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राष्ट्र गान के अंतिम पद

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अहरह तव आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार बाणी ।
हिन्दु बौद्घ शिख जैन पारसिक, मुसलमान ख्रिस्तानी ।
पूरब पश्चिम आसे, तव सिंहासन पाशे; प्रेमहार जय ाथा।
जन-गण-ऐक्य-विधायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता ।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे ॥

पतन-अभ्युदय-वन्धुर-पन्था, युग-युग-धावित यात्री।
हे चिर सारथि,तव रथचक्रे, मुखरित पथ दिन रात्री।
दारुण विप्लव-माझे, तव शंखध्वनि बाजे, हे संकटदुःखत्राता।
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे,भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे॥

घोर तिमिरघन निविड् निशीथे, पीड़‍ित मूर्च्छित देशे।
जागृत छिल तव अविचल मंगल, नत नयने अनिमेषे।
दुःस्वप्ने आतंके, रक्षा करिले अंके, स्नेहमयी तुमि माता।
हे जन-गण-दुःखत्रायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे॥

रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि, पूर्ब-उदयगिरिभाले।
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण, नवजीवनरस ढाले।
तव करुणारुणरागे, निद्रित भारत जागे, तव चरणे नत माथा।
जय जय जय हे, जय राजेश्वर !! भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे॥

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