय बालिका प्राची संतोष सेन है। इस बहादुर बच्ची ने अपनी जान की परवाह किए बगैर चार बच्चों की जान बचाई, जिसमें प्राची का बाया हाँथ करंट से झुलस गया और अपने हाथों की उंगलियाँ खो दी।

प्राची ने अपने पड़ोस की छत पर खेल रहे चार बच्चों ऋचा, अनय, शैफाली और मानस की जान बचाई। जब ये बच्चे छत पर खेल रहे थे, तभी इनमें से एक बच्चे के हाथ में लोहे की छड़ थी, जो बिजली की 11 किलोवाट की हाइटेंशन लाईन के संपर्क में आ गई, जिससे वह बच्चा करंट के संपर्क में आया। उसके बाद उस बच्चे को बचाने के लिए तीन अन्य बच्चे भी लोहे की छड़ और हाइटेंशन लाइन के संपर्क में आ गए।

यह सब देखकर बहादुर प्राची ने अपने हाथ से झटका देकर लोहे की छड़ और हाइटेंशन लाइन का संपर्क तोड़ दिया। ऐसा करने में प्राची का बाया हाथ बुरी तरह से करंट से झुलस गया। इस बहादुर बच्ची की वीरता को सलाम करते हुए म.प्र. सरकार ने भी प्राची को वर्ष 2008 के 'महाराणा प्रताप शौर्य' पुरस्कार से सम्मानित किया तथा प्राची के हाथों के इलाज हेतु लगभग 1.80 लाख रूपए देने की घोषणा भी की है।

संजय चौपड़ा पुरस्कार :- नोएडा के 13 वर्षीय शौमिक को इस वर्ष का संजय चौपड़ा वीरता पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। इस बहादुर बच्चे ने अपनी जान पर खेलकर चोरी की एक वारदात को अंजाम देने से रोका। 16 मार्च को शौमिक जब अपनी माँ के साथ बाजार जा रहा था, तभी अचानक दो बाईक सवारों ने उनका पीछा करना शुरू किया। इन अजनबियों को भापकर शौमिक की माँ ने समझदारी दिखाते हुए अपने गले की सोने की चैन को पर्स में डाल लिया व अपनी राह चलने लगी।

थोड़ी दूर चलने के बाद ही उन दोनों युवकों ने शौमिक और उसकी माँ के सामने आकर उनका रास्ता रोक लिया तथा शौमिक के गले पर पिस्तौल अड़ाकर सोने की चैन की माँग करने लगे। शौमिक ने तत्काल अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए पिस्तौल ताने युवक पर झपटकर उसे गिरा दिया तथा उसका बंदूक वाला हाथ पकड़ लिया। काफी प्रयास करने के बाद भी इस बहादुर बच्चे की पकड़ से वह युवक उठ नहीं पा रहा था।

अपने साथी को पराजित होते देख दूसरे बदमाश ने शौमिक को पकड़कर उस पर वार किया, जिससे शौमिक लहूलुहान हो गया लेकिन फिर भी वह बदमाशों से लगातार लड़ता रहा। यहाँ तक कि जब बदमाश भागने लगे तो शौमिक ने उनकी बाइक का नंबर नोट कर लिया। इस प्रकार इस बहादुर बच्चे ने बहादुरी की इबारत लिखी।

गगन मूर्ति और भूमिका मूर्ति :- मात्र 6 वर्ष के इन जुड़वाँ बच्चों की बहादुरी की दास्ताँ सुनकर आप भी अपने दाँतों तले उंगली दबा लेंगे। इन दोनों बच्चों ने मिलकर दो बैलों के बीच की घमासान लड़ाई के स्थल से जमीन पर पड़े एक नन्हे बच्चे की जान बचाई।

अनिता और सीना कोरा :- यह सत्य है कि बहादुरी के मामले में आज लड़कियाँ भी लड़कों से कम नहीं है। पश्चिम बंगाल की इन दो बहादुर बालाओं ने नहर में डूब रहे चार लड़कों की जान बचाने का प्रयास किया, जिनमें से दो लड़कों को इन लड़कियों ने डूबने से बचा लिया तथा शेष दो लड़के डूबकर मौत के आगोश में समा गए।

यह वर्ष भारत के लिए आतंकवादी धमाकों के नाम रहा। देश की राजधानी दिल्ली में 13 सितम्बर को हुए सीरियल ब्लास्ट ने हम सभी का दिल दहला दिया। उस वक्त आंतकियों के पहचानकर्ता के रूप में एक ऐसे बहादुर बच्चे राहुल का नाम सामने आया, जिसने उन शातिर आतंकियों को वारदात को अंजाम देते हुए देखा था।

उस वक्त गुब्बारे बेचने वाला 12 वर्षीय राहुल पुलिस के मददगार के रूप में सामने आया, जिसने कचरे के डिब्बे में बम रखते हुए आतंकियों के स्कैच बनाने व पहचानने में अपना प्रमुख योगदान दिया। इस बहादुर बच्चे ने मीडिया के सामने भी अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए बेखौफ होकर आंतकियों की पोल खोल दी। इस वर्ष राहुल को भी बहादुरी पुरस्कार से नवाजा जाएगा।

बच्चे वो पौध है, जिनके रूप में देश का उज्जवल भविष्य पल-बढ रहा है। 'मानवता' का अर्थ मानव के दिल में मानव के प्रति सम्मान है। आज जहाँ हमारे देश में जाति, धर्म व रिश्तों के नाम पर इंसान-इंसान का खून पी रहा है। वहीं इन बहादुर बच्चों ने जाति-पाति, धर्म व ऊँच-नीच का भेद भूलाकर किसी परिवार के चिराग को मौत के मुँह से बाहर निकाला और सच्ची मानवता का परिचय दिया। ये बच्चे देश का गौरव है, जिन्होंने प्रसिद्धी की लालसा में किसी बच्चे की जान नहीं बचाई बल्कि नि:स्वार्थ भाव से सेवाकर्म किया। आज हम सभी को इन बच्चों पर नाज है।

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